(चित्र गूगल छवियों से साभार) चाँदी की थाली में, सोने की चम्मच से खाने वाले। महलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले।। नाम बड़े हैं दर्शन थोड़े, गधे बन गये अरबी घोड़े, एसी में अय्यासी करते, नेताजी हैं बहुत निगोड़े, खादी की केंचुलिया पहने, बैठे विषधर काले-काले। महलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले।। कहलाते थे जो नालायक, वो बन बैठे आज विधायक, सौदों में खा रहे दलाली, ये स्वदेश के भाग्यविनायक, लूट रहे भोली जनता को, बनकर जन-गण के रखवाले। महलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले।। भावनाओं को ये भड़काते, मुद्दों को भरपूर भुनाते, कैसे क़ायम रहे एकता, चाल दोहरी ये अपनाते, सत्ता पर क़बिज़ रहने को, चलते भाँति-भाँति की चाले। महलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले।। |
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रविवार, 22 जनवरी 2012
"सोने की चम्मच से खाने वाले" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 23-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
आपने सही चेहरा दिखाया है इनका. आभार.
जवाब देंहटाएंनेताओं की अब खैर नहीं ..:) अन्ना ने मार्ग तो दिखाया है ,बस अब मिलके साथ चलना है ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा व्यंग्य है ..
kalamdaan.blogspot.com
bilkul sahi karara vyang karti behtreen kavita.
जवाब देंहटाएंभ्रष्ट राजनीति पर करारी चोट।
जवाब देंहटाएंभृष्टाचार के विरोध में सही और करार जवाब देती है आपकी पोस्ट |
जवाब देंहटाएंबेहद शानदार और उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार पर करारी चोट..
जवाब देंहटाएंसशक्त सत्य से सामना करा दिया आपने..
जवाब देंहटाएंवाह करारी चोट ...राजनीति और नेतायों पर
जवाब देंहटाएंआपने तो मेरे मन की कह दी,जबरजस्त रचना
जवाब देंहटाएंमौजूदा व्यवस्थाओं पर करारा प्रहार।
जवाब देंहटाएंसही आइना दिखलाया आपने -
जवाब देंहटाएंसामने दर्पण के जब तुम आओगे ,
अपनी करनी पर बहुत पछताओगे .
गधे बन गये अरबी घोड़े,
जवाब देंहटाएंएसी में अय्यासी करते,
नेताजी हैं बहुत निगोड़े,
खादी की केंचुलिया पहने, बैठे विषधर काले-काले।
महलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले।।
सबके मन की कह दी शास्त्री जी ने हमारे .
बात नेताओं की है,पर जनता की मूर्खता भी साफ झलक रही है।
जवाब देंहटाएंमौजूदा हालातों पर सशक्त पोस्ट ...
जवाब देंहटाएं