आइना सच-झूठ सब कुछ जानता है। मन सुमन की गन्ध को पहचानता है।। झूठ, मक्कारी-फरेबी फल रही, भेड़ियों को भेड़ बूढ़ी छल रही, जुल्म कब इंसानियत को मानता है। मन सुमन की गन्ध को पहचानता है।। पिस रहा खुद्दार है, सुख भोगता गद्दार है, बदले हुए हालात में गुम हो गया किरदार है, बाप पर बेटा दुनाली तानता है। मन सुमन की गन्ध को पहचानता है।। बेसुरा सुर साज से आने लगा, पेड़ अपने फल स्वयं खाने लगा, भाई से तकरार भाई ठानता है। मन सुमन की गन्ध को पहचानता है।। |
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शनिवार, 14 जनवरी 2012
"आइना सच-झूठ सब कुछ जानता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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पिस रहा खुद्दार है, सुख भोगता गद्दार है,
जवाब देंहटाएंबदले हुए हालात में गुम हो गया किरदार है,
बाप पर बेटा दुनाली तानता है।
मन सुमन की गन्ध को पहचानता है।।
शास्त्री जी
सच्चाई को वंया करती सुन्दर रचना .
कड़वी सच्चाई ...
जवाब देंहटाएंउत्तम प्रस्तुति..
बहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
जवाब देंहटाएंnew post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
संयत व् सार्थक सच्चाई को प्रस्तुत करती पोस्ट है|
जवाब देंहटाएंएक को उजागर करती हुई रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! आभार !
सच जाने मन का आईना
जवाब देंहटाएंबखूबी से बयान किया है सच्चाई को..सच है मन रुपी आइना सब कुछ जानता है..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.com
तरक्की का ये मोल तो चुकाना ही होगा...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसच्चाई को प्रस्तुत करती सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंaaj kal ke samaaj ki kadvi sachchaai ko darshati post.bahut uttam.
जवाब देंहटाएंaaine ke 100 tukde...kar ke humne dekhe hain...ek mein bhee tanhaa thay 100 mein bhee akele hain!
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