जन्म लिया जिस देश में, खाया जिसका अन्न। इसको हिंसा-लूट से, करना नही विपन्न।१। भाषा, धर्म, प्रदेश से, ऊपर होता देश। भेदभाव, असमानता, से बढ़ता है क्लेश।२। वृक्ष धरोहर धरा की, इन्हे बचाना धर्म। प्राण वायु के दूत ये, समझो इनका मर्म।३। माता-पिता, बुजुर्ग का, जिस घर में सम्मान। उस घर में रमते सदा, साक्षात् भगवान।४। सादे जीवन में सदा, होते उच्च विचार। |
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सोमवार, 9 जनवरी 2012
"दोहे-समझो इनका मर्म" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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एक से बढिया एक प्रेरणास्पद दोहे। बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी दोहे खूबसूरती से प्रस्तुत किये गए ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर संदेश देते शानदार और सटीक दोहे।
जवाब देंहटाएंप्रेरणा से परिपूर्ण बढ़िया दोहे!
जवाब देंहटाएंभाषा, धर्म, प्रदेश से, ऊपर होता देश।
जवाब देंहटाएंभेदभाव, असमानता, से बढ़ता है क्लेश।२।
saare dohe ek dam sateek
kaas aisaa ho jaaye
कमयंक जी नमस्कार, नववर्ष की हार्दिक बधाई। प्रेरक दोहे।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंआशा
सभी दोहे सारगर्भित हैं.
जवाब देंहटाएंसार्थक सीख, सहज और अनुकरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सारगर्भित दोहे...
जवाब देंहटाएंbehtarin samajik sandesh prsarit karti sarthk post hae,aabhar.
जवाब देंहटाएंसादे जीवन में सदा, होते उच्च विचार।
जवाब देंहटाएंतड़क-भड़क में जन्मते, अनाचार-व्यभिचार
आपके उच्च विचारों से बहुत प्रेरणा मिलती है,शास्त्री जी.
बहुत बहुत आभार.
सुंदर अभिव्यक्ति उच्च विचारों की प्रेरणा देती बढ़िया रचना,....
जवाब देंहटाएं--"काव्यान्जलि"--
sundar or prernadayi prastuti...
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा दोहे ! बधाई !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहर दोहे में संदेश।
सादे जीवन में सदा, होते उच्च विचार।
जवाब देंहटाएंतड़क-भड़क में जन्मते, अनाचार-व्यभिचार...
सार्थक और प्रभावशाली सन्देश !
बहुत प्रेरक, बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसादर.
सादे जीवन में सदा, होते उच्च विचार।
जवाब देंहटाएंतड़क-भड़क में जन्मते, अनाचार-व्यभिचार.
कथनी-करनी एक सी, आप सरीखे अल्प
सादे जीवन का नहीं, कोई और विकल्प.
प्रेरणादायी और नीतिपरक दोहे...
सुन्दर दोहे ||
जवाब देंहटाएंsaarthak dohe!
जवाब देंहटाएंVery Nice post
जवाब देंहटाएं