जमाना है तो हम-तुम हैं, जमाना तो जमाना है। यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।। कहीं रातें उजाली हैं, दिवस में भी अन्धेरा है, खुले जब आँख तो समझो, तभी आया सवेरा है, परिन्दे को बहुत प्यारा, उसी का आशियाना है। यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।। अगर है प्यार दोजख़ में, तो जन्नत की जरूरत क्या? बिना माँगे मिले जब सब, तो मन्नत की जरूरत क्या? मुहब्बत की नई राहों को, दुनिया को दिखाना है। यही पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।। जो अपने दिल की यादों को बगीचों में सजाते हैं, नियम से पेड़-पौधों को जो उपवन में उगाते है, खुशी से हर कली को फूल बनकर मुस्कराना है। यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।। कुटिलता की कहानी को हमें कहना नही आता, हमें अन्याय-अत्याचार को सहना नही आता, यही सन्देश दुनिया भर को गा करके सुनाना है। यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।। जिन्हें अपना फटा दामन कभी सीना नही आया, सलीके से सुखी होकर जिन्हें जीना नही आया, उन्हें सदभावना का मन्त्र हमको ही सिखाना है। यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।। जिन्हें बढ़ने की आदत है, उन्हे रुकना नही आता, जिन्हें लड़ने की आदत है, उन्हें झुकना नही आता, पड़ोसी से पड़ोसी का, हमें रिश्ता निभाना है। यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।। |
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सोमवार, 9 अप्रैल 2012
‘‘सदभावना का मन्त्र हमको ही सिखाना है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंkalamdaan
क्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत सुंदर ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति,.....
जवाब देंहटाएंRECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
Bahut Sunder.....
जवाब देंहटाएंपड़ोसी का धर्म तो निभाना आता है पर पीड़ा सहना भी आने लगा है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत उम्दा.
जवाब देंहटाएंजिन्हें बढ़ने की आदत है, उन्हे रुकना नही आता,
जवाब देंहटाएंजिन्हें लड़ने की आदत है, उन्हें झुकना नही आता,
पड़ोसी से पड़ोसी का, हमें रिश्ता निभाना है।
यहीं पर हर बशर को, भाग्य अपना आजमाना है।।
बेहद सटीक ....बहुत खूब