भटक रहा है आज आदमी, सूखे रेगिस्तानों में। चैन-ओ-अमन, सुकून खोजता, मजहब की दूकानों में। चौकीदारों ने मालिक को, बन्धक आज बनाया है, मिथ्या आडम्बर से, भोली जनता को भरमाया है, धन के लिए समागम होते, सभागार-मैदानों में। पहले लूटा था गोरों ने, अब काले भी लूट रहे, धर्मभीरु भक्तों को, भगवाधारी जमकर लूट रहे, क्षमा-सरलता नहीं रही, इन इन्सानी भगवानों में। झोली भरते हैं विदेश की, हम सस्ते के चक्कर में, टिकती नहीं विदेशी चीजें, गुणवत्ता की टक्कर में, नैतिकता नीलाम हो रही, परदेशी सामानों में। जितनी ऊँची दूकानें, उनमें फीके पकवान सजे, कंकड़-पत्थर भरे कुम्भ से, कैसे सुन्दर साज बजे, खोज रहे हैं लोग जायका, स्वादहीन पकवानों में। गंगा सूखी, यमुना सूखी, सरस सुमन भी सूख चले, ज्ञानभास्कर लुप्त हो गया, तम का वातावरण पले, ईश्वर-अल्लाह कैद हो गया, आलीशान मकानों में।। |
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बुधवार, 25 अप्रैल 2012
"मजहब की दूकानों में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सच लिखा है आपने ..बहुत सुन्दरता से..!
जवाब देंहटाएंbahut sundar.....
जवाब देंहटाएंhttp://jadibutishop.blogspot.com
khalis sach hae shastriji, aapki post sda hi ytharth ka darshan krati hae .aabhar. meri nai post par aapke samiksh ka svagat hae.
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा है कि आज आदमी धर्म के ठेकेदारों के चक्कर में उलझ कर जी रहा है।
जवाब देंहटाएंजो नदी तालाब के किनारे पड़े हैं उनका हाल और ज़्यादा ख़राब है।
आओ अपनी प्रकृति सँवारें।
जवाब देंहटाएंगंगा सूखी, यमुना सूखी, सरस सुमन भी सूख चले,
जवाब देंहटाएंज्ञानभास्कर लुप्त हो गया, तम का वातावरण पले,
ईश्वर-अल्लाह कैद हो गया, आलीशान मकानों में।।
....आज का कटु सत्य...बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति...आभार
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंझोली भरते हैं विदेश की, हम सस्ते के चक्कर में,टिकती नहीं विदेशी चीजें, गुणवत्ता की टक्कर में,नैतिकता नीलाम हो रही, परदेशी सामानों में।
जवाब देंहटाएं...सच्चाई तो यही है...सुन्दर प्रस्तुति!...आभार!
is se kya fayda ?
जवाब देंहटाएंniklen kaise ?
बहुत बढ़िया गुरूजी ।।
जवाब देंहटाएंभक्त स्वार्थी हो गए, भूल गए भगवान् ।
बुद्धि गिरवी रख करें, ढोंगी के गुणगान ।।
गोरो के रंगरूट ये, काला तन-मन चाल ।
लूट-पाट कर कुकर्मी, चले ठोंकते ताल ।।
वाह बहुत खूब .......
जवाब देंहटाएंधर्म के नाम की दुहाई ...ज़ाहिल लोग ही देते हैं
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..प्रभावी रचना,..
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
खोज रहे हैं लोग जायका, स्वादहीन पकवानों में।
जवाब देंहटाएंयही तो विडंबना है।
क्या कहने सर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
क्या बात है!! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंइसे भी देखें-
फेरकर चल दिये मुँह, था वो बेख़ता यारों!
आईना अब भी देखता है रास्ता यारों!!
ईश्वर-अल्लाह कैद हो गया, आलीशान मकानों में...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव...प्रभावशाली रचना...
क्या बात है, बहुत सटीक.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक चित्रण किया है आपने ..आभार ।
जवाब देंहटाएंझोली भरते हैं विदेश की, हम सस्ते के चक्कर में,
जवाब देंहटाएंटिकती नहीं विदेशी चीजें, गुणवत्ता की टक्कर में,
नैतिकता नीलाम हो रही, परदेशी सामानों में।
भाव लय ताल अर्थ ,व्यंजना सभी कुछ समोए बढ़िया व्यंग्य गीत .
बस थोड़ा सा इंतज़ार ,फिर हाज़िर है -
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग चार .
शुक्रिया आपकी द्रुत और उत्साहवर्धक टिप्पणियों का .
बहुत खूबसूरत रचना बहुत सुन्दर शब्द संयोजन |
जवाब देंहटाएं