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aap ki kavita us pal ko jiwant kar rahi h jin ko ham har palo me ji rahe h subh kamna
जवाब देंहटाएंaap ki kavita us pal ko jiwant kar rahi h jin ko ham har palo me ji rahe h subh kamna kamlesh bhatt
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र में नही है ,किसी के मुख पे लगाम !
जवाब देंहटाएंएक दम सही कहा :शास्त्री जी ...
राम-राम
कहां से कहां पहुंचा दिया आम चूसना चालू ही किया था कि पता चला खुद ही चूसे जा रहे हैं
जवाब देंहटाएंmazedaar hain aam..
जवाब देंहटाएंजनता आम बनी हुई है अभी तो.
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी विशेष लिख, कहते उसको आम |
जवाब देंहटाएंआम नहीं ये दोहा कोई, अनमोल है दाम ||
अरुणेश जी की टिप्पणी भी मेरी ही मानी जाए. :-)
लोकतन्त्र में किसी के, मुख पर नहीं लगाम।
जवाब देंहटाएंइंसान बहुत सस्ता हुआ, महंगा हुआ है आम।
बहुत सुंदर बाल कविता शास्त्री जी।
खाओ जितने खा सको, अवश-विवश हैं आम।
जवाब देंहटाएंलोकतन्त्र में किसी के, मुख पर नहीं लगाम।।
....बहुत सच कहा है..आज सभी खास लोग आम को खा रहे हैं..आभार
फलों के राजा आम पर सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंसच्ची कविता .हमारे यहाँ भी पाकिस्तान का केसरी मिलता है .बहुत मीठा.
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी विशेष लिख, कहते उसको आम |
जवाब देंहटाएंआम नहीं ये दोहा कोई, अनमोल है दाम ||
सरल-तरल यह काम।। ये सरल-तरल का मेल अद्भुत किया है आपने.
और भाव में जो कि एक फल से एक आदमी तक की बात कह गया वह भी मुदित कर गया.
धन्यवाद यह रसपान कराने के लिए. आशा है कि आप यूँ ही रचनाशील रहेंगे. कविताओं ने समाज को सदैव प्रकाशित किया है एक प्रकाश-स्तंभ की भांति.
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र में नही है ,किसी के मुख पे लगाम !
जवाब देंहटाएंएक दम सही कहा :शास्त्री जी ...
राम-राम
और सलाम।
खाओ जितने खा सको, अवश-विवश हैं आम।
लोकतन्त्र में किसी के, मुख पर नहीं लगाम।।
यह सही है लेकिन
जो दाम देगा वही खा सकता है आम
पैसे की ना होत लगा देती है लगाम
http://aryabhojan.blogspot.com/2011/06/dr-anwer-jmal_11.html
आम पर आपके दोहे पढ़े,उधर कुछ ब्लॉग वालों की लड़ाई इसके पहले पढ़ी.बस फिर क्या ये कुण्डली बन गई.देखिये:-
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में हो रहा,आमों जैसा हाल.
खट्टे -मीठे आम से,भरी मिले हर थाल.
भरी मिले हर थाल ,कहे तुकमी से चौसा.
कर लो दो दो हाथ चलो तुम हमसे मौसा.
देख लड़ाई, जान हमारी है सांसत में.
आमों जैसे लोग लड़ रहे ब्लॉग जगत में.
"आम" पर आपकी प्रस्तुति पढ़ करके आनन्द आ गया। "ब्लाग" बातों आम-रस है। इसका आनन्द उठाते रहिए, मुस्कराते रहिए।
जवाब देंहटाएं===========
लोकतंत्र में "आम" को, बातों की बस छूट।
जितने "ख़ासमख़ास" वे, उतनी उनकी लूट॥
===========
मुस्कान हास्य का कायिक लक्षण है। मुस्कान संक्रामक भी होती है। जब कोई व्यक्ति आपको मुस्कराता हुआ देखता है तो वह भी मुस्काराने लगता है।
===========
डॉ० डंडा लखनवी
बहुत खूबसूरत रचना ..आम खाते हुए भी आम ( इंसान) पर सोच ...
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र में हो गया, आज आदमी आम |
इतने सारे आम हैं ,पर ज्यादा हैं दाम ||
रचना नित्य नवीन रच उपजाते उल्लास ।
जवाब देंहटाएंदोहे लिखकर आम को बना दिया है खास।
dr.saheb aam khaakar aanad aagyaa .college m hum kayi dosat aam chus rahe th warden aagaye sabhi ne guthali chhilke mere samane rakh diye bole joga singh kitane aam kha gaya sir,main bola sir maine chhilke guthali to chhodi inhone to vo bhi nahi chhodi warden lotpot hokar chale gaye
जवाब देंहटाएंआम पर खूबसूरत दोहे... स्वादिष्ट, रसीले.... !
जवाब देंहटाएंआम खाने का आनन्द बाल्टी में भरकर खाने से है।
जवाब देंहटाएंआम पर खूबसूरत दोहे..
जवाब देंहटाएंआम पर सुंदर दोहे प्रस्तुत किए हैं आपने
जवाब देंहटाएंबधाई शास्त्री जी
फलों के राजा आम और लोकतंत्र के आम आदमी को कविता में खूब जोड़ा आपने ...
जवाब देंहटाएंआभार !
वाह ! आमों के चित्र दिखा कर तो आपने घर की याद दिला दी. हमारे यहां भी मौसम में आम ऐसे ही खाया जाता है.
जवाब देंहटाएंजबकि शहर में तो मुआ इकलौता आम भी यूं धोया, काटा और तब कभी प्लेट में परोसा जाता है मानो .... आम का पोस्ट-मार्टम के बाद ही उसे खाने का रिवाज़ हो :)
क्या बात है जी .
जवाब देंहटाएंइस कविता के बहाने आपने आम को कितना खास कर दिया . बधाई हो .
इमली के एक
बड़े भारी पेड़ पर
मार्टम करने के
जवाब देंहटाएंतंत्र आम को ही कहा रहा है .सटीक सामयिक .
जवाब देंहटाएंआम के बहाने बहुत कुछ कह दिया...
जवाब देंहटाएंप्यारे और मस्ती भरे हिन्दी एसएमएस
आम ही आम देखकर तो मुँह में पानी आ गया! बहुत ही सुन्दर और मज़ेदार रचना!
जवाब देंहटाएंहर फल आमो-ख़ास दे, इकलौता ये पेड़.
जवाब देंहटाएंखास हुए सब आम अब , खाकर बड़े थपेड
ख़ास तुम्हारे साथ हैं, साथ हमारे आम!
जवाब देंहटाएंसाथी जिसके आम हों, होता उसका नाम!!
जो दाम देगा वही खा सकता है आम
जवाब देंहटाएंपैसे की ना होत लगा देती है लगाम....आम के बहाने बहुत कुछ कह दिया...धन्यवाद..
आम पर सुंदर दोहे ....
जवाब देंहटाएंआम आम कहते हैं आम ना जाने कोय
जवाब देंहटाएंजो जाने आम को कैसे ना खास होय
आम खाते खाते बन गये वो खास
देखो आम की महिमा अब तो करो विश्वास
फलों के राजा का रस रचना रस में उतार लिया ... लाजवाब शास्त्री जी ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .......
जवाब देंहटाएं