शीतल पवन सभी को भाया। रिम-झिम करता सावन आया।। उगे गगन में गहरे बादल, भरा हुआ जिनमें निर्मल जल, इन्द्रधनुष ने रूप दिखाया। श्वेत-श्याम घन बहुत निराले, आसमान पर डेरा डाले, कौआ काँव-काँव चिल्लाया। जोर-शोर से बिजली कड़की, सहम उठे हैं लड़का-लड़की, देख चमक सूरज शर्माया। खेत धान से धानी-धानी, घर मे पानी बाहर पानी, मेघों ने पानी बरसाया। लहरों का स्वरूप है चंगा, मचल रहीं हैं यमुना-गंगा, पेड़ों ने नवजीवन पाया। झूले पड़े हुए घर-घर में, चहल-पहल है प्रांत-नगर में, झूल रही हैं ललिता-माया। मोहन ने महफिल है जोड़ी, मजा दे रही चाय-पकौड़ी, मानसून ने मन भरमाया। |
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सोमवार, 11 जुलाई 2011
"रिम-झिम करता सावन आया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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चाहे अभी सावन शुरु नही हुआ मगर माहौल तो बन ही गया है सावन जैसा……………बहुत सुन्दर मनभावन गीत लिखा है।
जवाब देंहटाएंऋतु की सुन्दरता इस गीत से बढ़ रही है... प्रकृति के ने कवि के रूप में स्थापित हो रहे हैं आप....
जवाब देंहटाएं…बहुत सुन्दर मनभावन गीत लिखा हैं ..........
जवाब देंहटाएंsawan maah ke swagat me rachit yah rachna sarahniy hai .aabhar
जवाब देंहटाएंबधाई ||
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति ||
अहाहा
जवाब देंहटाएंछन्द आपने इस प्रवाह से बनाए हैं कि लग रहा है टप-टप वर्षा की बूंदे गिर रही हैं और हम भींगते भींगते चहलकदमी कर रहे हों।
सावन के आने से पहले ही उसका स्वागत , सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएंएक सुंदर कोमल रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंवाह , शास्त्री जी . सावन में मन झूमने लगता है . प्यारा सावन गीत .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सावन गीत प्रस्तुति के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंखेत धान से धानी-धानी,
जवाब देंहटाएंघर मे पानी बाहर पानी,
मेघों ने पानी बरसाया।
सावन के झूले ,वर्षा की बूंदें सुखद लगती हैं आपकी सरस रचना की तरह शुक्रिया सर /
आप अभी हिंदी साहित्य के एकमात्र प्रकृति कवि हैं...
जवाब देंहटाएंवातावरण को सावनमय कर दिया है.सरल-सहज शब्दों में अनुपम चित्रण.
जवाब देंहटाएंझूल रही हैं ललिता माया.......
जवाब देंहटाएंइस एक पंक्ति ने इस बाल गीत जैसी दिखने वाली रचना का वजन कई गुना बढ़ा दिया, साहित्यिक दृष्टिकोण से भी|
कुण्डलिया छन्द - सरोकारों के सौदे
बहुत खूबसूरत सावन गीत
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...आभार के साथ बधाई
जवाब देंहटाएंhttp://www.parikalpna.com/?p=5207
आज आपकी प्रस्तुति यहां भी ...।