सुख-चैन छीनने को, गद्दार आ गये हैं। टुकड़ों को बीनने को, मक्कार आ गये हैं।। पाये नहीं जिन्होंने, घर में नरम-निवाले, खुद को किया उन्होंने, इस देश के हवाले, फूलों को बींधने को, कुछ खार आ गये हैं। टुकड़ों को बीनने को, मक्कार आ गये हैं।। अपने वजूद को भी, नीलाम कर दिया है, माता के दूध को भी, बदनाम कर दिया है, गंगा उलीचने को, बद-ख्वार आ गये हैं। टुकड़ों को बीनने को, मक्कार आ गये हैं।। स्यारों ने सिंह-शावक, कायर समझ लिए है, राणा-शिवा के वंशज, पामर समझ लिए हैं, सागर को लीलने को, बीमार आ गए हैं। टुकड़ों को बीनने को, मक्कार आ गये हैं।। |
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शनिवार, 16 जुलाई 2011
"गीत-...गद्दार आ गये हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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ज़ोर से तमचियाये हो,पर लगेगा किसे ?
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर.
जवाब देंहटाएंसादर
sir!! jabab nahi aapka!
जवाब देंहटाएंसही बात...टुकड़ों को बीनने को मक्कार आ गये हैं
जवाब देंहटाएंगंगा उलीचने को, बद-ख्वार आ गये हैं।
जवाब देंहटाएंरग-रग में जोश भार देने वाली इस रचना में आपने जो ऐतिहासिक पात्रों का प्रतीकात्मक प्रयोग किया है, वह बहुत ही प्रभावकारी बन पड़ा है।
बहुत सशक्त प्रस्तुति।
गद्दारो ने बदनाम किया सदा इस सर जमीं को अब समय आ गया है साफ़ सफ़ाई का देखते हैं दम कितना ईटली वाली माई का
जवाब देंहटाएंस्यारों ने सिंह-शावक, कायर समझ लिए है,
जवाब देंहटाएंराणा-शिवा के वंशज, पामर समझ लिए हैं,
सागर को लीलने को, बीमार आ गए हैं।
टुकड़ों को बीनने को, मक्कार आ गये हैं।।
करारा तमाचा जड़ दिया जाये इन सब पर ...!
बहुत खूब ! मक्कारों का जमाना हैं शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर.
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
kiya baat hai sir geet mai to sabdo ney jaan daal di bahut khub
जवाब देंहटाएंओजस्वी एवं सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएं------
जीवन का सूत्र...
NO French Kissing Please!
मेरी हार्दिक शुभकामना ||
जवाब देंहटाएंबहुत खूब , मगर अफ़सोस कि ये कहीं बाहर से नहीं आये , यहीं पैदा हुए !
जवाब देंहटाएंहाँ, शास्त्री जी, आपने ऊपर निमंत्रण में एक शून्य ज्यादा लगा दिया है २०११ में !
बहुत खूब शानदार प्रस्तुति बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति बधाई|
जवाब देंहटाएंविचारणीय शानदार रचना.
जवाब देंहटाएंसामयिक अह्वान।
जवाब देंहटाएंसामयिक रचना। साधूवाद।
जवाब देंहटाएंशेर से अकेले तो लड़ नहीं सकते...
जवाब देंहटाएंइसलिए सैकड़ों सियार आ गये...
khoobsoorat prastuti guru jee
जवाब देंहटाएंआपकी रचना अच्छी है और उम्मीद है कि कल काव्य गोष्ठी भी अच्छी ही होगी।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक मारा, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
क्या खूब ही लिखा है ,
जवाब देंहटाएंशत-शत सतत बधाई ,
देने सप्रेम हम भी
आभार आ गए हैं !
bahut khoob likha hai shashtri ji....teer nishane pe lagaye hain..
जवाब देंहटाएंmaaf kijiyega aapki kavya goshthi me nahi aa payenge itni dur jo baithe hain.....hame iski video dekhaeega fir
मयंक जी,
जवाब देंहटाएंआपने देश के गद्दारों और मक्कारों का स्वागत बहुत ज़ोरदार ढंग से किया है.....बहुत ज़रुरत थी इस वक़्त इसकी!
जोश भरा सार्थक रचना..आभार..
जवाब देंहटाएंjvalant bhaav josh poorn rachna.bahut sashakt.aapka aabhar.der se padhne ke liye maaf kijiye.
जवाब देंहटाएं