गया आम का मौसम, प्लम बाजारों में अब छाया। इनको देख-देख कर देखो, सबका मन ललचाया।। लाल-लाल हैं जितने पोलम, वो हैं खट्टे-मीठे, लेकिन जो महरून रंग के, वो लगते हैं मीठे, पर्वत से शृंगार उतर कर, मैदानों में आया। |
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मंगलवार, 12 जुलाई 2011
"पर्वत से शृंगार उतर कर मैंदानों में आया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र दिखाया,
रंग-रसीले फलों को देखा
मुह में पानी आया."
सुन्दर गीत सर,
सादर...
इतने कमाल के चित्र और आपका वर्णन इतना जोरदार है की पानी आ रहा है मुंह हैं ... रसीला गीत है ...
जवाब देंहटाएंdr.saheb itane fal dekhkar unh me paani aaya,indar dev ne surat garh me jal barasaya badhayi
जवाब देंहटाएंआम के मौसम को इतनी जल्दी विदा न कीजियेगा शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंलगता है आपने आम दबा कर खा लिए हैं,मन भर गया है शायद.
मनमोहक ललचाऊ आलूचे दिखला दिए सशरीर कविता में आलूचे हैं या आलूचों में कविता है .दोनों तरफ से सौन्दर्य का वर्षंन .
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी - सजीव चित्रण - कोई खाए बिना रह ही नहीं सकता.
जवाब देंहटाएंसचमुच मन को बहुत लुभाया।
जवाब देंहटाएंप्लम के बारे में जानकारी और लुभावने चित्र बहुत अच्छे लगे ..
जवाब देंहटाएंder se padhne ki kshama chahti hoon.plam ki jaankari se susajjit bal kavita bahut bhaai.aabhar.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और प्यारा-सा गीत...
जवाब देंहटाएंप्लम को हम लोग आलूबुखारा कहते थे...बहुत बढ़िया रचना...
जवाब देंहटाएंswaadisht rachna!
जवाब देंहटाएंअभी हमारी पहुँच से दूर हैं शास्त्री जी ...एक टोकरा इधर भी पार्सल किया होता ...?
जवाब देंहटाएंsubah subah muh mithaa ho gaya!!!
जवाब देंहटाएंस्वादिष्ट, मीठे और रसीले प्लम देखकर मुँह में पानी आ गया! सुन्दर प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
इतनी सुन्दर कविता--इतने सुन्दर फोटो. मन ललचा गया..
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता-- सुन्दर फोटो.आभार...
जवाब देंहटाएंयह फल तो हमारे मैदानो में होता नहीं आप बताएं कि हमें केसे उपलब्ध हो
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढि़या ...।
जवाब देंहटाएंये आलूचा गान ,प्लम सोंग एक मर्तबा फिर पढ़ा .आभार .
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