जमाना है तिजारत का, तिज़ारत ही तिज़ारत है तिज़ारत में सियासत है, सियासत में तिज़ारत है ज़माना अब नहीं, ईमानदारी का सचाई का खनक को देखते ही, हो गया ईमान ग़ारत है हुनर बाज़ार में बिकता, इल्म की बोलियाँ लगतीं वजीरों का वतन है ये, दलालों का ही भारत है प्रजा के तन्त्र में कोई, नहीं सुनता प्रजा की है दिखाने को लिखी मोटे हरफ में बस इबारत है हवा का एक झोंका ही धराशायी बना देगा खड़ी है खोखली बुनियाद पर ऊँची इमारत है लगा है घुन नशेमन में, फक़त अब “रूप” है बाकी लगी अन्धों की महफिल है, औ’ कानों की सदारत है |
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रविवार, 31 जुलाई 2011
"सियासत में तिज़ारत है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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jvalant bhaav se paripoorn prastuti.
जवाब देंहटाएंसमकालीन परिस्थितियों से घिरी ....गहरी ग़ज़ल है ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी ..
बधाई एवं शुभकामनायें.
हवा का एक झोंका ही धराशायी बना देगा
जवाब देंहटाएंखड़ी है खोखली बुनियाद पर ऊँची इमारत है
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है सर...
सादर...
sacha kaha aapane
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंबधाई |
हवा का एक झोंका ही धराशायी बना देगा
जवाब देंहटाएंखड़ी है खोखली बुनियाद पर ऊँची इमारत है
वह क्या बात है सर , सब तरफ तिजारत ही तिजारत है , व्वास्तव में इसके आलावा क्या रह गया है , ...... / सुंदर अभिव्यक्ति प्रशंसनीय ..... / आभार जी /
बहुत ही सुंदर और जमीनी हकीकत बयां करती रचना
जवाब देंहटाएंहवा का एक झोंका ही धराशायी बना देगा
जवाब देंहटाएंखड़ी है खोखली बुनियाद पर ऊँची इमारत है
बेहतरीन।
बोया पेंड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय...जब देश में भ्रष्टाचार कि निराई-गुड़ाई करनी थी तब इसे पोसने में लग गये...अब इस बरगद को उखाड़ने में दिक्कत तो होगी...
जवाब देंहटाएंप्रजा के तन्त्र में कोई, नहीं सुनता प्रजा की है
जवाब देंहटाएंदिखाने को लिखी मोटे हरफ में बस इबारत है
aaj ka katu stya....kya sach mei koi nahi hai ab yahan...sunane wala????????
बहुत अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंज़माना अब नहीं, ईमानदारी का सचाई का
जवाब देंहटाएंखनक को देखते ही, हो गया ईमान ग़ारत है
ज़माने की सच्चाई बयां करती सार्थक ग़ज़ल।
हवा का एक झोंका ही धराशायी बना देगा
जवाब देंहटाएंखड़ी है खोखली बुनियाद पर ऊँची इमारत है
bahut hee sach!!
क्या बात है शास्त्री जी आप तो हकीकत बयान कर गए ? बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंहकीकत बयाँ करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंबधाई |
बिल्कुल सही लिखा है आपने ! शानदार ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंto-the point.thanx .dr.saheb
जवाब देंहटाएंप्रजा के तन्त्र में कोई, नहीं सुनता प्रजा की है
जवाब देंहटाएंदिखाने को लिखी मोटे हरफ में बस इबारत है...
हकीकत बयाँ करती बहुत ही सुन्दर रचना...आभार...
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ...आभार
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