ढाई आखर प्रेम का, देता है सन्ताप। हार-जीत के खेल में, बढ़ जाता है ताप।१। सच्चाई के साथ में, निर्धन करता प्यार। मक्कारी से है भरा, धनवानों का प्यार।२। प्यार नहीं है वासना, ये तो है अनुबन्ध। प्यार शब्द से जुड़ा है, तन-मन का सम्बन्ध।३। प्यार जगत में छेड़ता, मन वीणा के तार। कुदरत ने हमको दिया, ये अमोल उपहार।४। सिर्फ दिखावे के लिए, ढोंगी करता प्यार। चटके दर्पण की कभी, मिटती नहीं दरार।५। |
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सोमवार, 2 जुलाई 2012
"ढाई आखर प्रेम का" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना....
प्रेम की सच्ची व्याख्या.........
सादर
अनु
प्रेमकी अनुपम प्रस्तुति..आभार..
जवाब देंहटाएंसिर्फ दिखावे के लिए, ढोंगी करता प्यार।
जवाब देंहटाएंचटके दर्पण की कभी, मिटती नहीं दरार।
प्रेम की गहन अभिव्यक्ति।
बहुत बढ़िया ढंग से प्रेम की काव्यमय व्याख्या.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दोहे....
जवाब देंहटाएंसादर.
...प्यार बिना तो सब जग सुना!
जवाब देंहटाएंआखिरी दोहा गहरे उतर गया.
जवाब देंहटाएंसभी दोहे सुंदर ....
जवाब देंहटाएंप्रेम की अनुपम व्याख्या.........
जवाब देंहटाएंसादर्
बहुत सुन्दर दोहे...आभार
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंसमझाते हैं प्यार से, कई अनोखे भेद |
जवाब देंहटाएंहार-जीत के खेल में, बहता काफी स्वेद |
बहता काफी स्वेद, खेद आलस सब दीजै |
कठिन परिश्रम रोज, संग में मिलकर कीजै |
सौ प्रतिशत संयोग, किन्तु ना लेना हल्का |
बड़े चतुर हैं लोग, जरुरी दिन है कल का ||
khoobsurat kavita
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्तियों ने कमाल कर दिया ...बहुत बढ़िया सर....
जवाब देंहटाएंसुन्दर सीख देते दोहे..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी विवेचना।
जवाब देंहटाएंpadhe so pandat hoye
जवाब देंहटाएंसिर्फ दिखावे के लिए, ढोंगी करता प्यार।
जवाब देंहटाएंचटके दर्पण की कभी, मिटती नहीं दरार!
ऐसे प्रेम का तो यही हश्र होना था !
अच्छी कविता !
ढाई आखर प्रेम का, देता है सन्ताप।
जवाब देंहटाएंहार-जीत के खेल में, बढ़ जाता है ताप...
A bitter truth...
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएं