जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। नया है मुसाफिर, नयी जिन्दगी है, नया फलसफा है, नयी बन्दगी है, पढ़ेंगे-लिखेंगे, बरक धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। उल्फत की राहों की सँकरी गली है, अभी सो रही गुलिस्ताँ की कली है, मिटेगा दिलों का फरक धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। दुर्गम डगर में हैं चट्टान भारी, हटानी पड़ेंगी, परत आज सारी, परबत बनेंगे, सड़क धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। |
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शुक्रवार, 27 जुलाई 2012
"परबत बनेंगे, सड़क धीरे-धीरे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गजब प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंमजा आ गया -
सस्वर गुनगुनाने में ||
बड़े सहज ढंग से कह जाते हें आप गहरी बात. बहुत अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! बहुत सुन्दर गीत .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लाजबाब गीत,,,,,शास्त्री जी बधाई,,,,,
हटाएंRECENT POST,,,इन्तजार,,,
दुर्गम डगर में हैं चट्टान भारी,
जवाब देंहटाएंहटानी पड़ेंगी, परत आज सारी,
परबत बनेंगे, सड़क धीरे-धीरे।
जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।।
बहुत खूब !
अब पक्का सीखेंगे हम भी धीरे धीरे
क्या आप भी लिख रहे हैं धीरी धीरे
सबके ब्लाग खोलेंगे हम धीरे धीरे
कुछ ना कुछ जरूर बोलेंगे धीरे धीरे !!!
हटानी पड़ेंगी, परत आज सारी,
जवाब देंहटाएंपरबत बनेंगे, सड़क धीरे-धीरे।
वाह शास्त्री जी -हटानी पड़ेंगी, परत आज सारी,
परबत बनेंगे, सड़क धीरे-धीरे।क्या बात है आपकी बे -लाग अंदाज़ ......कृपया यहाँ भी पधारें -
कविता :पूडल ही पूडल
कविता :पूडल ही पूडल
डॉ .वागीश मेहता ,१२ १८ ,शब्दालोक ,गुडगाँव -१२२ ००१
जिधर देखिएगा ,है पूडल ही पूडल ,
इधर भी है पूडल ,उधर भी है पूडल .
(१)नहीं खेल आसाँ ,बनाया कंप्यूटर ,
यह सी .डी .में देखो ,नहीं कोई कमतर
फिर चाहे हो देसी ,या परदेसी पूडल
यह सोनी का पूडल ,वह गूगल का डूडल .
चर्चा मंच विशेष रहा जितने पढ़े लिंक सभी पे टिपियाए बिना रहा न गया ......कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंकविता :पूडल ही पूडल
कविता :पूडल ही पूडल
डॉ .वागीश मेहता ,१२ १८ ,शब्दालोक ,गुडगाँव -१२२ ००१
जिधर देखिएगा ,है पूडल ही पूडल ,
इधर भी है पूडल ,उधर भी है पूडल .
(१)नहीं खेल आसाँ ,बनाया कंप्यूटर ,
यह सी .डी .में देखो ,नहीं कोई कमतर
फिर चाहे हो देसी ,या परदेसी पूडल
यह सोनी का पूडल ,वह गूगल का डूडल .
उल्फत की राहों की सँकरी गली है,
जवाब देंहटाएंअभी सो रही गुलिस्ताँ की कली है,
मिटेगा दिलों का फरक धीरे-धीरे।
जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।।...बहुत खुबसूरत गीत.. आनंद आरहा है धीत्रे धीरे..
नया है मुसाफिर, नयी जिन्दगी है,
जवाब देंहटाएंनया फलसफा है, नयी बन्दगी है,
पढ़ेंगे-लिखेंगे, बरक धीरे-धीरे।
जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।।
बहुत प्यारी रचना
नया है मुसाफिर, नयी जिन्दगी है,
जवाब देंहटाएंनया फलसफा है, नयी बन्दगी है,
बहुत ही अच्छी भावमय करती प्रस्तुति ... आभार
आदरणीय शास्त्री जी पढ़कर मज़ा आ गया, सुन्दरता के परिपूर्ण इक और ग़ज़ल, तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये......
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत... वाह! आनंद आ गया...
जवाब देंहटाएंसादर।
Parivartan hi sansaar ka niyam hai.
जवाब देंहटाएंRaftaa Raftaa.....
जवाब देंहटाएंसब धीरे धीरे होता है,
जवाब देंहटाएंपर्वत सड़कों में खोता है।
बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंक्या कहने
आज अलग अंदाज का गीत है। बधाई।
जवाब देंहटाएं