हौसले के साथ में आगे बढ़ो। फासले इतने न अब पैदा करो। जिन्दगी तो है हकीकत पर टिकी, मत इसे जज्बात में रौंदा करो। चाँद-तारों से भरी इस रात में, उल्लुओं सी सोच मत रक्खा करो। बुलबुलों से ज़िन्दगी की सीख लो, राग अंधियारों का मत छेड़ा करो। उलझनों का नाम ही है जिन्दगी, हारकर, थककर न यूँ बैठा करो। छोड़कर शिकवें-गिलों की बात को, मुल्क पर जानो-जिगर शैदा करो। खूबसूरत दिल सजा हर जिस्म में, “रूप” पर इतना न मत ऎंठा करो। |
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गुरुवार, 26 जुलाई 2012
"उल्लुओं सी सोच मत रक्खा करो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बेहतरीन गज़ल बिंदास अंदाज़ लिए बोलते हुए तमाम अशआर .
जवाब देंहटाएंजबरदस्त झिडकी, सलाह और उपदेश |
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी ||
सही ज्ञान ..!
जवाब देंहटाएंप्रेरक..
बेहतरीन !
जवाब देंहटाएंbahut achcha likhe.....
जवाब देंहटाएंचित्र में उल्लू नहीं हैं, बुलबुलों का जोड़ा है।
जवाब देंहटाएंउलझनों का नाम ही है जिन्दगी,
जवाब देंहटाएंहारकर, थककर न यूँ बैठा करो
बहुत सुन्दर गजल ...
bahut badhiya guru jee, "roop" shabd ko aapne sahee tarah use kiya hai!!!
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात कही है, बहुत ही सुन्दर..
जवाब देंहटाएंशानदार अशार.... वाह!
जवाब देंहटाएंसादर।
उलझनों का नाम ही है जिन्दगी,
जवाब देंहटाएंहारकर, थककर न यूँ बैठा करो।
:)
Faisala hone se pahle main kyu haar manu.
जवाब देंहटाएंJag abhi jeeta nahi hai, Main abhi hara nahi hun.