हम गधे इस देश के है, घास खाना जानते हैं। लात भूतों के सहजता से, नहीं कुछ मानते हैं।। मुफ्त का खाया हमॆशा, कोठियों में बैठकर. भाषणों से खेत में, फसलें उगाना जानते हैं। कृष्ण की मुरली चुराई, गोपियों के वास्ते, रात-दिन हम, रासलीला को रचाना जानते हैं। राम से रहमान को, हमने लड़ाया आजतक, हम मज़हव की आड़ में, रोटी पकाना जानते हैं। देशभक्तों को किया है, बन्द हमने जेल में, गीदड़ों की फौज से, शासन चलाना जानते हैं। सभ्यता की ओढ़ चादर, आ गये बहुरूपिये, छद्मरूपी “रूप” से, दौलत कमाना जानते हैं। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 28 जुलाई 2012
"घास खाना जानते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
जय हो इन गधों की, सटीक.
जवाब देंहटाएंरामराम
राम से रहमान को, हमने लड़ाया आजतक,
जवाब देंहटाएंहम मज़हव की आड़ में, रोटी पकाना जानते हैं।
एक दम सही लिखा हैं ......सटीक लेखन
देशभक्तों को किया है, बन्द हमने जेल में,
जवाब देंहटाएंगीदड़ों की फौज से, शासन चलाना जानते हैं।
अच्छी बात है.
वाह शाश्त्री जी आप की लेखनी ने सार्थकता की ताकत को बखूबी वयां किया है
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी को हमारा कोटि कोटि नमन !
हृदय तक इन शव्दों की पुकार पहुँच गयी है
मुफ्त का खाया हमॆशा, कोठियों में बैठकर.
भाषणों से खेत में, फसलें उगाना जानते हैं।
कृष्ण की मुरली चुराई, गोपियों के वास्ते,
रात-दिन हम, रासलीला को रचाना जानते हैं।
राम से रहमान को, हमने लड़ाया आजतक,
हम मज़हव की आड़ में, रोटी पकाना जानते हैं।
देशभक्तों को किया है, बन्द हमने जेल में,
गीदड़ों की फौज से, शासन चलाना जानते हैं।
सन्नाट कटाक्ष..
जवाब देंहटाएंBAHUT BADHIYAN PADHKAR ANAND AA GAYA,SIR
जवाब देंहटाएंदेशभक्तों को किया है, बन्द हमने जेल में,
जवाब देंहटाएंगीदड़ों की फौज से, शासन चलाना जानते हैं।
सुंदर व्यंग्य व कटाक्ष ....
बहुत खूब बढ़िया कटाक्ष,,,,
जवाब देंहटाएंबढ़िया कटाक्ष...
जवाब देंहटाएंएक दम सही लिखा हैं ......सटीक लेखन
जवाब देंहटाएंराम से रहमान को, हमने लड़ाया आजतक,
जवाब देंहटाएंहम मज़हव की आड़ में, रोटी पकाना जानते हैं।
देशभक्तों को किया है, बन्द हमने जेल में,
गीदड़ों की फौज से, शासन चलाना जानते हैं।
राजनीतिक विद्रूप पर बेहतरीन टिपण्णी .
हम गधे भारत के हैं ,हम घास खाना जानतें हैं ,
जवाब देंहटाएंजो मिलेगा हुक्म हम उसको बजाना जानतें हैं .
वाह ... बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंमुफ्त का खाया हमॆशा, कोठियों में बैठकर.
जवाब देंहटाएंभाषणों से खेत में, फसलें उगाना जानते हैं।
गज़ब गज़ब गज़ब पूरी रचना शानदार
सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट:-
मेरा काव्य-पिटारा:बुलाया करो
ये हम कौन है.....????..हम सब ??
जवाब देंहटाएंछद्मरूपी “रूप” से, दौलत कमाना जानते हैं।
जवाब देंहटाएं--- ये रूप क्या व कौन है.....
हम तो हैं बिल्कुल ये ही वाले !
जवाब देंहटाएंसुंदर व्यंग्य .....सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएं