"मयंक की डायरी" से पुनः प्रकाशित बहुत समय से हिन्दी व्याकरण पर कुछ लिखने का मन बना रहा था। परन्तु सोच रहा था कि लेख प्रारम्भ कहाँ से करूँ। आज इस लेख की शुभारम्भ हिन्दी वर्ण-माला से ही करता हूँ। मुझे खटीमा (उत्तराखण्ड) में छोटे बच्चों का विद्यालय चलाते हुए 28 वर्षों से अधिक का समय हो गया है। शिशु कक्षा से ही हिन्दी वर्णमाला पढ़ाई जाती है। हिन्दी स्वर हैं- अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ए ऐ ओ औ अं अः। यहाँ तक तो सब ठीक-ठाक ही लगता है। लेकिन जब व्यञ्जन की बात आती है तो इसमें मुझे कुछ कमियाँ दिखाई देती हैं। शिशु के कक्षा में प्रवेश के समय पढ़ाया जाता है। क ख ग घ ड.। च छ ज झ ञ। ट ठ ड ढ ण। त थ द ध न। प फ ब भ म। य र ल व। श ष स ह। क्ष त्र ज्ञ। जो आज भी सभी विद्यालयों में पढ़ाया जाता है। अतः हम भी अपने विद्यालय में यही पढ़ाते थे। एक दिन कक्षा-प्रथम के एक बालक ने मुझसे एक प्रश्न किया कि ड और ढ तो ठीक है परन्तु गुरू जी! यह ड़ और ढ़ कहाँ से आ गया? कल तक तो पढ़ाया नही गया था। प्रश्न विचारणीय था। अतः अब 23 वर्षों से मैं अपने विद्यालय में पढ़वा रहा हूँ। ट ठ ड ड़ ढ ढ़ ण। आज तक हिन्दी के किसी विद्वान ने इसमें सुधार करने का प्रयास नही किया। आजकल एक नई परिपाटी एन0सी0ई0आर0टी0 ने निकाली है। इसके पुस्तक रचयिताओं ने आधा अक्षर हटा कर केवल बिन्दी से ही काम चलाना शुरू कर दिया है। यानि व्याकरण का सत्यानाश कर दिया है। हिन्दी व्यञ्जनों में कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अन्तस्थ और ऊष्म का तो ज्ञान ही नही कराया जाता है। फिर आधे अक्षर का प्रयोग किस प्रकार करना चाहिए? हम तो बताते-बताते, लिखते-लिखते थक गये हैं परन्तु कहीं कोई सुनवाई नही है। इसीलिए हिन्दुस्तानियों की हिन्दी सबसे खराब है। बिन्दु की जगह यदि आधा अक्षर प्रयोग में लाया जाये तभी तो नियमों का भी ज्ञान होगा। अन्यथा आधे अक्षर का प्रयोग करना तो आयेगा ही नही। सत्य पूछा जाये तो अधिकांश हिन्दी की मास्टर डिग्री लिए हुए लोग भी आधे अक्षर के प्रयोग को नही जानते हैं। नियम बड़ा सीधा और सरल सा है- किसी भी परिवार में अपने कुल के बालक को ही चड्ढी चढ़ाया जाता है यानि पीठ पर बैठाया जाता है। अतः यदि आधे अक्षर को प्रयोग में लाना है तो जिस कुल या वर्ग का अक्षर बिन्दी के अन्त में आता है उसी कुल या वर्ग व्यञ्जन का अन्त का यानि पञ्चमाक्षर आधे अक्षर के रूप में प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए - झण्डा लिखते हैं तो इसमें ण का आधा अक्षर ड की पीठ पर बैठा है। अर्थात टवर्ग का ही ड अक्षर है। इसलिए आधे अक्षर के रूप में इसी वर्ग का ण का आधा अक्षर प्रयोग में लाना सही होगा। परन्तु आजकल तो बिन्दी से ही “झंडा” लिखकर काम चला लेते है। फिर व्याकरण का ज्ञान कैसे होगा? इसी तरह मन्द लिखना है तो इसे अगर मंद लिखेंगे तो यह तो व्याकरण की दृष्टि से गलत हो जायेगा। बेड़ा गर्क हो एन,सी,ई.आर.टी. का जो आज भी मानक के नाम पर लोगों की हिन्दी को बिगाड़ने पर तुली हुई है। अब बात आती है संयुक्ताक्षर की- जैसा कि नाम से ही ज्ञात हो रहा है कि ये अक्षर तो दो वर्णो को मिला कर बने हैं। इसलिए इन्हें वर्णमाला में किसी भी दृष्टि से सम्मिलित करना उचित नही है। डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' खटीमा (उत्तराखण्ड) सम्पर्कः 05943-250129, 09368499921 |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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रविवार, 8 जुलाई 2012
"बातें हिन्दी व्याकरण की" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हिंदी लिखने और समझने के लिए .....ज्ञानवर्धक जानकारी
जवाब देंहटाएंव्याकरण का सही ज्ञान मिल रहा है, अच्छा लग रहा है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंक्या बात है वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रवृष्टि कल दिनांक 09-07-2012 को चर्चामंच पर लिंक की जा रही है. सादर सूचनार्थ
इन पोस्टों का अपना ही महत्व है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
यही तो मानव संसाधन है शास्त्री जी ,शिक्षा विभाग को खा गया .
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ भी पधारें -
शुक्रवार, 6 जुलाई 2012
वो जगहें जहां पैथोजंस (रोग पैदा करने वाले ज़रासिमों ,जीवाणु ,विषाणु ,का डेरा है )
उपयोगी ज्ञान..
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक जानकारी
जवाब देंहटाएंguru jee, hindi vyakaran ke akshar yaad bhee nahee hain mujhe, shukriyaa ek baar phir se bataane ke liye....!!!!
जवाब देंहटाएंउपयोगी एवं ज्ञानवर्धक प्रस्तुति..आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर क्या बात है,बढ़िया बात बताई,
जवाब देंहटाएंशिशु की हिन्दी से, वर्णमाला पढ़वाई
वर्णमाला पढवाई, बढ़िया याद कराया
व्याकरण में,व्यञ्जन का पाठ पठाया
शास्त्री,ने व्याकरण,कुछ कमी बतलाई
आज हमलोगो ने उम्दा जानकारी पाई
शास्त्री जी ,कृपया पाठ ज़ारी रखे ....
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ सीखने को मिलेगा !
आभार!
आपने तो बचपन की याद ताज़ा कर दी.
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
सरलता से व्याकरण को समझाया है..आभार..
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक !
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने .
जवाब देंहटाएं.हिंदी की बारीकियों को समझना चाहिए ,मात्रभाषा है हमारी ..और हम पाते हैं की आजकल के विद्यार्थी हिंदी में ही कमज़ोर हैं ..माता पिता भी अंग्रेजी पर जोर देते हैं..
क्या टिप्पणी भी विवाद रहित होती है....????????????.. विवाद के बिना टिप्पणी का क्या अर्थ है...हाँ विबाद संयत, शालीन होना चाहिए...
जवाब देंहटाएं--विवाद = यदि बिना वाद तो उसका कोइ मूल्य ही नहीं वह तो आज्ञा =डिककटेटरशिप हुई ...अतः विवाद का अर्थ विशिष्ट वाद ...
ट ठ ड ड़ ढ ढ़ ण।--- बच्चों को गलत पढवा रहे हैं मास्टरजी ...बच्चों को उचित जबाव देना था कि .....इन अक्षरों पर नीचे बिंदु लगाने से ये बनता है ... ये व्याकरण का एक छोटा सा नियम है..न कि बच्चों की मान कर गलत पढ़ाना प्रारम्भ ...
जवाब देंहटाएं----
-वस्तुतः ..संस्कृत में बिंदु का प्रयोग नहीं के बराबर होता है अनुस्वार आधे न से प्रयोग होता है....परन्तु हिन्दी में आधान व बिंदु दोनों समानार्थी हैं..
जवाब देंहटाएं----अन्यथा फिर यह बताएं कि बिंदु का प्रयोग कहाँ होगा ..इसके लिए क्या नियम है...
कल 15/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
uchit jaankari ke liye dhanyawad
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
हिन्दी और हिन्दी व्याकरण ,दोनों का ही रूप बिगाडा जारहा है इसके लिये पाठ्यक्रम ही नही अखबार ,टीवी,फिल्में तथा शिक्षक भी ,आदि सभी उत्तरदायी हैं । आपने इस पर विशेष ध्यान दिया है यह पुण्यकार्य है । शास्त्री जी मैंने कहीं पडा है कि स्वर दस ही हैं । इस परिभाषा के अनुसार--बिना किसी अवरोध के उच्चरित होने वाली ध्वनियाँ स्वर कहलातीं हैं । इसतरह ऋ अं अः स्वर नही माने गए हैं । इस पर भी गहन विश्लेषण की आवश्यकता है ।
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