पिछले साल इसे श्रीमती अर्चना चावजी को भेजा था। उसके बाद मैं इसे ब्लॉग पर लगाना भूल गया। |
इसको बहुत मन से समवेत स्वरों में मेरी मुँहबोली भतीजियों श्रीमती अर्चना चावजी और उनकी छोटी बहिन रचना बजाज ने गाया है। आप भी इस गीत का आनन्द लीजिए! |
तन, मन, धन से हमको, भारत माँ का कर्ज चुकाना है। फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।। राम-कृष्ण, गौतम, गांधी की हम ही तो सन्तान है, शान्तिदूत और कान्तिकारियों की हम ही पहचान हैं। ऋषि-मुनियों की गाथा को, दुनिया भर में गुंजाना है। फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।। उनसे कैसा नाता-रिश्ता? जो यहाँ आग लगाते हैं, हरे-भरे उपवन में, विष के पादप जो पनपाते हैं, अपनी पावन भारत-भू से, भय-आतंक मिटाना है। फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।। जिनके मन में रची बसी, गोरों की काली है भाषा, ये गद्दार नही समझेंगे, जन,गण, मन की अभिलाषा , हिन्दी भाषा को हमको, जग की शिरमौर बनाना है। फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।। प्राण-प्रवाहक, संवाहक हम, यही हमारा परिचय है, हम ही साधक और साधना, हम ही तो जन्मेजय हैं, भारत की प्राचीन सभ्यता, का अंकुर उपजाना है। फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।। वीरों की इस वसुन्धरा में, आयी क्यों बेहोशी है? आशाओं के बागीचे में, छायी क्यों खामोशी है? मरघट जैसे सन्नाटे को, दिल से दूर भगाना है। |
जिनके मन में रची बसी, गोरों की काली है भाषा,
जवाब देंहटाएंये गद्दार नही समझेंगे, जन,गण, मन की अभिलाषा ,
हिन्दी भाषा को हमको, जग की शिरमौर बनाना है।
फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।।
बहुत ही सुन्दर और भावप्रवण गीत्………शानदार आह्वान्।
तन, मन, धन से हमको, भारत माँ का कर्ज चुकाना है..
जवाब देंहटाएंअपनी पावन भारत-भू से, भय-आतंक मिटाना है..
बहुत ही सुन्दर देशप्रेम से ओतप्रोत रचना...
ati sundar
जवाब देंहटाएंलखनऊ में होगा ब्लॉगरों का सम्मान, उपस्थित होगी पूरी मीडिया और देश के जानेमाने प्रबुद्धकार
भावप्रवण गीत और मधुर आवाज का संगम
जवाब देंहटाएंवीरों की इस वसुन्धरा में, आयी क्यों बेहोशी है?
जवाब देंहटाएंआशाओं के बागीचे में, छायी क्यों खामोशी है?
मरघट जैसे सन्नाटे को, दिल से दूर भगाना है।
फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।।
बहुत सुंदर गीत !बहुत सुंदर रचना !
jitna sundar geet utna madhur gaayan.. jitni prashansha ki jaaye kam hai...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गीत्
जवाब देंहटाएंgeet bahut sunder hai aur usse bhi adhik manmohak aavaz aur gayan ne samaa baandh diya...bahut khoob.
जवाब देंहटाएंवाह. यह वास्तव में ही सुंदर रचना है.
जवाब देंहटाएंsir ji namskar
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder geet hein
suna to nahi
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और प्रेरक रचना..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति..... सुंदर भाव सुंदर आवाज़...
जवाब देंहटाएंप्राण-प्रवाहक, संवाहक हम, यही हमारा परिचय है,हम ही साधक और साधना, हम ही तो जन्मेजय हैं,भारत की प्राचीन सभ्यता, का अंकुर उपजाना है।फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।।
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया शास्त्री जी आपकी उर्जामय,हृदय को जाग्रत करती प्रस्तुति पढकर.
आज ही नई पोस्ट जारी की है.कृपया मेरे ब्लॉग पर आ अपने सुविचारों से वहां भी आनंद का संचार करें
dhnya hai aapki lekhni..
जवाब देंहटाएंdhnya hai aapka lekhan !
गेयता के आधार पर किया गया किचिंत बदलाव भी दोनों की सुमधुर आवाज में अच्छा लगा...बधाई.
जवाब देंहटाएंगेट के साथ आवाज़ भी जोश भर देती है ..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कविता खूबसूरत आवाज़!
जवाब देंहटाएंआपने सच्चे मन से गाया है, बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंमार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com