इन्तजार जिसका था, उसके दर्शन पाकर धन्य हुआ। तप करने के बाद भक्त का, आराधन अनुमन्य हुआ।। प्रश्नपत्र थे कठिन, मगर हल करना भी थी मजबूरी, तन और मन से मैंने, अपनी शक्ति लगा दी थी पूरी, अब तो जाना-पहचाना सा, दुर्गम-सुगम अरण्य हुआ। तप करने के बाद भक्त का, आराधन अनुमन्य हुआ।। एक झलक पाने को, जाने कितने जन्म लिए मैंने, अमृत की चाहत में, जाने कितने गरल पिये मैंने, श्रापों से जब मुक्त हुआ तो, प्यार अगाध अनन्य हुआ। तप करने के बाद भक्त का, आराधन अनुमन्य हुआ।। मैं हूँ लीन साधना में, जग कहता है मुझको पागल, रस-छन्दों से भर दी तुमने, मेरे शब्दों की छागल, नाम“रूप”था पर कुरूप था, अब कुछ-कुछ लावण्य हुआ। तप करने के बाद भक्त का, आराधन अनुमन्य हुआ।। |
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शनिवार, 7 मई 2011
"दर्शन पाकर धन्य हुआ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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itni pyaari aradhna ki pahli tippani kar mai bhi dhanya hui.bahut bhaavpoorn aradhna.naman.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गीत!
जवाब देंहटाएं"एक झलक पाने को, जाने कितने जन्म लिए मैंने ,
जवाब देंहटाएंअमृत की चाहत में,जाने कितने गरल पिए मैंने,
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नाम 'रूप' था पर कुरूप था, अब कुछ-कुछ लावण्यहुआ |
तप करने के बाद भक्त का, आराधन अनुमन्य हुआ |"
.......................अंतस्तल से माँ का आराधन
....सुमधुर ,ह्रदयश्पर्सी, लयबद्ध ,छंदबद्ध,प्रवाहपूर्ण एवं पूर्ण समर्पण भाव का सुन्दर गीत
साक्षात् सरस्वती माँ के दर्शन हुए ..सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गीत!
जवाब देंहटाएंएक झलक पाने को, जाने कितने जन्म लिए मैंने,
जवाब देंहटाएंअमृत की चाहत में, जाने कितने गरल पिये मैंने,
श्रापों से जब मुक्त हुआ तो, प्यार अगाध अनन्य हुआ।
तप करने के बाद भक्त का, आराधन अनुमन्य हुआ।।
अत्यंत सुन्दर पंक्तियाँ! ख़ूबसूरत और दिल को छू लेने वाली गीत!
आपकी यह रचना पढ़कर मैं भी धन्य हुआ...
जवाब देंहटाएंझर झर बहता काव्य निर्झर।
जवाब देंहटाएंतप करने के बाद भक्त का, आराधन अनुमन्य हुआ।।
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर पंक्तियाँ!
माँ की असीम कृपा है आप पर और ये इसी प्रकार बनी रहे…………बेहद खूबसूरत आराधना है……………।
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
सुन्दर पंक्तियाँ.....ख़ूबसूरत गीत!
माँ की कृपा इसी प्रकार बनी रहे हम सब पर
जवाब देंहटाएंइसी तरह दर्शन होते रहे ...तथास्तु !देवी की कृपा बनी रहे
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ....सुंदर स्तुति माँ शारदा की .....
जवाब देंहटाएंनाम“रूप”था पर कुरूप था, अब कुछ-कुछ लावण्य हुआ। तप करने के बाद भक्त का, आराधन अनुमन्य हुआ।।
जवाब देंहटाएंमन मगन हों गया शास्त्री जी आपकी भक्तिमय प्रस्तुति को पढ़ कर.आपके भक्ति भाव अनुपम है.सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार.
बहुत भावपूर्ण गीत.
जवाब देंहटाएंभक्ति भाव से परिपूर्ण गीत.. हमेशा की तरह!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंbahut khoob...
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