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...अमलतास का सुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंजलती लू में भी मनभावन
पीत वर्ण का ओज प्रखर
जाने कितनी रचनाओं में
अमलतास हो गया अमर
जितने सुन्दर अमलतास उतना सुन्दर वर्णन.
जवाब देंहटाएंअमलतास को भी शब्द दे दिये……………बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंBahut sundar shashtri ji......
जवाब देंहटाएंअमलतास को दिल से महसूस किया है आपने... आजकल लोगों को ऐसी फुर्सत कम ही होती है।
जवाब देंहटाएं"तपती हुई दुपहरी में, झूमर जैसे लहराते हैं।
जवाब देंहटाएंकंचन जैसा रूप दिखाने, अमलतास आ जाते हैं।।"
शास्त्री जी,आपकी प्राकृतिक छतरी का जवाब नहीं.कंचन जैसा रूप तो है ही,हीरे जैसा दिल भी साथ है.
प्रकृति से बड़ा गुरु तो न हुआ है ,न ही आगे होगा.
"दुख में कैसे मुस्काते हैं, यह जग को बतलाते हो।
धीरज सच्चा गुण होता है, सीख यही सिखलाते हो।।"
गर्मी के मौसम और अमलतास को बिल्कुल जीवंत कर दिया है आपने. प्रकृति की ओर लौट चलने का सन्देश है इस रचना में. बहुत ही सार्थक कविता. बधाई!
जवाब देंहटाएं----देवेंद्र गौतम
Maano aapne mere dil ki baat kah di hai.
जवाब देंहटाएंAur khoob kahi hai aapne.
asal men main out of station hun aajkal.
bas aise hi roman men kar diya comment ki gair hazir n rahun .
प्रकृति की अनुपम छटा को शब्दों में बड़ी ही खूबसूरती आपने ढाला है!
जवाब देंहटाएंआभार !
वाह!! अमलतास का काव्यमय चित्रांकन
जवाब देंहटाएंadbhut ,, aap ka socne ka najariye bahut komal hai,, aap jaise insaan aaj k bheed bhare mahol me bahut kam milte hai,, aapki soch mahan hai,,
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया कविता और चित्र तो गजब ही ढा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंgarmi se hai sabka bura haal
जवाब देंहटाएंphir bhi hamne liya iska maza hazaar........ye hai jindagi
बहुत सुन्दर रचना..जैसे गर्मी के मौसम में ठंडी बयार आगई...फोटो भी बहुत सुन्दर.. आभार
जवाब देंहटाएंइस झूमर का क्या कहना ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंवैसे ये जो स्टेशन वाला चित्र है ,वो कहाँ का है ? शायद म. प्र. के किसी स्टेशन का ?
amltaas ki trah hi har insaan ko khush rahnaa chahiae shastri ji ?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंइसकी तो फली भी बड़े काम की होती है...
जवाब देंहटाएंguru ji...chitra bahut achhey lage kavita ke saath saath
जवाब देंहटाएंअमलतास का तो वैसे भी बहुत महत्व है इंसान के जीवन में ... चित्रों के साथ सजी लाजवाब रचना है ...
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्रों के साथ बहुत ही सुंदर रचना । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंदुख में कैसे मुस्काते हैं, ये जग को बतलाते हैं।
जवाब देंहटाएंसहना सच्चा गहना होता है, सीख यही सिखलाते हैं।।
बहुत सुन्दर रचना प्रेरणादायक ..
दुख में कैसे मुस्काते हैं, ये जग को बतलाते हैं।
जवाब देंहटाएंसहना सच्चा गहना होता है, सीख यही सिखलाते हैं।।
bahut saarthak rachanaa sunder chitron ke saath badhaai aapko.
रेल-काव्य, प्लेटफार्म में अमलतास।
जवाब देंहटाएंएक उम्दा रचना के लिए बधाइयाँ ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्र, ओर अति सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंकविता की हर पंक्तियों में और चित्रों में होड़ सी लगी है...मैं सुंदर हूँ।
जवाब देंहटाएं..वाह!
शास्त्री जी, बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
दुख में कैसे मुस्काते हैं, ये जग को बतलाते हैं।
जवाब देंहटाएंसहना सच्चा गहना होता है, सीख यही सिखलाते हैं।।
इतना सुंदर वर्णन अमलतास का ...बहुत गहरी बात से जोड़ता हुआ और उतना ही सुंदर चित्र ..!! मन को प्रभावित कर रही है आपकी रचना ..!!ati uttam kriti.
chitra bhi bahut sunder hain aur rachna to laajabab hai.sahansheelta ki prerna deti hui rachna bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंAmaltas ka sundar manmohak prastuti ke liye aabhar..
जवाब देंहटाएंजितने सुन्दर अमलतास उतना सुन्दर वर्णन.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना,ठंडी बयार फोटो भी बहुत सुन्दर.. आभार
जवाब देंहटाएंयह कविता वास्तव में बहुत अच्छी है
जवाब देंहटाएंऔर बालकविता के मानकों पर अकदम खरी उतरती है!
--
आश्चर्य की बात है कि
इसे बालकविता का लेबल क्यों नहीं दिया गया?
भयंकर गर्मी के आलम में कविता बहुत सुकून दे रही है !
जवाब देंहटाएं"तपती हुई दुपहरी में, झूमर जैसे लहराते हैं।
जवाब देंहटाएंकंचन जैसा रूप दिखाने, अमलतास आ जाते हैं।।"
शास्त्री जी गर्मी के महीने में यह रचना ठंडक दे रही है , धन्यवाद
इस कविता को
जवाब देंहटाएंबालकविता लेबल में डालने के लिए
बच्चे आपके आभारी रहेंगे!
वाह! शास्त्री जी क्या बात है! जितनी सुन्दर तस्वीरें उतनी ही ख़ूबसूरत रचना!
जवाब देंहटाएंप्रकृति का सानिध्य कराती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआभार
अमलतास का सुन्दर वर्णन है। ....बहुत ही सार्थक कविता. ...आभार !
जवाब देंहटाएंप्रकृति के अनुपम छटा कोआप ने अपने शब्दों मे विखेर दिया … बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंरवि जी ने कई बार इस कविता का लिंक भेजा , किन्तु संयोग कि मैं आपकी इस इतनी सुन्दर कविता को अत्यंत विलम्ब से देख सका . चित्र भी बहुत मनभावन हैं .रवि जी ने लिखा है कि आश्चर्य की बात है कि इसे बालकविता का लेबल क्यों नहीं दिया गया?
जवाब देंहटाएंकदाचित कंचन,आकुल ,भूपर ,सरसाते ,शाखाओं जैसे क्लिष्ट शब्दों के आ जाने से आपने इसे किशोरों अथवा बड़ों के अधिक उपयुक्त समझा होगा . अत:मैं आपसे पूर्णत : सहमत हूँ .फ़िलहाल ... आपकी यह कविता पाठ्य कविता अधिक है जो किशोरों का भी प्रचुर रसास्वादन करेगी .
आपको हार्दिक बधाई और रवि जी को साभार
नागेश जी,
जवाब देंहटाएंमैंने केवल एक ही बार इस कविता का लिंक आपको भेजा था!
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आज फिर से याद दिलाने पर आपने अपनी प्रतिक्रिया दी, इसके लिए आभार!
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पर आप तो भ्रम की स्थिति बनाकर चले गए!
जिन शब्दों को आपने कठिन बताया है,
मेरे विचार से वे बाल-वर्ग के लिए उतने कठिन नहीं हैं!
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शास्त्री जी अब इसे बालकविता का लेबल दे चुके हैं!