|
कोई ख्याल नहीं है मन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। सफर चल रहा है अनजाना, नहीं लक्ष्य है नहीं ठिकाना, कब आयेगा समय सुहाना, कब सुख बरसेगा आँगन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। कब गाएगी कोकिल गाने, गूँजेंगे कब मधुर तराने, सब बुनते हैं ताने-बाने, कब सरसेगा सुमन चमन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। सूख रही है डाली-डाली, नज़र न आती अब हरियाली, सब कुछ लगता खाली-खाली, झंझावात बहुत जीवन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। कहाँ गया वो प्यार सलोना, काँटों से है बिछा बिछौना, मनुज हुआ क्यों इतना बौना, मातम पसरा आज वतन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। यौवन जैसा “रूप” कहाँ है, खुली हुई वो धूप कहाँ है, प्यास लगी है, कूप कहाँ है, खरपतवार उगी उपवन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। |
saras, madhur rachna.
जवाब देंहटाएंसरल शब्द, गहन भाव सीधे मन में उतरते हुये।
जवाब देंहटाएंकहाँ गया वो प्यार सलोना,
जवाब देंहटाएंकाँटों से है बिछा बिछौना,
मनुज हुआ क्यों इतना बौना,
मातम पसरा आज वतन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।।
गीत में ज़बरदस्त प्रवाह है.भाषा,भाव सब कुछ मनमोहक.वाह शास्त्री जी.
कहाँ गया वो प्यार सलोना,
जवाब देंहटाएंकाँटों से है बिछा बिछौना,
मनुज हुआ क्यों इतना बौना,
मातम पसरा आज वतन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।।
बहुत सुन्दर, मनमोहक और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने!
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसुंदर छंदों में, बड़ी सहजता से, गहनतम अभिव्यक्ति।
कहाँ गया वो प्यार सलोना,
जवाब देंहटाएंकाँटों से है बिछा बिछौना,
मनुज हुआ क्यों इतना बौना,
मातम पसरा आज वतन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।।
@ मंयक जी ! आपकी चिंता वाजिब है। इन्हीं बौनों ने ब्लॉगिंग में भी क़दम रख दिए हैं बल्कि जमा भी लिए हैं। ये लोग ‘टिप्पणी में भ्रष्टाचार‘ मचाते देखे भी जा सकते हैं। इन्हें बड़ा बनाने के प्रयास हमने शुरू कर दिए हैं।
शुक्रिया ।
‘टिप्पणी के भ्रष्टाचार‘ से मुक्त होता है बड़ा ब्लॉगर
आपकी हर रचना पहले वाली से और बेहतर होती है..
जवाब देंहटाएंआपकी हर एक रचना मे एक संदेश छुपा होता है.
जवाब देंहटाएंप्रणाम
mera man bhi kar raha hai neel-gagan mein uddne ko..!
जवाब देंहटाएंकहाँ गया वो प्यार सलोना,
जवाब देंहटाएंकाँटों से है बिछा बिछौना,
मनुज हुआ क्यों इतना बौना,
मातम पसरा आज वतन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।aapki her rachanaa laajabab hoti hai.bahut hi saarthak rachna sunder aur saral shabdon main aek achcha sandesh deti hui .badhaai aapko.
adbhut anokhi rachna.ati sunder.badhaai.
जवाब देंहटाएंकहाँ गया वो प्यार सलोना,
जवाब देंहटाएंकाँटों से है बिछा बिछौना,
मनुज हुआ क्यों इतना बौना,
मातम पसरा आज वतन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।
गीत के माध्यम से सार्थक चिन्ता व्यक्त कर दी है ..सुन्दर गीत
वाह! बहुत ही बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंप्रेमरस.कॉम
बहुत बढ़िया रचना.
जवाब देंहटाएंसादर
ये हुआ ना आभासी दुनिया का सदुपयोग्………बहुत सुन्दर गीत बना है गुनगुनाये जा सकने वाला।
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंकहाँ गया वो प्यार सलोना,
जवाब देंहटाएंकाँटों से है बिछा बिछौना,
मनुज हुआ क्यों इतना बौना,
मातम पसरा आज वतन में।
....मन को छूती बेहतरीन प्रस्तुति..आभार
saral shabd......sachi hai man ki abhivuakti...bahut khub bhai ji
जवाब देंहटाएंअति सुंदर ...
जवाब देंहटाएंSimple n effective ! Liked it.
जवाब देंहटाएंवाह! मन को पखेरू मान कर बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है आपने शास्त्री जी|
जवाब देंहटाएंExcellent creation !
जवाब देंहटाएंगीत में .... भाषा...........भाव ........प्रवाह है
जवाब देंहटाएंजिन्दगी की सच्चाई बताती बहुत अच्छी रचना। प्रेम वास्तव में तिरोहित होता जा रहा है।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 31 - 05 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
@कोई ख्याल नहीं है मन में।
जवाब देंहटाएंपंछी उड़ता नीलगगन में।।
वाकई , गज़ब की पंक्तियाँ . कोई ख्याल मन में नहीं होने की बात कहकर भी आपने कितने सारे ख़याल उकेर दिए अपनी इस रचना में. खास तौर पर ये पंक्तियाँ
"कहाँ गया वो प्यार सलोना,
काँटों से है बिछा बिछौना,
मनुज हुआ क्यों इतना बौना,
मातम पसरा आज वतन में।
पंछी उड़ता नीलगगन में।।"
इस बेहतरीन कविता के लिए बधाई और शुभकामनाएं
खुली हुई वो धूप कहाँ है
जवाब देंहटाएंप्यास लगी है, वो कूप कहाँ है
खरपतवार उगी उपवन में
पंछी उड़ता नील गगन में....
बेहतरीन रचना......