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मंगलवार, 24 मई 2011
"अच्छा हुआ! जो मैं नारि न हुआ!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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वाह आप तो दोनो तरफ़ से बैटिंग करने उतर गये हैं
जवाब देंहटाएंgr8..gr8...gr8...kavita haasya ka safal raspaan karaati hai aur aurat hona kisi mard ke bas ki baat nahi.ye sandesh dene ke liye bhi gr8 ati ati uttam rachna.
जवाब देंहटाएंवाह ! चित भी मेरी और पुट भी मेरी ! वाह शात्री जी क्या नारी श्रृंगार किया है ...
जवाब देंहटाएं' मान गए ..मुगले आजम '...
नई सोच के साथ उम्दा गीत।
जवाब देंहटाएंयह भी खूब रही
जवाब देंहटाएंकह दीजिये ना री मैं नारी नहीं
एक तरफ़ नारी की प्रशंसा और दूसरी तरफ़ अपनी……………दोनो हाथों मे लड्डू रख लिये हैं…………नारियों की तो प्रशंसा मिलेगी ही और पुरुष वर्ग भी खुश्…………इसे कहते हैं लेखन का कमाल्……………ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर्॥
जवाब देंहटाएंवाह ....यहां भी खूब कहा है आपने ...।
जवाब देंहटाएंजो जहाँ है उसकी अपनी उपयोगिता और सार्थकता है....नारी न होकर आपने माँ होने का गौरव खो दिया है !
जवाब देंहटाएंbahut khoob !
जवाब देंहटाएंचिट् भी मेरी पट भी मेरी :) ये भी खूब रही.
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत.
नारी बनकर तो जीवन की
जवाब देंहटाएंछिन ही जाती सब आजादी।
इधर-उधर आने-जाने में,
बाधाएँ आड़े आ जाती।।
बिल्कुल सही! बहुत सुन्दर गीत! बधाई!
चित भी मेरी , पट भी मेरी ...
जवाब देंहटाएंनिष्पक्ष होकर देखना , यही तो सच्चे इंसान की विशेषता है !
yah apki adhuri ichha है ya samajik vyangya !
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना .. अच्छा हुआ सर आप खाना बनाने से बच गए ...
जवाब देंहटाएंये भी खूब रही मान्यवर
जवाब देंहटाएंसुन्दर ..अति सुन्दर....
जवाब देंहटाएंभारतीय समाज में स्त्रियों की जो दशा है , उसे पुरुष बखूबी जानते हैं, और इसीलिए एक भी पुरुष ऐसा नहीं मिलेगा जो स्त्री बनना चाहेगा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंमान्यवर ! भारतीय नारी की वेदना को व्यंग के माध्यम से अच्छा प्रस्तुत किया है आपने !
आशा है की आप इसी तरह पुरुषों की वेदना को भी प्रस्तुत करेंगे !
बहुत सुन्दरता से संभाला है मामला... :)
जवाब देंहटाएंकुछ भी होने से कुछ लाभ हैं तो कुछ हानि ...आप ज्यादा हानि से बच गए .. अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंwah ji wah..mazaa aa gaya naari na hua soch ke
जवाब देंहटाएंएक पे रहने का भाई...या तो नर हो जाओ या नारी...आदमी चाहे जितना बहादुर बन ले...पर अंत में नारी ही है...चाहे माँ, बहन, बीवी या बेटी...जितनी कठिनाइयों का आपने वर्णन किया है...उन्हें सहने के लिए बड़ा जिगरा चाहिए...हमारे यहाँ नारी शक्ति की उपासना ऐवें ही नहीं होती...आपने उनको शब्द दिए...बहुत बहुत बधाइयाँ...
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