खुशी में दीप जलवाना, उन्हें अच्छा नहीं लगता। गले लोगों को मिलवाना, उन्हें अच्छा नहीं लगता।। समाहित कर लिए कुछ गुण, जिन्होंने उल्लुओं के हैं, गगन पर सूर्य का आना, उन्हें अच्छा नहीं लगता। जिन्हें है ताड़ का, काटों भरा ही रूप हो भाया, उन्हें बरगद सा बन जाना, कभी अच्छा नहीं लगता। बिखेरा है करीने से, सभी माला के मनकों को, पिरोना एकता के सूत्र में, अच्छा नहीं लगता। जिन्हें रांगे की चकमक ने लुभाया जिन्दगीभर है, दमकता सा खरा कुन्दन, उन्हें अच्छा नही लगता। प्रशंसा खुद की करना और चमचों से घिरा रहना, प्रभू की वन्दना गाना, उन्हें अच्छा नही लगता। सुनाते ग़जल औरों की, वो सीना तान महफिल में, हमारा गुनगुनाना भी,उन्हें अच्छा नहीं लगता। हुए सब पात हैं पीले, उमर ढलने लगी है अब, दिल-ए-नादां को समझाना, उन्हें अच्छा नहीं लगता। |
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सोमवार, 1 नवंबर 2010
“उन्हें अच्छा नहीं लगता!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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हुए सब पात हैं पीले, उमर ढलने लगी बेशक,
जवाब देंहटाएंदिल-ए-नादां को समझाना, उन्हें अच्छा नहीं लगता।
वाह लाजवाब शेर। बधाई।
कहीं जब दीप जलते हैं, उन्हें अच्छा नहीं लगता।
जवाब देंहटाएंगले जब लोग मिलते हैं, उन्हें अच्छा नहीं लगता।।
बहुत सुंदर....
हमारा गुनगुनाना भी, उन्हें अच्छा नहीं लगता।
जवाब देंहटाएंलड़ाया है करीने से, सभी माला के मनकों को,
जवाब देंहटाएंपिरोना एकता के सूत्र में, अच्छा नहीं लगता।
बिल्कुल सही कह रहे हैं आप्…………………इन ही लोगों की वजह से आज ये हालात हैं देश के………………दर्द उभर कर आया है।
Shastri ji... aapki gazal ke aik aik mankey bahut bahye.. aur aapne uneh jis sutr me bakhoobi se piroya ..kya kahiyega .. vaah vaah.. bahut khub..
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति दिल के बेहद करीब सुन्दर शब्द रचना के लिये बधाई ।
जवाब देंहटाएंदमकता सा खरा कुन्दन, उन्हें अच्छा नही लगता।
जवाब देंहटाएंsundar rachna!
बहुत सुन्दर लिखा है , चोट खाए हुए हैं अहसास ..ये कलम बोलती है ...एक सुझाव है उल्लुओं लिखने की जगह कोई मुलायम शब्द इस्तेमाल करें , जोर का झटका धीरे से काम कर जाएगा , कलाकार को मुलायम होना चाहिए , चोट भी खाएं तो नफासत के साथ , नाजुक खयाली के साथ ...माफ़ करियेगा ...
जवाब देंहटाएंमन की व्यथा को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं ...आज कहाँ लोंग दूसरोंके बारे में सोचते हैं ? आत्ममुग्ध हो कर जीते हैं ..बहुत अच्छी रचना ..
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कल ( मंगलवार ...२-११-१० ) के साप्ताहिक काव्य मंच पर चर्चा मंच में ली जा रही है ...
बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंसमाहित कर लिए कुछ गुण उन्होंने उल्लुओं के हैं,
जवाब देंहटाएंचमकता गगन पर सूरज, उन्हें अच्छा नहीं लगता ..
मन क़ि व्यथा को शब्द दे लिए हैं ... जान डाल दी है शब्दों में .... लाजवाब शास्त्री जी ....
वाह-वाह!वाह-वाह! वाह-वाह! वाह-वाह!
जवाब देंहटाएंक्या बात है! क्या बात है! क्या बात है!
उल्लू वाला उपमा अच्छा लगा, इसका मतलब ये नहीं कि और सब अच्छा नहीं लगा।
बहुत सुन्दर और नवीन उपमा वाली कविता.. मन मुग्ध हो गया
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आप की रचना हमेशा शिक्षा से भरपुर होती हे पढ कर मन शांत हो जाता हे, इस सुंदर रचना के लिये आप का धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंजिन्हें है ताड़ का काटों भरा ही रूप हो भाया,
उन्हें बरगद सा बन जाना, कभी अच्छा नहीं लगता
वाह बहुत गहरे भाव
दिवाली के पवन पर्व पर बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंदिवाली के पर्व पर बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबधाई
कमाल कर दिया शास्त्री जी ,
जवाब देंहटाएंशायद पहली बार आपकी कविता पढ़ रहा हूँ ! सरल भाषा में इन लोगों का बड़ा अच्छा परिचय दिया है ! काश इन लोगों को कुछ अपनी असलियत का अहसास हो !
नेता जी ???
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना. बस इतना पता नहीं चल रहा इस रचना का नायक कौन है ? :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआ.शास्त्री जी ,
जवाब देंहटाएंआज के जीवन की वास्तविकता का बहुत सुन्दर निरूपण है.सत्य और काव्य-सौन्दर्य का दुर्लभ संयोग इस रचना में .
दीपावली हेतु मंगल-कामनाएँ स्वीकार करें !
(आपने चर्चामंच पर स्थान दे कर मेरी कविता को महत्व दिया- मैं उपकृत हूँ .)
aapki rachna padhna mujhe bahut achha lagta hai guru ji!!
जवाब देंहटाएंbahut sundar arthon wali kavita.
जवाब देंहटाएंअपने परिवेश में मौजूद अंतर्विरोधों से जूझते संवेदनशील मन की अंतर्व्यथा के समंदर में छिपे बेहद गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
जिन्हें ये बाते अच्छी नहीं लगती, वो मुझे अच्छा नहीं लगता है
जवाब देंहटाएं"हुए सब पात पीले उम्र ढलने लगी है ,
जवाब देंहटाएंदिले नादान को समझाना उन्हें अच्छा नहीं लगता "
बहुत भाव पूर्ण अभिव्यक्ति |बधाई
आशा
वाह वाह!! माननीय..बहुत बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....बधाई...
जवाब देंहटाएं