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गुरुवार, 25 नवंबर 2010
"ग़ज़ल:आशा शैली" (प्रस्तोता:डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत ही लाजवाब गजल, शुभकामनाएं. प्रणाम.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गज़ब की गज़ल है……………हर शेर उम्दा……………बहुत ही सुन्दर ……………दिल मे उतर गयी।
जवाब देंहटाएंवो मुंसिफ़ कुछ नहीं सुनता किसी की
जवाब देंहटाएंन उसके पास अपना मामला रख
कई मज़लूम होंगे इस जहाँ में
सभी के वासते लब पर दुआ रख
लाजवाब !
…बहुत ही सुन्दर गज़ल है, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंन रो-रो कटेगी उम्र सारी
जवाब देंहटाएंतू मुस्कानों की दामन में ज़िया रख
बहुत खूबसूरत गज़ल पढवाई है ...आभार
बहुत लाज़बाब गज़ल।
जवाब देंहटाएंलाजवाब गजल
जवाब देंहटाएंएक एक शब्द जैसे मोती..
जवाब देंहटाएंहर शेर उम्दा....लाजवाब गजल
जवाब देंहटाएंबहुत हैं चाहने वाले तुम्हारे'
जवाब देंहटाएंतू शैली दामने-दिल को तो वा रख।
बेहतरीन शे'र ,ख़ूबसूरत नाज़ुक ग़ज़ल।
शिली जी का आभार व उनको मुबारकबाद्।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंकई मज़लूम होंगे इस जहाँ में
जवाब देंहटाएंसभी के वासते लब पर दुआ रख
बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल है ... कमाल के शेर हैं ... सलाम है मेरा ...
छोटी बहर की उम्दा गजल।शैली और शास्त्रीजी को बधाई।
जवाब देंहटाएंलाजवाब गज़ल!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
मन को छूने वाली खूबसूरत गजल. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
कई मज़लूम होंगे इस जहाँ में
जवाब देंहटाएंसभी के वासते लब पर दुआ रख
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ...