खूब चर्चित रहें, इस
नये साल में
राष्ट्र उत्कर्ष
के यज्ञ में रात दिन
आप अर्पित रहें, इस
नये साल में
--
नये साल में कामना,
करता यही मयंक।
सरिताएँ बहती
रहें, धरती पर निष्पंक।
नये साल में छोड़
दे, हम वो सभी रिवाज।
जिनसे सतत् विकास के, थम जायें सब काज।।
शासन का हर फैसला,
लेती जनता झेल।
जी.यस.टी. के बाद
भी, महँगा है क्यों तेल।।
गये साल में था
मिला, जनता को उपहार।
खुश होकर सब
झेलते, जी.यस.टी. की मार।।
तानाशाह भले रहें,
भारत की सरकार।
लेकिन महँगाई नहीं,
लोगों को स्वीकार।।
नये साल का हो रहा,
लोगों को आभास।
दो हजार सत्रह चला,
बनने को इतिहास।।
आदिकाल से चल रही,
यहाँ सनातन रीत।
वर्तमान ही बाद
में, होता सदा अतीत।।
खुशी और अवसाद
में, बीत गया है वर्ष।
बाल-वृद्ध,
नर-नारि को, नया साल दे हर्ष।।
साल पुराना ही सदा,
लाता है नववर्ष।
वो हो जाता है अमर,
जो करता संघर्ष।।
|
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रविवार, 31 दिसंबर 2017
"इस नये साल में" दोहे और मुक्तक (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गीत "साल पुराना बीत रहा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
साल पुराना बीत रहा है, कल की बातें छोड़ो।
फिर से अपना आज सँवारो, सम्बन्धों को जोड़ो।।
आओ दृढ़ संकल्प करें, गंगा को पावन करना है,
हिन्दी की बिन्दी को, माता के माथे पर धरना है,
जिनसे होता अहित देश का, उन अनुबन्धों को तोड़ो।
फिर से अपना आज सँवारो, सम्बन्धों को जोड़ो।।
नये साल में पनप न पाये, उग्रवाद का कीड़ा,
जननी-जन्मभूमि की खातिर, आज उठाओ बीड़ा,
पथ से जो भी भटक गये हैं, उन लोगों को मोड़ो।
फिर से अपना आज सँवारो, सम्बन्धों को जोड़ो।।
मानवता की बगिया में, इंसानी पौध उगाओ,
खुर्पी ले करके हाथों में, खरपतवार हटाओ,
रस्म-रिवाजों के थोथे, अब चाल-चलन को तोड़ो।
फिर से अपना आज सँवारो, सम्बन्धों को जोड़ो।।
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शनिवार, 30 दिसंबर 2017
गीत "ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पड़ने वाले नये साल के हैं कदम!
स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! कोई खुशहाल है. कोई बदहाल है, अब तो मेहमान कुछ दिन का ये साल है, ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! रौशनी लायेगा अंशुमाली धवल, ज़र्द चेहरों पे छायेगी लाली नवल, मुस्कुरायेंगे गुलशन में सारे सुमन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! धन से मुट्ठी रहेंगी न खाली कभी, अब न फीकी रहेंगी दिवाली कभी. मस्तियाँ साथ लायेगा चंचल पवन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! |
शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017
गीत "बिखर गया ताना-बाना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गुरुवार, 28 दिसंबर 2017
दोहे "सुधरेंगे अब हाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
होने वाला है विदा, अब मौजूदा साल।
नये साल के साथ में, होगा खूब धमाल।।
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दरवाजा खटका रहा, नया-नवेला साल।
आशाएँ मन में जगीं, सुधरेंगे अब हाल।।
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आतुर हैं अब लोग सब, आओ नूतन वर्ष।
विपदाओं का अन्त हो, जीवन में हो हर्ष।।
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शायद नूतन साल में, शासन दे उपहार।
नीलगगन से धरा पर, बरसे सुख की धार।।
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भोजन करके पेटभर, लेवें सभी डकार।
मलयानिल से धरा पर, आयें सुखद बयार।।
--
छन्दों में कविता करें, सब हो भावविभोर।
दोहों का उपहास अब, करें न दोहाखोर।।
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नहीं किसी के पाँव में, चुभें कहीं भी शूल।
बगिया में खिलते रहें, सुन्दर-सुन्दर फूल।।
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मंगलवार, 26 दिसंबर 2017
दोहे "रोटी है आधार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रोटी का अस्तित्व है, जीवन में अनमोल।
दुनिया में सबसे अहम, रोटी का भूगोल।।
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जीवन जीने के लिए, रोटी है आधार।
अगर न होती रोटियाँ, मिट जाता संसार।।
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हो रोटी जब पेट में, भाते तब उपदेश।
रोजी-रोटी के लिए, जाते लोग विदेश।।
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फूली रोटी देखकर, मन होता अनुरक्त।
हँसी-खुशी से काट लो, जैसा भी हो वक्त।।
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फूली-फूली रोटियाँ, मन को करें विभोर।
इनको खाने देश में, आये रोटीखोर।।
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नगर-गाँव में बढ़ रहे, अब तो खूब दलाल।
रोटीखोरों ने किया, वतन आज कंगाल।।
--़
कुनबे और पड़ोस में, अच्छे रखो रसूख।
तब रोटी अच्छी लगे, जब लगती है भूख।।
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गीत "मक्कारों के वारे-न्यारे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आयेगा इस वर्ष भी, नया-नवेला साल।
आशाएँ फिर से जगीं, सुधरेंगे अब हाल।।
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नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!
गधे चबाते हैं काजू,
महँगाई खाते बेचारे!!
काँपे माता काँपे बिटिया, भरपेट न जिनको भोजन है,
क्या सरोकार उनको इससे, क्या नूतन और पुरातन है,
सर्दी में फटे वसन फटे सारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
जो इठलाते हैं दौलत पर, वो खूब मनाते नया-साल,
जो करते श्रम का शीलभंग,वो खूब कमाते द्रव्य-माल,
भाषण में केवल हैं नारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
नव-वर्ष हमेशा आता है, सुख के निर्झर अब तक न बहे,
सम्पदा न लेती अंगड़ाई, कितने दारुण दुख-दर्द सहे,
मक्कारों के वारे-न्यारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
रोटी-रोजी के संकट में, नही गीत-प्रीत के भाते हैं,
कहने को अपने सारे हैं, पर झूठे रिश्ते-नाते हैं,
सब स्वप्न हो गये अंगारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
टूटा तन-मन भी टूटा है, अभिलाषाएँ बस जिन्दा हैं,
आयेगीं जीवन में बहार, यह सोच रहा कारिन्दा हैं,
कब चमकेंगें नभ में तारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
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सोमवार, 25 दिसंबर 2017
गीत "स्वच्छता ही मन्त्र है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
राह को बुहार लो।।
उदित लोकतन्त्र है स्वच्छता ही मन्त्र है स्वच्छता में जीत है गन्दगी में हार है देश को सुधार लो
राह को बुहार लो।।
ढंग नये आ गये
रंग नये छा गये
आज फिर समाज को
संग नये भा गये
केँचुली उतार लो।
राह को बुहार लो।।
भा गयीं निशानियाँ
छा गयीं कहानियाँ
जिन्दगी की धार में
आ गयी रवानियाँ
“रूप” को निखार लो।
राह को बुहार लो।।
वक्त आज आ गया
“रूप” आज भा गया
आदमी सुवास की
राह आज पा गया
लक्ष्य को पुकार लो।
झाड़ुएँ सवाँर लो।
राह को बुहार लो।। |
रविवार, 24 दिसंबर 2017
दोहे "क्रिसमस का त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जो मानवता के लिए, चढ़ता गया सलीब।
वो ही होता कौम का, सबसे बड़ा हबीब।।
जिसमें होती वीरता, वही भेदता व्यूह।
चलता उसके साथ ही, जग में विज्ञ समूह।।
मंजिल है जिस पन्थ में, उस पर चलते लोग।
पालन करता नियम जो, वो ही रहे निरोग।।
जो जन सेवा के लिए, करता है पुरुषार्थ।
उसके सारे काम ही, कहलाते परमार्थ।।
थोथी बातों से नहीं, कोई बने मसीह।
लालच में जपता सदा, ढोंगी ही तस्बीह।।
जिसके दिल में हों भरे, ममता-समता-प्यार।
वो जनता के हृदय पर, कर लेता अघिकार।।
दीन-दुखी-असहाय को, बाँटो कुछ उपहार।
शिक्षा देता है यही, क्रिसमस का त्यौहार।।
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ग़ज़ल "रोज दादा जी जलाते हैं अलाव" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आ गई हैं सर्दियाँ मस्ताइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
पर्वतों पर नगमगी चादर बिछी.
बर्फबारी देखने को जाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
रोज दादा जी जलाते हैं अलाव,
गर्म पानी से हमेशा न्हाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
रात लम्बी, दिन हुए छोटे बहुत,
अब रजाई तानकर सो जाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
खूब खाओ सब हजम हो जाएगा,
शकरकन्दी भूनकर के खाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
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शनिवार, 23 दिसंबर 2017
गीत "चमकेगा फिर से गगन-भाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
चमकेगा फिर से गगन-भाल।
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आशाएँ सरसेंगी मन में,
खुशियाँ बरसेंगी आँगन में,
सुधरेंगें बिगड़े हुए हाल।
आने वाला है नया साल।।
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आयेंगी नई सफलताएँ,
जन्मेंगे फिर से पाल-बाल।
आने वाला है नया साल।।
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सिक्कों में नहीं बिकेंगे मन,
सत्ता ढोयेंगे पावन जन,
अब नहीं चलेंगी कुटिल चाल।
आने वाला है नया साल।।
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हठयोगी, पण्डे और ग्रन्थी,
हिन्दू-मुस्लिम, कट्टरपन्थी,
अब नहीं बुनेंगे धर्म-जाल।
आने वाला है नया साल।।
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शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017
गीत "सुख का सूरज उगे गगन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मन का सुमन हमेशा गाये, अभिनव मंगल गान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
उगें नये पौधे बगिया में, मिले खाद और पानी,
शिक्षा के भण्डार भरे हों, नर-नारी हों ज्ञानी,
तुलसी, सूर, कबीर सुनाएँ, राम कृष्ण की तान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
ललनाएँ सीता जैसी हों, भरत-लखन से भाई,
वीर शिवा जैसे प्रसून हों, कलियाँ लक्ष्मीबाई,
आजादी के परवानों का, होगा जब सम्मान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
चिंगारी आतंकवाद की, भड़के नहीं वतन में,
पौध न अब अलगाववाद की, उपजे कहीं चमन में,
इन्सानों की बस्ती में, शैतान न हों मेहमान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
सुख का सूरज उगे गगन में, घन अमृत बरसायें,
विश्व गुरू बनकर हम जग को, पावन पथ दिखलायें,
तब सचमुच ही कहलाएगा, मेरा भारत देश महान।
अपनी कुटिया बन जाएगी, फिर से विमल-वितान।।
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