"जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई"
खाओ रबड़ी और मिठाई।
जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।
पहले भी थी सहज सरल सी,
अब भी स्नेहिल, शान्त-तरल सी,
तुम आँगन में खुशियाँ लाई।
जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।
मन है सुन्दर, प्यारी सूरत,
तुम तो ममता की हो मूरत,
वाणी में बजती शहनाई।
स्वस्थ रहो और साथ निभाओ,
सुखद पवन को तुम ही लाई।
जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।
तुमसे ही तो ये घर, घर है,
तुमसे ही आबाद नगर है,
मन में तुमने जगह बनाई।
जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।
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सोमवार, 30 सितंबर 2013
"जन्मदिन की बधाई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
"अमर भारती जिन्दाबाद" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
तुमसे है उपवन आबाद।
अमर भारती जिन्दाबाद।।
तुम हमको प्राणों से प्यारी,
गुलशन की तुम हो फुलवारी,
तुम हो जीवन का उन्माद।
अमर भारती जिन्दाबाद।।
तुमसे खुशियाँ घर-आँगन में,
तुमसे है मधुमास चमन में,
तुम हो भाषा, तुम सम्वाद।
अमर भारती जिन्दाबाद।।
गंगा-यमुना-सरस्वती तुम,
शक्ति स्वरूपा पार्वती तुम,
तुम हो धारा का अनुनाद।
अमर भारती जिन्दाबाद।।
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रविवार, 29 सितंबर 2013
"दर्पण काला-काला क्यों" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुम हो गया उजाला क्यों?
दर्पण काला-काला क्यों?
चन्दा गुम है, सूरज सोया
काट रहे, जो हमने बोया
सूखी मंजुल माला क्यों?
राज-पाट सिंहासन पाया
सुख भोगा-आनन्द मनाया
फिर करता घोटाला क्यों
जब खाली भण्डार पड़े हैं
बारिश में क्यों अन्न सड़े हैं
गोदामों में ताला क्यों
कहाँ गयीं सोने की लड़ियाँ
पूछ रही हैं भोली चिड़ियाँ
तेल कान में डाला क्यों?
जनता सारी बोल रही है
न्याय-व्यवस्था डोल रही है
दाग़दार मतवाला क्यों
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शनिवार, 28 सितंबर 2013
"तुकबन्दी को ही अपनाओ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
तुकबन्दी से फलता उपवन
स्वर-व्यञ्जन ही
तो है जीवन
शब्दों को मन में
उपजाओ
फिर इनसे कुछ
वाक्य बनो
सन्देशों से खिलता
गुलशन
स्वर व्यञ्जन ही तो है जीवन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
तुकबन्दी मादक-उन्मादी
बन्दी में होती आजादी
सुख
बरसाता रहता सावन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
आता
नहीं बुढ़ापा जिसको
तुकबन्दी
कहते हैं उसको
छाया रहता
जिस पर यौवन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
दुर्जन
के प्रति भरा निरादर
महामान्य
का करती आदर
तुकबन्दी
से होता वन्दन
तुकबन्दी
मनुहार-प्यार है
यह महकता हुआ हार है
तुकबन्दी
होती चन्दन-वन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
शायर
की यह गीत–ग़ज़ल है
सरिताओं
की यह कल-कल है
योगी-सन्यासी
का आसन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
तुकबन्दी
बिन जग है सूना
यही उदाहरण,
यही नमूना
तुकबन्दी
में है अपनापन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
तुकबन्दी
बिन काव्य अधूरा
मज़ा
नहीं मिलता है पूरा
तुकबन्दी
से होता गायन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
अगर शान
से जीना चाहो
तुकबन्दी
को ही अपनाओ
खोलो
तो मुख का वातायन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
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शुक्रवार, 27 सितंबर 2013
"चमत्कार, अन्धविश्वास या इत्तफाक" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
"चमत्कार, अन्धविश्वास या इत्तफाक"
आज से ग्यारह वर्ष पुरानी बात है। बरेली जिले का एक पुराना कस्बा बहेड़ी है।
जो खटीमा से 70 किमी दूर है। वहाँ पर फिल्म-जगत के मशहूर एक्टर दिलीप कुमार, पं0 नारायण दत्त तिवारी के साथ आये हुए थे। उन
दिनों मैं कांग्रेस पार्टी का एक सक्रिय कार्यकर्ता था। आदरणीय पं0 नारायण दत्त
तिवारी जी से हार्दिक लगाव होने के कारण मुझे उनके कार्यक्रम में जाना था।
(चित्र में-) पं0 नारायणदत्त तिवारी, डॉ. के0डी0 पाण्डेय तथा डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री।
होटल बेस्ट व्यू , खटीमा के एम0डी0 ठाकुर कमलाकान्त सिंह की मारूति वैन को मैं ही चला रहा था।
साथ में थे चेयरमैन डा0के0डी0पाण्डेय, हाजी रौनक हुसैन और ठा0 कमलाकान्त सिंह। हँसी मजाक के साथ हमारा काफिला
बहेड़ी की ओर बढ़ रहा था।
सितारगंज कस्बे से 6 कि0मी0 दूर नया-गाँव पडता है। वहाँ रोड के किनारे कुछ
ईंटें पड़ी हुई थी। शायद किसी मजार के निर्माण के लिए ही ट्रक वाले उतार देते
होंगे। जैसे ही कार यहाँ पँहुची।
हमारे साथ बैठे ठाकुर साहब ने कार रुकवा दी और
दस रुपये वहाँ रखी गोलक में डाल दिये। उनकी इस हरकत पर मैं हँसने लगा और उनकी
खिंचाई करने लगा। मुँह से अन्धविश्वास के कुछ शब्द भी कह दिये।
ठाकुर कमलाकान्त सिंह उम्रदार व्यक्ति थे। उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा-‘‘शास्त्री जी चाहे भले ही आपकी यहाँ श्रद्धा न हो
परन्तु मजाक उड़ाना ठीक नही होता है।"
मैंने कहा-
‘‘ठाकुर साहब! मैं यह सब नही मानता। हाँ एक बात है कि
जब मेरी अपनी कार यहाँ खराब होगी। तब मैं भी इनको मानने लगूँगा।’’
बात यहीं खत्म हो गयी।
--
दो-ढाई महीने बाद, मुझे अपने विद्यालय की जूनियर हाई स्कूल की मान्यता-सम्बन्धी फाइल जमा करने
के लिए रुद्रपुर जाना पड़ गया। उस दिन 30 सितम्बर का दिन था। फाइल जमा करने की वह
आखिरी तारीख थी।
मैं अपनी एम्बेसेडर कार से जा रहा था कि अच्छी चलती हुई कार ठीक इसी मजार के
सामने आकर ठप्प हो गयी। उसका कोई बोल्ट टूट गया था। इसलिए कार का एक पहिया
मडगार्ड में टिक गया था। कहने का मतलब यह है कि कार बिल्कुल चलने की स्थिति मे
नही थी।
एक तो सितम्बर की गर्मी, ऊपर से कड़ी धूप। मेरी तो हालत खराब हो गयी थी। मन में तुरन्त 2-3 माह पूर्व
की घटना याद आ गयी। मुझे बड़ा पश्चाताप हो रहा था कि मैंने उस दिन क्यों इस बाबा
अब्दुल हई की निर्माणाधीन मजार के ऊपर छींटा कसी की।
मैं हार कर वहाँ बनी पुलिया की रेलिंग पर बैठ कर पश्चाताप करने लगा और बाबा
से माफी माँगने लगा। उस संमय मैं इतना परेशान था कि एक हजार रुपये भी खर्च करने
को तत्पर था। यह सोच ही रहा था कि कोई ट्रक मिल जाये और मेरी कार को या तो खटीमा
लाद कर ले जाये या रुद्रपुर ले जाये।
तभी एक 24-पच्चीस साल का मरियल सा एक आँख से काना लड़का मेरी कार के
दायें-बायें और उसके नीचे झुक कर देखने लगा।
मैंने उसे बड़ी जोर से डाँटा- तो वह पास आकर बोला- ‘‘बाबू जी! मैं आपकी कार ठीक कर दूँगा।’’ मैंने कहा- ‘‘भाग तो सही, यहाँ से। तूने अपनी सूरत देखी है। तू क्या कार ठीक करेगा? मैं ही तुझे ठीक कर देता हूँ।’’
वह बड़ी विनम्रता से बोला-
‘‘बाबू जी! आप तो बुरा मान गये। आप सच मानें, मैं आपकी कार ठीक कर दूँगा। मैं दिल्ली में
एम्बसेडर की गैराज में काम करता हूँ।’’
अब तो मुझे अपने पर बहुत ग्लानि हुई।
मैंने उससे कहा-
‘‘तो ठीक करो।’’
वह गाँव में एक ट्रैक्टर वाले से एक बोल्ट माँग कर लाया। जैक से गाड़ी उठाई
और 15 मिनट में ही कार ठीक कर दी। मैंने उसे सौ रुपये ईनाम भी देना चाहा। परन्तु
उसने लेने से मना कर दिया।
आप इसे क्या कहेंगे?
चमत्कार, अन्धविश्वास या इत्तफाक।
रुद्रपुर से लौट कर मैंने जब गाँव वालों से इस लड़के के बारे में पूछा तो-‘गाँव वालों ने कहा- ‘‘बाबू जी! इस गाँव में इस तरह का कोई लड़का है ही
नही। न ही इस गाँव का कोई लड़का दिल्ली में किसी एम्बेसेडर की गैराज में काम करता
है।"
मुझे आज भी हैरानी है कि आखिर वह फरिश्ता कौन था?
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