-- गघे नहीं खाते जिसे, तम्बाकू वो चीज। खान-पान की मनुज को, बिल्कुल नहीं तमीज।। -- रोग कैंसर का लगे, समझ रहे हैं लोग। पाल रहे हैं लोग अब, तम्बाकू का रोग।। -- खैनी-गुटका-पान का, है हर जगह रिवाज। गाँजा, भाँग-शराब का, चलन बढ़ गया आज।। -- तम्बाकू को त्याग दो, होगा बदन निरोग। जीवन में अपनाइए, भोग छोड़कर योग।। -- पूरब वालो छोड़ दो, पश्चिम की सब रीत। बँधा हुआ सुर-ताल से, पूरब का संगीत।। -- खोलो पृष्ठ अतीत के, आयुध के संधान। सारी दुनिया को दिया, भारत ने विज्ञान।। -- जगतगुरू यह देश था, देता जग को ज्ञान। आज नशे की नींद में, सोया चादर तान।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
बुधवार, 31 मई 2023
दोहे "तम्बाकू का रोग" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
फोटो-फीचर "खुशनुमा उपवन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
था कभी ये 'रूप' ऐसा। हो गया है आज कैसा?? बालपन में खेल खेले। दूर रहते थे झमेले।। -- छा गई थी जब जवानी। शक्ल लगती थी सुहानी।। तब मिला इक मीत प्यारा। दे रहा था जो सहारा।। -- खुशनुमा उपवन हुआ था। धन्य तब जीवन हुआ था।। बढ़ी गई जब मोह-माया। तब बुढ़ापे ने सताया। -- जब हुई कमजोर काया। मौत का आया बुलावा।। -- जगत है जीवन-मरण का। चक्र है आवागमन का।। -- |
मंगलवार, 30 मई 2023
दोहे "ख़बरें अब साहित्य की, हुई पत्र से लुप्त" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पत्रकारिता दिवस पर, होता है अवसाद। गुणा-भाग तो खूब है, मगर नहीं गुणवाद।। -- पत्रकारिता में लगे, जब से हैं मक्कार। छँटे हुओं की नगर के, तब से है जयकार।। -- समाचार के नाम पर, ब्लैकमेल है आज। विज्ञापन का चल पड़ा, अब तो अधिक रिवाज।। -- पीड़ा के संगीत में, दबे खुशी के बोल। देश-वेश-परिवेश में, कौन रहा विष घोल।। -- बैरी को तो मिल गये, घर बैठे जासूस। सच्ची खबरों के लिए, देनी पड़ती घूस।। -- ख़बरें अब साहित्य की, हुई पत्र से लुप्त। सामाजिकता हो रही, इसीलिए तो सुप्त।। -- मिर्च-मसाला झोंक कर, छाप रहे अखबार। हत्या और बलात् की, ख़बरों की भरमार।। -- पड़ी बेड़ियाँ पाँव में, हाथों में जंजीर। सच्चाई की हो गयी, अब खोटी तकदीर।। -- आँगन-वन के वृक्ष अब, हुए सुखकर ठूठ। सच्चाई दम तोड़ती, जिन्दा रहता झूठ।। -- जिसमें पूरा तुल सके, नहीं रही वो तोल। अब तो कड़वे बोल का, नहीं रहा कुछ मोल।। -- |
सोमवार, 29 मई 2023
गीत "सन्यासी बनकर मतवाला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- सबका अपना-अपना होता, जीने का अन्दाज़ निराला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- भाषा-भूषा, प्रान्त-देश का, सम्प्रदाय का झगड़ा छोड़ो, जो सीधे-सच्चे मानव हैं, उनसे अपना नाता जोड़ो, नभ जब सूरज उगता है, लाता अपने साथ उजाला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- पल में तोला, पल में माशा, कभी हताशा कभी निराशा, मन है प्यासा पंछी जैसा, जिसकी बुझती नहीं पिपासा, कभी न भरता इसका प्याला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- पहन हंस सा रूप सलोना, लगता बिल्कुल सीधा-सादा, छल-फरेब के इस मूरत का, समझ न पाये लोग इरादा, विषधर तो विषधर ही होता, काला हो चाहे पनियाला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- “रूप” रंग का भूखा भँवरा, गुंजन करता उपवन-उपवन, सुमनों की सुगन्ध पाने को, डोल रहा है कानन-कानन, नटखट-निडर, रसिक सन्यासी, झूम रहा बनकर मतवाला। अक्षर-अक्षर मिलकर ही तो, बनती है शब्दों की माला।। -- |
रविवार, 28 मई 2023
दोहे "सूरज से हैं धूप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- होते गीत-अगीत हैं, कविता का आधार। असली लेखन है वही, जिसमें हों उदगार।। -- मंजिल पर हर कदम का, रखना सम अनुपात। स्वारथ से बनती नहीं, जग में कोई बात।। -- जो भूखा हो ज्ञान का, दो उसको उपदेश। जितने से जीवन चले, उतना करो निवेश।। -- तालाबों की पंक में, खिले कमल का फूल। वो ही तो परिवेश है, जो होता अनुकूल।। -- चन्दा से है चाँदनी, सूरज से हैं धूप। सबका अपना ढंग है, सबका अपना रूप।। -- थोड़े से पीपल बचे, थोड़े बरगद-नीम। इसीलिए तो आ रहे, घर में रोज हकीम।। -- परछाई में देखते, लोग यहाँ तसबीर। थोड़े दिन की ही बची, पुरखों की जागीर। -- |
शनिवार, 27 मई 2023
पुस्तक समीक्षा "मृग-मरीचिका" डॉ.राज
विमोचित
पुस्तक "मृग-मरीचिका" (राज
सक्सेना)
सबसे पहले तो मैं हमारे बीच के ही खटीमा के
साहित्यगौरव राजकिशोर सक्सेना डॉ. राज को उनकी प्रकाशित पुस्तक
"मृग-मरीचिका" के विमोचन के अवसर पर बधाई देता हूँ। अब तक जिन्हें हम
लोग मात्र एक कवि के रूप में जानते थे, किन्तु "मृग-मरीचिका" के
लोकार्पण से आज उन्हें सम्पूर्ण समाज एक विश्लेषक और गद्यकार के रूप में
पहचानेगा। विमोचित कृति में लेखक ने समाज में उठते
अनेक प्रश्नों का समाधान समाज को देने का अनूठा कार्य किया है। जैसे "क्या
अंक प्रतिशत ही हो गया है अब शिक्षा का ध्येय" के विषय में आप कहते हैं- "हर कृत्य की एक सीमा होती है। सीमा तक
तो वह सुखदायी लगता है किन्तु जब सीमा को छू लेता है या उसे तोड़ कर आगे निकलने
लगता है तो कभी वह संशय की ओर लेजाता है और कभी वह दुखदायी भी लगने लगता है। इस
सन्दर्भ में हम किसी बालक की बुद्धिमत्ता या क्षमता पर संदेह नहीं कर रहे हैं।
हम तो केवल इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ रहे हैं कि क्या आज बच्चों और माँ बाप के
सामने केवल अंकों का प्रतिशत ही शिक्षा का एक मात्र लक्ष्य या उद्देश्य रह गया
है? अगर यह वास्तविकता है तो इसे उचित
कहा जा सकता है क्या? शायद नहीं। शिक्षा का उद्देश्य वस्तुतः ग्राम, नगर, देश या समाज को केवल और केवल मात्र
बौद्धिक स्तर पर श्रेष्ठ नागरिकों की सम्पूर्ति मात्र नहीं है। उसका पहला
उद्देश्य है देश या समाज को सर्वगुणसंपन्न नागरिकों की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धता।
इसे हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि किसी भी समाज या देश को स्वस्थ शारीरिक स्तर
के एक समतामूलक सोच सम्पन्न नागरिकों की आवश्यकता होती है जो जीवन के हर पक्ष पर
एक विशाल सोच और व्यवहारिकता का आचार और व्यवहार रखते हों ताकि समाज में
अनावश्यक और बिना वजह संघर्षों का जन्म न हो। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर ही
समाज या देश के हर नागरिक के लिए शिक्षा के अधिमान बनाये गये होंगे और हर नागरिक
को उसके बालपन में थोड़ी सी समझ आ जाने पर ही शनैः शनैः प्रारम्भिक स्तर से
उच्चतर शिक्षा के प्राविधान और मानक निर्धारित किये गये होंगे।" ऐसा
ही एक प्रशन है "क्या तीन तलाक बिल
समान नागरिक कानून की आधारशिला है" इसके बारे में विद्वान लेखक ने लिखा है- "आखिर सत्तरहवीं लोकसभा से मोदी और अमित
शाह की जोड़ी ने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से बचाने तथा उन्हें संरक्षण देने
एवं तीन तलाक को अमान्य करने के लिए लाए गये और सोलहवीं लोकसभा में विलम्बित डाल
दिए गये बिल को पास कराने के बाद, राज्य सभा में बहुमत न होने पर भी
भारी बहुमत से पास कराकर यह तो सिद्ध कर ही दिया कि वे बहुत धैर्य और सावधानी के
साथ अपने एजेंडे पर एक के बाद एक सफलता प्राप्त करते जा रहे हैं। राष्ट्रपति के
हस्ताक्षर होने के बाद अब यह ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017’ 19 सितम्बर, 2018 से लागू हो चुका है। स्मरणीय है कि यह कानून मोदी सरकार और
कांग्रेसनीत एकजुट विपक्ष की नाक का सवाल बन चुका था। मोदी ने अपने लाल किले के
भाषण में मुस्लिम महिलाओं को उनका यह अधिकार दिलाने का प्रण किया था तो कांग्रेस
के नेतृत्व में विपक्षी दल राज्य सभा में अपने बहुमत के बल पर किसी भी दशा में
इस कानून को नहीं बनने देने के लिए कटिबद्ध थे। और तीन तलाक प्रकरण में उसने यह
सिद्ध भी करके दिखा दिया है।" "क्या द्रोपदी पाँचों पाण्डवों की पत्नि थी" इस पर अपनी तथ्यपर लेखनी से डॉ. राज लिखते हैं- "जर्मनी के संस्कृत भाषा-विज्ञानी मैक्स मूलर के संस्कृत ग्रंथो के अनुवादों को अगर अगर ध्यान से पढ़ा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें कोई संशय नहीं है कि मैक्समूलर को, जब विलियम हंटर की कमेटी के कहने पर वैदिक धर्म के आर्य ग्रंथों को बिगाड़ने का जिम्मा सौंपा गया तो उन्होंने मनु स्मृति, रामायण, वेद के साथ साथ महाभारत के चरित्रों को बिगाड़ कर दिखाने का भी प्रयास किया। किसी भी प्रकार से प्रेरणादायी पात्र चरित्रों में विक्षेप या प्रक्षेप करके उसमें झूठ का तड़का लगाकर महानायकों को चरित्रहीन, दुश्चरित्र, अधर्मी सिद्ध करना था। जिससे भारतीय जनमानस के हृदय में अपने ग्रंथो और महान पवित्र चरित्रों के प्रति घृणा और क्रोध का भाव जाग जाय और वे प्राचीन आर्य संस्कृति सभ्यता को निम्न दृष्टि से देखने लगें, परिणामस्वरूप वैदिक धर्म से उनकी आस्था और विश्वास समाप्त हो जाय। लेकिन आर्य संस्कृत विद्वानों के अथक प्रयास का ही परिणाम है कि मूल महाभारत के अध्ययन बाद सबके सामने द्रोपदी के पाँच पति के दुष्प्रचार का सप्रमाण खण्डन सामने आ जाता है। द्रोपदी के पवित्र चरित्र को बिगाड़ने वाले विधर्मी, पापी वो तथाकथित ब्राह्मण, पुजारी, पुरोहित भी हैं जिन्होंने महाभारत ग्रंथ का अध्ययन किये बिना अंग्रेजो के हर दुष्प्रचार और षड्यंत्रकारी चाल, धोखे को उनके अनुवादों को सही मानकर स्वीकार कर लिया और धर्म को अकल्पनीय चोट पहुंचाई।सत्यता
तो यह है कि द्रौपदी का एक ही पति था युधिष्ठिर। द्रौपदी के पांच पति थे 200-250
वर्षों से प्रचारित झूठ का खंडन मूल महाभारत ग्रन्थ के अक्षरशः अध्ययन से स्वतः
सिद्ध हो जाता है।" "क्या बन्दर के हाथ में उस्तरा
भी है पुलिस?"
यह एक ज्वलन्त सवाल है जिसका समाधान लेखक ने उदाहरण देकर किया है। "विगत छः मई को दिल्ली से बिना, दिल्ली पुलिस को सूचना दिए, एक एफआईआर के आधार पर बिना ट्रांजिट
रिमांड लिए, दिल्ली भाजपा के सचिव और राष्ट्रीय
प्रवक्ता तेजेंदर बग्गा को पंजाब पुलिस ने उठाया और बाद में उठाने की सूचना देने
की औपचारिकता बरतने के लिए एक जूनियर अधिकारी को जनकपुरी थाने भेजा। इस हरकत से
तो ऐसा ही लगता है जैसे इस विश्लेषण के शीर्षक को पंजाब पुलिस साकार करती है।
जबकि कुछ दिनों पहले ही वर्तमान पंजाब सरकार के ‘सुपर कॉप’ दिल्ली के बेकाम (जिसके पास कोई काम
ना हो) मुख्यमंत्री, एक मीडिया इन्टरव्यु में यह धमकी दे चुके हैं कि मेरे हाथ में कहीं
की भी पुलिस आने दो फिर इन तीन-चार को मैं जेल भेज कर ठीक कर दूंगा। क्या स्पष्ट
करता है?।
हालांकि स्थानीय राजनीति और पंजाब पुलिस की यह दुरभिसन्धि दिल्ली और हरियाणा
पुलिस की सक्रियता से परवान तो नहीं चढ़ सकी, मगर देश की जनता के दिल में एक दल
विशेष के लिए शंकाओं के पहाड़ जरुर छोड़ गयी है।" "चित्र
नहीं कट्टर चिन्तन का प्रतीक है जिन्ना" लेखक की परखी नजर ने इसपर प्रकाश
डालते हुए कहा है- "किसी भी ऐसे समाज में जिसमें विभिन्न
समुदाय और मत-मतान्तरों के लोग रहते हों, उसमें मत भिन्नता एक आवश्यक तत्व के
रूप में विद्यमान होना उसकी जीवन्तता का प्रतीक होता है। भारतीय समाज में यह
जीवन्तता भरपूर है। हम सब सहस्त्राधिक मत-मतान्तरों और लाखों मतभिन्नताओं के
रहते भी एक राष्ट्र, एक समाज और एक सामुदायिक संस्कृति के रूप में जी रहे हैं तो उसका
एक मात्र कारण यह है कि भारत का बहुसंख्यक समुदाय ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की नीति पर विश्वास करता है और समाज
के उन छोटे अंगों को भी वही सुविधाएं देने पर विश्वास करता है जो वह समाज के
अन्य अंगों से स्वयं के लिए वांछना करता है।" "दिल्ली
चुनावः कांग्रेसमुक्त भारत का श्री गणेश" लेखक के दृष्टिकोण से शायद सभी
सहमत न हों किन्तु मुझे लगता है कि वस्तुस्थिति यही है- "दिल्ली का सद्यव्यतीत विधान सभा
चुनाव हर दल के लिए कई निहितार्थ छोड़ कर गया है। हर राजनैतिक दल अपनी कमियों और
प्राप्तियों पर गहन विमर्श करेगा किन्तु कांग्रेस इन चुनावों द्वारा उसके लिए
छोड़े गये किसी भी निहितार्थ पर गहन तो छोडिये, विमर्श भी करेगी? इस पर किसी और को शक हो न हो मुझे शक
है। क्योंकि अपने घटते जनाधार के बावजूद कांग्रेस का कोई बड़ा नेता इस बात पर
अविश्वास करने को तैयार ही नहीं है कि नेहरु का राजवंश जो गांधी छद्मनाम से इतने
दिन तक भारत पर राज करता रहा है उसकी लोकप्रियता में कोई कमी आई है। वह आज भी इस
खुशफहमी में जी रहे हैं कि नेहरु वंश का ‘चूहा’ भी उतना ही लोकप्रिय है जितना कभी
नेहरु,
इंदिरा
और राजीव हुआ करते थे। दिल्ली के विधानसभा निर्वाचन में कांग्रेस
पर एक कहावत ‘ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम, ना इधर के रहे ना उधर के रहे’ बिल्कुल सटीक उतरती लग रही है. सच तो
यह है कि दिल्ली में बैठा कांग्रेस हाईकमान पूरी तरह दिग्भ्रमित हो चुका है और ‘मोदी फोबिया’ से बुरी तरह डरा हुआ है।" "देर
आयद दुरुस्त आयद" में लेखक ने मुख्य आरोपी सज्जनकुमार के बारे में अपना
अभिमत कुछ इस प्रकार प्रकट किया है- "सन 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी हत्याकांड की प्रतिक्रिया में देश भर में हुए जघन्य हत्याकांडों से
कौन परिचित नहीं है। हत्याकांड के बाद पैदा हुआ नागरिक भी समाचारपत्रों और
मिडिया खबरों के माध्यम से इन सामूहिक हत्याकांडो से परिचित होता रहा है। वह यह
भी जानता है कि राजनैतिक हस्तक्षेपों के चलते हर स्तर पर जनसंहार के दोषियों को
बचाने के प्रयास होते रहे हैं। हद तो तब हो गयी जब एनडीए के शासनकाल में नियुक्त
नानावती आयोग की शिफारिशों के चलते की गयी जांचों के बाद जो मुकदमे दायर किये
गये थे कांग्रेस के सत्ता में वापसी पर फिर से उन्हें भी प्रभावित किया गया और
मुख्य आरोपी सज्जन कुमार को बचाने की योजना में कांग्रेस सफल रही। पीड़ित पक्ष
मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में लेकर गये और अंततः हत्याकांड के चैंतीस वर्ष
बाद राजधानी दिल्ली के छावनी क्षेत्र के राजनगर में हुए सामुहिक सिख-हत्याकांड
के मुख्य आरोपी दिल्ली कांग्रेस के बड़े नेता सज्जन कुमार को जस्टिस एस.मुरलीधर
और जस्टिस विनोद गोयल की बैंच ने दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाकर
पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने का काम कर ही दिया।" "देश
के सबसे विवादित न्यायिक व्यक्ति का अवसान" का लेख सुप्रसिद्ध अधिवक्ता
स्व. राम जेठमलानी से सम्बन्धित है। "राम जेठमलानी का इस दुनिया से चला जाना
देश के एक प्रतिभाशाली, लीक से हटकर तर्कों के साथ बहस करने की अदभुत क्षमता से सम्पन्न और
देश के सर्वाधिक विवादित केसों में सरकार के विरुद्ध अपनी उपस्थिति दर्ज कराने
की अदम्य क्षमता से सम्पन्न एक ऐसे व्यक्ति का चला जाना है, जो स्वयं में अपनी मिसाल खुद था। राम
जेठमलानी एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम है जिससे पूर्व उसके जैसा व्यक्तित्व आज के
युग में तो सामने आया ही नहीं। राम जेठमलानी केवल न्यायिक सन्दर्भ में ही
विवादित व्यक्ति नहीं थे, वे अपने विवादित निर्णयों और एक लीक से हट कर अलग राजनैतिक सोच
रखने और बिना परिणामों की परवाह किये अपनी सोच को किसी भी सन्दर्भ में किसी भी
माध्यम से बिना परिणामों की चिंता किये जगजाहिर कर देने की अनूठी कला से सम्पन्न, निडर राजनैतिक नेता भी थे। कुल मिला
कर देश ने उनके स्वर्गवास से एक ऐसा विलक्षण व्यक्तित्व खो दिया जिसकी पूर्ति
असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। विवादों के पर्याय राम जेठमलानी का जन्म 14
सितम्बर 1923 को भारत के तत्कालीन सिंध के शिकारपुर (अब पाकिस्तान में) में हुआ
था। उनके पिता जी का नाम भूलचन्द गुरमुखदास जेठमलानी और माता का नाम पारबती
भूलचंद था। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई स्थानीय प्राथमिक स्कूल में ही हुई। वे पढने में
बहुत तेज थे इसलिए स्कूल में उन्हें दो बार अपनी नियमित कक्षा से ऊँची कक्षा में
प्रोन्नत कर दिया गया परिणामस्वरूप मात्र 13 वर्ष की आयु में ही उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा
पास कर ली। इसी तेजी के चलते 17 साल की उम्र में ही उन्होंने कराची के एस.सी.
साहनी लॉ कॉलेज से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त कर ली थी। उस समय प्रैक्टिस करने
के लिये 21 साल की उम्र जरूरी थी मगर जेठमलानी के लिये सुप्रीम कोर्ट ने एक
विशेष प्रस्ताव पास करके बालिग होने की उम्र अर्थात 18 साल की उम्र में
प्रैक्टिस करने की इजाजत दे दी। इसके पश्चात उन्होंने एस.सी. साहनी लॉ कॉलेज से
ही एल.एल.एम. की डिग्री भी प्राप्त कर ली। 18 वर्ष की उम्र में ही राम जेठमलानी
का विवाह दुर्गा से कर दिया गया। सन 1947 में देश के विभाजन से कुछ समय पहले, उन्होंने रत्ना साहनी (जो उनकी साथी
वकील थीं) से भी दूसरा विवाह कर लिया। इन दोनों पत्नियों से उन्हें चार बच्चे
हुए दृ रानी, शोभा, महेश और जनक. इनमें महेश जेठमलानी
उनकी वकालत की विरासत संभालते।" "देश
की सुरक्षा-अन्तरिक्ष के माध्यम से" इस आलेख में लेखक ने प्रकाश डालते हुए
कहा है- "मोदी के जनून का भी जवाब नहीं है. या तो
वे इतने आत्मविश्वास से भरे हैं कि उन्हें विश्वास है कि वे अगले बीस वर्षों तक
प्रधानमंत्री की कुर्सी से नहीं हटेंगे या फिर उन्हें इस बार जितना भी समय मिला
है उसमें ही वे देश को इतना मजबूत बना देना चाहते हैं कि कोई महाशक्ति भी देश पर
आँख उठा कर देखने की हिम्मत न कर सके। देश में हो रहे चहुंमुखी विकास और देश को
महाशक्ति बनाने की दिशा में एक के बाद एक उठाए गये मोदी के कदम यह विश्वास
दिलाने के लिए काफी हैं कि वे चीन की दादागिरी को जब तक उसकी औकात नहीं दिखा
देंगे तब तक चैन से नहीं बैठेंगे।" "नेहरु
बनाम वीर सावरकर" एक एतिहासिक और सारगर्भित आलेख है, जिसमें लेखक प्रकाश डालते
हुए कहा है- "इतिहास में एक कहावत है कि किसी भी
ऐतिहासिक चरित्र का निष्पक्ष विश्लेषण उसके जीवन की इति की एक शताब्दी के बाद ही
किया जा सकता है। क्योंकि इस समय तक समालोचित व्यक्तित्व के प्रति आग्रहों से
ग्रसित व्यक्तियों का दौर गुजर चुका होता है, मगर नेहरु के कर्म और चरित्र की कथित
निष्पक्ष समालोचना अबाध रूप से उनके राजनैतिक जीवन की शुरुआत से जो प्रारम्भ हुई
तो आज तक जारी है। कोई उन्हें युग पुरुष का दर्जा देता है तो कोई उनकी नीतियों
के कारण उन्हें आलोचना का पर्याय बना कर रख देता है। सही बात तो यह है कि स्वयं
नेहरु ने अपने वक्तव्यों, कार्यकलापों और समस्याओं पर लिए गये त्वरित निर्णयों के चलते स्वयं
को सब से विवादित राजनेता के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया है। अमीर परिवार में
एकाकी जीवन बिताते जवाहरलाल, विदेश से पढ़कर लौटकर सीधा गांधी से टकराते नेहरू, फिर गाँधी के सबसे बड़े समर्थक और
अंततः उत्तराधिकारी बनते नेहरू, उनकी मौत पर फूट फूट कर रोते नेहरू, जेल में विशेष सुविधाओं के साथ नौ
साल बिताते नेहरू, डरते नेहरू, घबराते नेहरू, पटेल के पीछे छिपते नेहरु, साहसी नेहरू, दूरदर्शी नेहरू, सुभाष बोस के दोस्त फिर दुश्मन नेहरू, पटेल के साथी नेहरू, भगतसिंह पर विवादित बयान देते नेहरू, बेटी को चिठ्ठियों के माध्यम से भारत
दर्शन कराते नेहरू, लोहिया की आलोचनाओं पर मुस्कुराते
नेहरू,
दिनकर
की कविताओं पर तालियाँ बजाते नेहरू, हिन्दू कोड बिल के लिए अपने ही
साथियों का विरोध झेलते नेहरू, कश्मीर और कश्मीरियत दोनों को एक साथ जीते और अधर में छोड़ देने का
दोष झेलते नेहरू, संविधान के पुजारी नेहरू, सबसे बड़े सेक्युलर होने का दम भरते
नेहरू,
अपने
चहेतों को सम्मान और पद बांटते नेहरु। शिक्षा, स्वास्थ्य शोध और चहुंमुखी विकास के
ध्वजबाहक नेहरू, सर्व स्वीकार्य सबके प्यारे लेकिन तानाशाह समझे जाने वाले
अलोकतांत्रिक नेहरू। कुल मिला कर नेहरु ने स्वकर्मों से स्वयं को विवादित
व्यक्तित्व बना कर रख दिया था।" "बहुदेववाद
की सोच का भारतीय राजनीति में घातक प्रभाव" में प्रमाण देकर सत्य को
उद्घाटित करने का प्रयास किया है- "आरएसएस के ओटीपी के समापन समारोह
में आरएसएस प्रमुख मोहन जी भागवत के दिए समापन भाषण, टीवी की टीआरपी बढाने के लिए कराए
जाने वाले बहस कार्यक्रमों में नूपुर शर्मा जो बीजेपी की अधिकृत प्रवक्ता हैं
द्वारा इस्लामी धर्मग्रन्थों में उल्लिखित और अनेक बार टीवी पटलों और समाचार
पत्रों में प्रकाशित एक प्रकरण का उल्लेख करने पर और भारतीय जनता पार्टी के सोशल
मीडिया प्रभारी नवीन जिंदल के सोशल मीडिया पर कुछ टिप्पणी लिख देने पर दल से
निकाल देने पर जैसा बबाल सनातनियों ने सोशल मीडिया पर मचा रखा है। उससे तो ऐसा
लग रहा है जैसे इन सोशल मीडिया के अलमबरदारों ने यह समझ लिया है कि मानो आरएसएस
प्रमुख और प्रधानमंत्री मोदी ने या तो धर्म परिवर्तन कर लिया है या फिर मुस्लिम
राष्ट्रों के सामने घुटनों के बल गिर पड़े हैं। जबकि वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग
प्रतीत होती है ।" "गोडसे बनाम गांधी" आलेख में डॉ. राज लिखते हैं-
"हत्या किसी की भी हो एक निंदनीय
कृत्य है। इसी तरह का एक निंदनीय कृत्य आजाद भारत के इतिहास का सबसे काला दिन है, जब भारत के राष्ट्रपिता महात्मा
गांधी की जघन्य हत्या, तत्कालीन हालातों के वशीभूत एक सिरफिरे ने करदी थी। नाथूराम गोडसे
के नाम और उनके इस एकमात्र काम के अतिरिक्त लोग गोडसे के बारे में कुछ नहीं
जानते। यह एक अजीब और रहस्यमय बात है?। गोपनीयता का प्रारंभ 8 नवंबर 1948
को ही कर दिया गया था, जब गाँधीजी की हत्या के लिए चले मुकदमे के दौरान अपने पक्ष में
गोडसे द्वारा दिए गए बयान को प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था? जिससे गोडसे का पक्ष आम जनता के
सामने आ ही न सके।" पुस्तक विमोचित पुस्तक को सांगोपांग
पढ़कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि "मृगमरीचिका" एक उपयोगी कृति
है। जिसे हर वर्ग के व्यक्तियों को पढ़ना चाहिए। मुझे आशा ही नहीं अपितु विश्वास भी है कि
यह कृति समाज को दिशा देने में मील का पत्थर सिद्ध होगी और समीक्षकों के लिए भी
उपादेय होगी। लेखक डॉ. राज किशोर सक्सेना
"राज" को एक बार पुनः बधाई। दिनांकः
26 मई, 2023 (डॉ.
रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) कवि
एवं साहित्यकार टनकपर-रोड, खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड) Mobile No. 7906360576 Website-Uchcharan.blogspot.com/ E-Mail-roopchandrashastri@gmail.com |
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...