अब तो तीन तलाक का, गया जमाना बीत।
दोनों सदनों में हुई, मोदी जी की जीत।१।
--
कठमुल्लाओं की कटी, सरेआम
अब नाक।
जनमत ने है कर दिया, खारिज
तीन तलाक।२।
--
सबको लाना चाहिए, मजहब
पर ईमान।
लेकिन तीन तलाक को, कहता
नहीं कुरान।३।
--
खवातीन पर अब नहीं, होगा
अत्याचार।
पास विधेयक हो गया, जीत
गई सरकार।४।
--
पढ़े-लिखे सब मानते, मिला
नारि को न्याय।
कट्टरपंथी कह रहे, अब
इसको अन्याय।५।
--
लोकतन्त्र के सदन में, हारे
बड़े वकील।
अपनी-अपनी दी यहाँ, सबने
खूब दलील।६।
--
समता और समानता, जीवन
का आधार।
जीत हो गयी न्याय की, गये विपक्षी हार।७।
--
लोकतन्त्र में निहित हैं, मूलभूत
अधिकार।।
दाँत पीस कर रह गये, सारे
ठेकेदार।८।
|
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बुधवार, 31 जुलाई 2019
दोहे "कठमुल्लाओं की कटी, सरेआम अब नाक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दोहे "उपन्यास सम्राट को नमन हजारों बार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
निर्धनता के जो रहे, जीवनभर पर्याय।
लमही में पैदा हुए, लेखक धनपत राय।।
--
आम आदमी की व्यथा, लिखते थे जो नित्य।
प्रेमचन्द ने रच दिया, सरल-तरल साहित्य।।
--
जीवित छप्पन वर्ष तक, रहे जगत में मात्र।
लेकिन उनके साथ सब, अमर हो गये पात्र।।
फाकेमस्ती में जिया, जीवन को भरपूर।
उपन्यास सम्राट थे, आडम्बर से दूर।।
--
उपन्यास 'सेवासदन', 'गबन' और 'गोदान'।
हिन्दी-उर्दू अदब पर, किया बहुत अहसान।।
--
'रूठीरानी' को लिखा, लिक्खा 'मिलमजदूर'।
प्रेमचन्द मुंशी रहे, सदा मजे से दूर।।
--
लेखन में जिसका नहीं, झुका कभी किरदार।
उस लमही के लाल को, नमन हजारों बार।।
--
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मंगलवार, 30 जुलाई 2019
ग़ज़ल "चलो भीगें फुहारों में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बरसने लग गया सावन, चलो भीगें फुहारों में
फलक ने रंग बदला है, घटाओं के नजारों में
दरकते हों भले पत्थर, पहाड़ों की शिलाओं के
सुनाते लोरियाँ झरने, महकते देवदारों में
बड़े मायूस हैं मजदूर, अपने आशियानों में
ग्रहण जैसा लगा बारिश से, सारे रोजगारों में
गरीबी झेलती आफत, अमीरी ऐश करती है
मजा भी है सजा भी है, फिजाओं की बहारों में
फलक पर देखकर बादल, किसानों के खिले चेहरे
लगाने धान के पौधे, चले घर से कतारों में
घटाओं में भरा पानी, बरसता झूमकर सावन
खुशी से पेड़ लहराते, भरी मस्ती बयारों में
धनुष के सात रंगों का, सलोना ‘रूप’ उभरा
है
इरादों को बताता है, हमें मौसम इशारों में
|
सोमवार, 29 जुलाई 2019
ग़ज़ल "राह में चलते-चलते" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रपटना नहीं, राह
में चलते-चलते
मंजिल सभी को है चलने से मिलती
ठहरना नहीं, राह
में चलते-चलते
रखना नजर प्यार
की मुख़्तसर सी
भड़कना नहीं, राह
में चलते-चलते
सफर काट लो अपना राजी-खुशी
से
झगड़ना नहीं, राह
में चलते-चलते
धीरज न खोना कठिन
रास्तों में
पिछड़ना नहीं,
राह में चलते-चलते
अस्मत की गठरी बचा करके रखना
सँवरना नहीं, राह में चलते-चलते
हाट में ‘रूप’ के मत कदम को बढ़ाना
भटकना नहीं, राह में चलते-चलते
|
रविवार, 28 जुलाई 2019
गीत "गाँव याद बहुत आते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गाँवों की गलियाँ, चौबारे, याद बहुत आते हैं।
कच्चे-घर और ठाकुरद्वारे, याद बहुत आते हैं।।
छोड़ा गाँव, शहर में आया, आलीशान भवन बनवाया,
मिली नही शीतल सी छाया, नाहक ही
सुख-चैन गँवाया।
बूढ़ा बरगद, काका-अंगद, याद बहुत
आते हैं।।
अपनापन बन गया बनावट, रिश्तेदारी
टूट रहीं हैं।
प्रेम-प्रीत बन गयी दिखावट, नातेदारी
छूट रहीं हैं।
गौरी गइया, मिट्ठू भइया, याद बहुत
आते हैं।।
भोर हुई, चिड़ियाँ भी बोलीं, किन्तु शहर
अब भी अलसाया।
शीतल जल के बदले कर में, गर्म चाय का
प्याला आया।
खेत-अखाड़े, हरे सिंघाड़े, याद बहुत आते
हैं।।
चूल्हा-चक्की, रोटी-मक्की, कब का नाता
तोड़ चुके हैं।
मटकी में का ठण्डा पानी, सब ही पीना
छोड़ चुके हैं।
नदिया-नाले, संगी-ग्वाले, याद बहुत
आते हैं।।
घूँघट में से नयी बहू का, पुलकित हो
शरमाना।
सास-ससुर को खाना खाने, को आवाज
लगाना।
हँसी-ठिठोली, फागुन-होली, याद बहुत
आते हैं।।
|
शनिवार, 27 जुलाई 2019
"तिनका-तिनका की भूमिका" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भूमिका
कुछ माह पूर्व मुझे श्रीमती पुष्पा मेहरा द्वारा रचित दोहा संग्रह "तिनका-तिनका" की पाण्डुलिपि भूमिका लिखने हेतु प्राप्त हुई थी। आज जब "तिनका-तिनका" की प्रति मिली तो मुझे अपार हर्ष हुआ। पेपरबैक संस्करण में शब्दांकुर प्रकाशन, नई-दिल्ली द्वारा प्रकाशित 112 पृष्ठों की इस दोहाकृति का मूल्य मात्र रु. 150-00 है। जिसे शब्दांकुर प्रकाशन J-IInd, madangir, New-Delhi-110062 से प्राप्त किया जा सकता है।
श्रीमती पुष्पा
मेहरा के प्रकाशित होने वाले दोहासंग्रह “तिनका-तिनका” की पाण्डुलिपि मुझे काफी दिनों पहले डाक से मिल गयी थी जिस पर मैं कुछ
लिखना चाहता था मगर अपनी व्यस्तताओं में से आज ही इसी निमित्त समय निकाल पाया
हूँ। आपकी पाण्डुलिपि को पूरा पढ़ने के उपरान्त मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ
कि श्रीमती पुष्पा मेहरा के के मन और मस्तिष्क में हिन्दी शब्दकोश का खासा
भण्डार संचित है। जो एक दोहाकार के लिए बहुत जरूरी होता है।
दोहासंग्रह “तिनका-तिनका” का प्रारम्भ कवयित्री ने दोहों में माँ वीणापाणि की वन्दना से करते हुए
लिखा है-
“हे
माँ वीणावादिनी, वन्दन कर स्वीकार।
शब्द-शब्द में भर
सकूँ, सारे जग का प्यार।।“
आपने अपने दोहों को तुलसी, कबीर-रहीम से भी
चार कदम आगे चलकर मन्त्रों की संज्ञा देते हुए लिखा है-
“शब्द
नहीं ये मन्त्र हैं, जाने सकल जहान।
नवरस और अलंकरण, देते
इनको जान।।“
भारत में रहने वाले हर एक भारतीय को अपनी राष्ट्रभाषा देवनागरी हिन्दी
से प्यार होना चाहिए। यही भाव को आपके दोहों में स्पष्ट परिलक्षित होता है। आपने
अपने दोहों में हिन्दी की व्यथा को कुछ इस प्रकार से कहा है-
“हिन्दी
भूखी न्याय की, रह सदा ही मौन।
शब्द शब्द से
पूछता, तुमसे आगे कौन।।
भारत देश महान है, हिन्दी
इसकी जान।
कह-कह बरस बिता
दिये, दिया न अब तक मान।।“
शिक्षण पेशे से जुड़े होने के कारण आपने “तिनका-तिनका”
में “गुरू ज्ञान का दूत” शीर्षक से अनुपम दोहों का समावेश किया है-
“ज्ञान-मूल
गुरु सींचते, जन हितकारी जान।
उत्तम फल की कामना, है
इसका प्रतिमान।।“
नारी
होने के नाते दोहाकारा श्रीमती पुष्पा मेहरा ने “सृष्टि का
सार नारी” शीर्षक के सुन्दर दोहे रचे हैं। उदाहरण के लिए
निम्न दोहा दृष्टव्य है-
“नारी
फूल समान है, नारी है पाषाण।
नारी जीवन सूत्र
सी, नारी जग की शान।।“
अपने इसी अन्दाज मॆं “बेटियो पर भी कलम चलाते हुए
आप लिखती हैं-
“बेटी
ही नारी बने, वही सृष्टि का सार।
हाथ जोड़ विनती
यही, कन्या भ्रूण न मार।।“
“तिनका-तिनका” दोहा संग्रह एक विविधवर्णी
दोहों का संकलन हैं। जिसमें ऋतुओं और पर्वों पर भी विदूषी कवयित्री ने अपनी
लेखनी चलाई है। उदाहरणस्वरूप देखिए उनके कुछ उम्दा दोहरे-
“सरसों
फूली खेत में, बिखरी मदिर सुवास।
जंगल में मंगल हुआ, हँसने
लगे पलाश।।
--
नफरत की होली जली, उड़ा
अबीर-गुलाल।
रंगों में हैं
भीगते, भारत माँ के लाल।।
--
जेठ मास की धूप की, आतिस
ओढ़े पर्ण।
छाया शीतल दे रहे, भले
पीत हो वर्ण।।“
उत्तर प्रदेश के मौरावाँ, ज़िला उन्नाव में १० जून, १९४१ को जन्मी श्रीमती पुष्पा मेहरा की अब तक अपना राग, अनछुआ आकाश, रेशा-रेशा , आड़ी-तिरछी
रेखाएँ (काव्य - संग्रह ) के नाम से चार
पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है और “तिनका-तिनका” दोहा संग्रह प्रकाशित होने वाली आपकी पाँचवी पुस्तक है। आपने साहित्य लेखन को अपना शगल बनाकर निरंतर सृजन किया है और आज भी लेखन
कार्य में लगी रहती हैं।
“तिनका-तिनका” दोहासंकलन को पढ़कर
मैंने अनुभव किया है कि कवयित्री पुष्पा मेहरा ने भाषिक सौन्दर्य के साथ दोहे की
सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे
पूरा विश्वास है कि पाठक इस दोहा संग्रह को पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे और यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय
सिद्ध होगी।
अन्त में आपके दीर्घ जीवन की कामना करते हुए आशा करता हूँ की “तिनका-तिनका” दोहासंग्रह
मानदण्डों की गगनचुम्बी ऊँचाइयों अवश्य छुएगा।
(डॉ. रूपचन्द्र
शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं
साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड) 262 308
सम्पर्क-7906360576
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com
Website. http://uchcharan.blogspot.com.
|
दोहे "देंगे मिटा गुरूर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपने सेनाध्यक्ष ने, किया यहाँ ऐलान।
पूरा ही कश्मीर है, भारत का उद्यान।।
--
महिला हों या
पुरुष हों, सभी आज उन्मुक्त।
यही कामना कर
रहे, न्याय मिले उपयुक्त।।
--
अब आधा कश्मीर
है, हमें नहीं मंजूर।
पी.ओ.के. को
छीनकर, देंगे मिटा गुरूर।।
--
होंगे फिर आजाद अब,
सिंध-बिलोचिस्तान।
मिट जायेगा धरा
से, कट्टर पाकिस्तान।।
--
अब आधा कश्मीर तो,
नहीं हमें स्वीकार।
हम पूरे कश्मीर
पर, कर लेंगे अधिकार।।
--
अपने हक के लिए
अब, करनी होगी जंग।
देखेगा पूरा जगत,
केसरिया का रंग।।
--
केवल धमकी भर
नहीं, भारत की हुंकार।
चलती है संकल्प
से, मोदी की सरकार।।
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