सुलगते प्यार में, महकी हवाएँ आने वाली हैं।
दिल-ए-बीमार को, देने दवाएँ आने वाली हैं।।
चटककर खिल गईं
कलियाँ,
महक से भर गईं
गलियाँ,
सुमन की सूनी घाटी
में, सदाएँ आने वाली
है।
दिल-ए-बीमार को, देने दवाएँ आने वाली हैं।।
चहकने लग गई कोयल,
सुहाने हो गये हैं
पल,
नवेली कोपलों में, अब अदाएँ आने वाली हैं।
दिल-ए-बीमार को, देने दवाएँ आने वाली हैं।।
जवानी गीत है
अनुपम,
भरे इसमें हजारों
खम,
सुधा रसधार बरसाने, घटाएँ आने वाली हैं।
दिल-ए-बीमार को, देने दवाएँ आने वाली हैं।।
दिवस है प्यार
करने का,
नही इज़हार करने
का,
करोगे इश्क सच्चा
तो, दुआएँ आने वाली
हैं।
दिल-ए-बीमार को, देने दवाएँ आने वाली हैं।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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गुरुवार, 31 जनवरी 2013
“महकी हवाएँ” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
बुधवार, 30 जनवरी 2013
"दो मुक्तक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
(१)
नेह का नीर पिलाकर देखो।
शोख कलियों को खिला कर देखो।
वेवजहा हाथ मिलाने से कुछ नहीं होगा-
दिल से दिल को तो मिलाकर देखो।।
"शास्त्री मयंक"
(1)
NEH KAA NEER PILAAKAR DEKHO.
SHOKH KALION KO KHILAAKAR DEKHO.
BEVJAHA HAATH MILANE SE KUCHH NAHI HOGAA-
DIL SE DIL KO TO MILAAKAR DEKHO....
"SHASTRI MAYANK"
--
(2)
अब तो हर बात बहुत दूर गई।
दिल की सौगात बहुत दूर गई।
रौशनी अब नज़र नहीं आती
चाँदनी रात बहुत दूर गई।।
"शास्त्री मयंक"
--
(2)
AB TO HAR BAAT BAHUT DOOR GAYEE.
DIL KEE SAUGAAT BAHUT DOOR GAYEE.
RAUSHANI AB NAZAR NAHI AATEE-
CHAANDNI RAAT BAHUT DOOR GAYEE..
"SHASTRI MAYANK"
"छाया चारों ओर उजाला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
धूप धरा पर आज खिली है,
छाया चारों ओर उजाला।
उपवन में गुंजन करता है,
भँवरा हो करके मतवाला।।
छटा निराली है गुलशन की,
कली चहकती-फूल महकता,
सेमल हुआ लाल अंगारा,
यौवन उसका खूब दहकता,
महाकुम्भ में संगम तट पर,
योगी फेर रहे हैं माला।
उपवन में गुंजन करता है,
भँवरा हो करके मतवाला।।
कोंपल फूट रहीं पेड़ों में.
खेतों में हरियाली छाई,
अब बसन्त ने दस्तक ही है,
सर्दी भागी-गर्मी आई,
कीट-पतंगों को खाने को,
मकड़ी बुनती जाती जाला।
उपवन में गुंजन करता है,
भँवरा हो करके मतवाला।।
ऊँचे छज्जों पर मधुमक्खी,
छत्ते को हर साल बनाती,
दिनभर फूलों पर मँडराकर,
शहद इकट्ठा करती जाती,
नहीं जानती उसके धन पर,
कब है डाका पड़ने वाला।
उपवन में गुंजन करता है,
भँवरा हो करके मतवाला।।
हिमगिरि की ऊँची चोटी से,
जल बन करके हिम पिघला है,
प्यासी नदियों को भरने को,
पर्वत से धारा निकला है,
कलकल-छलछल बहती गंगा,
जैसे चलती अल्हड़ बाला।
उपवन में गुंजन करता है,
भँवरा हो करके मतवाला।।
तीन पात के पेड़ों पर भी,
लाल-लाल टेसू निखरे हैं,
ओस चमकती ऐसी जैसे,
पत्तों पर मोती बिखरे हैं,
अब आया मधुमास सुहाना,
निर्बल को बल देने वाला।
उपवन में गुंजन करता है,
भँवरा हो करके मतवाला।।
|
मंगलवार, 29 जनवरी 2013
"आने वाला है बसन्त" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आने वाला है बसन्त, अब प्रणय दिवस में देर नहीं।
कुहरा छँटने ही वाला है, फिर
होगा अन्धेर नहीं।।
धूप गुनगुनी पाकर, मादक
नशा बहुत चढ़ जायेगा,
सूरज यौवन पर आयेगा,
तापमान बढ़ जायेगा,
तूफानों में चलते रहते, रुकते
कभी दिलेर नहीं।
कुहरा छँटने ही वाला है, फिर
होगा अन्धेर नहीं।।
धन से सब कुछ मिल जायेगा, लेकिन
मिलता प्यार नहीं,
इससे बढ़ कर दुनिया में, होता
कोई उपहार नहीं,
नादिरशाही से कोई भी, खिलता
पीत कनेर नहीं।
कुहरा छँटने ही वाला है, फिर
होगा अन्धेर नहीं।।
जो दिल से उपजे वो ही तो, ग़ज़ल
कही जाती है,
नेह भरा पानी पी कर, ही
तो बहार आती है,
काँटे उगते हैं बबूल में, खट्टे-मीठे
बेर नहीं।
कुहरा छँटने ही वाला है, फिर
होगा अन्धेर नहीं।।
बन्दर को अदरख खाने में, स्वाद
नहीं आ पाता है,
किन्तु करेले को मानव, खुश
हो करके खा जाता है,
आँखोंवालों के हिस्से में, आती
कभी बटेर नहीं।
कुहरा छँटने ही वाला है, फिर
होगा अन्धेर नहीं।।
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सोमवार, 28 जनवरी 2013
"गद्दारों से गद्दारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों
की खुद्दारी।।
दया उन्हीं पर दिखलाओ, जो
दिल से माफी माँगें,
कुटिल, कामियों को फाँसी पर जल्दी से हम टाँगें,
ऐसा बने विधान देश का, जिसमें
हो खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों
की खुद्दारी।।
ऊँचा पर्वत-गहरा सागर, हमको
ये बतलाता है,
अटल रहो-गम्भीर बनो, ये
शिक्षा देता जाता है,
डर कर शीश झुकाना ही तो, खो
देता है खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों
की खुद्दारी।।
तुम प्रताप के वंशज हो, उनके
जैसा बन जाओ तो,
कायरता को छोड़, पराक्रम
जीवन में अपनाओ तो,
याद करो निज आन-बान को, आ
जायेगी खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों
की खुद्दारी।।
कंकड़ का उत्तर हमको, पत्थर
से देना होगा,
नीति यही कहती, दुश्मन
से लोहा लेना होगा,
निर्भय होकर दिखलानी ही होगी अपनी खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों
की खुद्दारी।।
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रविवार, 27 जनवरी 2013
"हमारा चमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए,
दे रहे हैं हमें शुद्ध-शीतल पवन!
खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
आदमी के सितम-जुल्म को सह रहे,
परकटे से शज़र निज कथा कह रहे,
रत्न अनमोल हैं ये हमारे लिए,
कर रहे हम इन्हीं का हमेशा दमन!
खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
ये हमारे लिए मुफ्त उपहार हैं,
कर रहे देश-दुनिया पे उपकार हैं,
ये बचाते धरा को हमारे लिए,
रोग और शोक का होता इनसे शमन!
खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
ये हमारी प्रदूषित हवा पी रहे,
घोटकर हम इन्हीं को दवा पी रहे,
तन हवन कर रहे ये हमारे लिए,
इनके तप-त्याग को है हमारा नमन!
खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
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शनिवार, 26 जनवरी 2013
" इतिहास में 26 जनवरी"
26 जनवरी से जुड़ी इतिहास की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को
जानिए!
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शुक्रवार, 25 जनवरी 2013
"सिसक रहा गणतन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गाकर आज सुनाता हूँ मैं,
गाथा हिन्दुस्तान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
नहीं रहे अब वीर शिवा,
राणा जैसे अपने शासक,
राजा और वजीर आज के,
बने हुए थोथे भाषक,
लज्जा की है बात बहुत,
ये बात नहीं अभिमान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
कहने को तो आजादी है,
मन में वही गुलामी है,
पश्चिम के देशों का भारत,
बना हुए अनुगामी है,
मक्कारों ने कमर तोड़ दी,
आन-बान और शान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
बाप बना राजा तो उसका,
बेटा राजकुमार बना,
प्रजातन्त्र की फुलवारी में,
उपजा खरपतवार घना,
लोकतन्त्र में गन्ध आ रही,
खद्दर के परिधान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
देशी नाम-विधान विदेशी,
सिसक रहा गणतन्त्र यहाँ,
लचर व्यवस्था देख-देखकर,
खिसक रहा जनतन्त्र यहाँ,
हार गई फरियाद यहाँ पर,
अब सच्चे इन्सान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
-0-0-0- इस रचना को मेरे नाम के साथ यहाँ भी लगाया गया है! "सिसक रहा गणतन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') |
गुरुवार, 24 जनवरी 2013
"ऐसे होगा देश महान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुधवार, 23 जनवरी 2013
"दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
विषय-वस्तु में सार हो, लेकिन हो लालित्य।
दुनिया को जो दे दिशा, वो ही है साहित्य।१।
तम को को हरने के लिए, आये धरा पे नित्य।
जग को बाँटे दे ऊर्जा, वो ही है आदित्य।२।
घर में औ'
परिवार में, उज्ज्वल रहे चरित्र।
जो सुख-दुख को बाँटता, वो ही सच्चा मित्र।३।
अन्धों को मिलती जहाँ, आकर
स्वयं बटेर।
उजियारा ही हारता, आता जब
अंधेर।४।
जन-जन को जो दे दिशा, उसका नेता नाम।
अब तो कुनबे के लिए, नेता करते काम।५।
अनपढ़ शासक कर रहे, पढ़े-लिखे बेकार।
जो घोटालों को करें, उनको मिले पगार।६।
|
मंगलवार, 22 जनवरी 2013
"1600वीं पोस्ट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दाँव-पेंच हो जाता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
पहले से अनुमान लगाकर,
नहीं नियोजन करता हूँ,
लक्ष्यहीन लेखन से प्रतिदिन,
पन्नों को ही भरता हूँ,
जैसे एक नशेड़ी पथ
पर,
अपने कदम बढ़ाता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
कोयल ने जब कुहुक भरी तो,
मन ही मन मुस्काता हूँ,
जब काँटे चुभते पाँवों में,
थोड़ा सा सुस्ताता हूँ,
सुख-दुख के ताने-बाने का,
अनुभव मुझे सताता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
कैसे तन और मन हो निर्मल,
मैली गंगा की धारा,
कंकरीट की देख फसल को,
कृषक बन गया बे-चारा,
धरा-धाम और जल-जीवन से,
मेरा भी तो नाता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
लज्जा लुटती देख
नारि की,
कैसे चुप हो जाऊँ मैं,
देख शासकों की चुप्पी को,
गुमसुम क्यों हो जाऊँ मैं,
मातृमूमि से गद्दारी को,
सहन न मन कर पाता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
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