-- ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही, सिहरन बढ़ती जाए! आओ साथी प्यार करें हम, मौसम हमें बुलाए!! -- त्यौहारों की धूम मची है, पंछी कलरव गान सुनाते। बया-युगल तिनके ला करके, अपना विमल-वितान बनाते। झूम-झूमकर रसिक भ्रमर भी, गुन-गुन गीत सुनाए! आओ साथी प्यार करें हम, मौसम हमें बुलाए!! -- बीत गई बरसात हुआ, गंगा का निर्मल पानी। नीले नभ पर सूरज-चन्दा, चाल चलें मस्तानी। उपवन में भोली कलियों का, कोमल मन मुस्काए! आओ साथी प्यार करें हम, मौसम हमें बुलाए!! -- हलचल करते रहना ही तो, जीवन के लक्षण हैं। चार दिनों के लिए चाँदनी, बाकी काले क्षण हैं। बार-बार यूँ ही जीवन में, सुखद चन्द्रिका छाए! आओ साथी प्यार करें हम, मौसम हमें बुलाए!! -- रोली-अक्षत-चन्दन लेकर, करें आज अभिनन्दन। सुख देने वाली सत्ता का, आओ करें हम वन्दन। उसकी इच्छा के बिन कोई, पत्ता हिल ना पाए! आओ साथी प्यार करें हम, मौसम हमें बुलाए!! -- |
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शुक्रवार, 30 सितंबर 2022
गीत "सिहरन बढ़ती जाए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 29 सितंबर 2022
मेरी जीवन संगिनी का जन्मदिन "साथ तुम मझधार में मत छोड़ देना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- जन्मदिन पर मैं सतत् उपहार दूँगा। प्यार जितना है हृदय में, प्यार दूँगा।। साथ में रहते जमाना हो गया है, “रूप” भी अब तो पुराना हो गया
है, मैं तुम्हें फिर भी नवल उद्गार दूँगा। प्यार जितना है हृदय में, प्यार दूँगा।। एक पथ के पथिक ही हम और तुम हैं, एक रथ के चक्र भी हम और तुम हैं, नाव जब भी डगमगायेगी भँवर में, हाथ में अपनी तुम्हें पतवार दूँगा। प्यार जितना है हृदय में, प्यार दूँगा।। साथ तुम मझधार में मत छोड़ देना, प्रीत की तुम डोर को मत तोड़ देना, सुमन कलियों से सुसज्जित चमन में, फैसले का मैं तुम्हें अधिकार दूँगा। प्यार जितना है हृदय में, प्यार दूँगा।। ज़िन्दग़ी में नित-नये आग़ाज़ होंगे, दिन पुराने और नये अन्दाज़ होंगे, प्राण तन में जब तलक मेरे रहेंगे, मैं तुम्हें अपना सबल आधार दूँगा। प्यार जितना है हृदय में, प्यार दूँगा।। -- |
बुधवार, 28 सितंबर 2022
काव्यानुवाद "पिता की आकांक्षाएँ...by Samphors Vuth" (अनुवादक-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
My Dad Wishes Samphors Vuth अनुवादक- डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ ♥♥♥♥♥♥♥♥♥ पिता की आकांक्षाएँ (काव्यानुवाद) मेरे साथ सदा अच्छा हो, यही कामना करते हो। नहीं लड़ूँ मैं कभी किसी से, यही भावना भरते हो।। -- उन्नति के सोपान चढ़ूँ मैं, नीचे कभी न गिर जाऊँ। आप यही इच्छा रखते हो, विजय हमेशा मैं पाऊँ।। -- पूज्य पिता जी आप पुत्र की, देखभाल में लगे हुए। मेरे लिए हमेशा तत्पर, जीवनपथ पर डटे हुए।। -- मेरा हँसना-गाना सुनकर, तुम कितना सुख पाते हो। लेकिन मेरा रुदन देख तुम, दुखित तात हो जाते हो।। -- जीवित रहूँ सदा मैं जग में, दुआ हमेशा करते हो। मेरे सुख का मुस्तैदी से, ध्यान हमेशा धरते हो।। -- तुम हो मेरे पूज्य पिता जी, इस जीवन के दाता हो। मेरा जीवन तुमसे ही है, मेरे तुम्हीं विधाता हो।। -- |
मंगलवार, 27 सितंबर 2022
गीत "बाँटती है सुख, हमें शीतल पवन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन। छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।। उष्ण मौसम का गिरा कुछ आज पारा, हो गयी सामान्य अब नदियों की धारा, नीर से आओ करें हम आचमन। खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन। छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।। रात लम्बी हो गयी अब हो गये छोटे दिवस, सूर्य की गर्मी घटी, मिटने लगी तन की उमस, बाँटती है सुख, हमें शीतल
पवन। अर्चना-पूजा की चहके दीप लेकर थालियाँ, धान के बिरुओं ने पहनी हैं सुहानी बालियाँ, अन्न की खुशबू से, महका है चमन। खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन। छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।। -- तितलियाँ उड़ने लगीं बदले हुए परिवेश में, भर गयीं फिर से उमंगे आज अपने देश में, शीत का होने लगा अब आगमन। खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन। छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।। -- |
सोमवार, 26 सितंबर 2022
दोहे "आते हैं नवरात्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- श्राद्ध गये तो आ गये, माता के नवरात्र। लीला का मंचन करें, रामायण के पात्र।। -- सबको देते प्रेरणा, माता के नवरूप। निष्ठा से पूजन करो, लेकर दीपक-धूप।। -- सच्चे मन से कीजिए, माता का गुण-गान। माता तो सन्तान का, रखती पल-पल ध्यान।। -- अभ्यागत को देखकर, होना नहीं उदास। करो प्रेम से आरती, रक्खो व्रत-उपवास।। -- शुद्ध बनाने के लिए, आते हैं नवरात्र। ज्ञानी बनने के लिए, पढ़ो नियम से शास्त्र।। -- सारे सपनों को करें, माता जी साकार। कर्मों से ही तो बने, जीवन का आधार।। -- ज्ञानदायिनी शारदे, भर दो खाली ताल। वीणा की झंकार से, कर दो मुझे निहाल।। -- |
रविवार, 25 सितंबर 2022
गीत "ससुराल है बेड़ियों की तरह" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जिन्दगी चल रही चिमनियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। -- लाडलों के लिए पूरे घर-बार हैं, लाडली के लिए संकुचित द्वार हैं, भाग्य इनको मिला कंघियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। -- रंक माता-पिता की हैं मुश्किल बढ़ी, ताड़ सी पुत्रियों की हैं चिन्ता खड़ी, भूख वर की बढ़ी भेड़ियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। -- शादियों में बहुत माँग जर की बढ़ी, नोट की गड्डियों पर नजर हैं गड़ी, रोग है बढ़ रहा कोढ़ियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। -- ये ही पीड़ा हृदय में रहेगी सदा, लेखनी दर्द इनका लिखेगी सदा, इनकी ससुराल है बेड़ियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। -- |
दोहे "पितृ विसर्जिनी अमावस्या" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पूरे श्रद्धा-भाव से, किये श्राद्ध निष्पन्न। पितृअमावस पर हुए, काम सभी सम्पन्न।। -- अब आयेंगे सामने, माता के नवरूप। निष्ठा से पूजन करो, लेकर दीपक-धूप।। -- सच्चे मन से कीजिए, माता का गुण-गान। माता तो सन्तान का, ऱखती पल-पल ध्यान।। -- अभ्यागत को देखकर, होना नहीं उदास। करो प्रेम से आरती, रक्खो व्रत-उपवास।। -- शुद्ध बनाने के लिए, आते हैं नवरात्र। ज्ञानी बनने के लिए, पढ़ो नियम से शास्त्र।। सारे सपनों को करें, माता जी साकार। कर्मों से ही तो बने, जीवन का आधार।। -- ज्ञानदायिनी शारदे, भर दो खाली ताल। वीणा की झंकार से, कर दो मुझे निहाल।। -- |
शनिवार, 24 सितंबर 2022
बालकविता "बकरे-बकरीआये भागे-भागे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 23 सितंबर 2022
गीत "गुम हो गया उजाला क्यों" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुम हो गया उजाला क्यों? दर्पण काला-काला क्यों? चन्दा गुम है, सूरज सोया काट रहे, जो हमने बोया तेल कान में डाला क्यों? राज-पाट सिंहासन पाया सुख भोगा-आनन्द मनाया फिर करता घोटाला क्यों? जब खाली भण्डार पड़े हैं बारिश में क्यों अन्न सड़े हैं गोदामों में ताला क्यों? कहाँ गयीं सोने की लड़ियाँ पूछ रही हैं भोली चिड़ियाँ सूखी मंजुल माला क्यों? जनता सारी बोल रही है न्याय-व्यवस्था डोल रही है दाग़दार मतवाला क्यों? |
गुरुवार, 22 सितंबर 2022
गीत "रंग-बिरंगी दुनिया में, मत कोई उत्पात करो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सम्बन्धों की दुनिया में, अनुबन्धों की मत बात करो। सपने कब अपने होते हैं, सपनों की मत बात करो।। लक्ष्य नहीं हो जिन राहों में, कभी न उन पर कदम धरो, जिनसे औंधे मुँह गिर जाओ, ऐसी नहीं उड़ान भरो, रंग-बिरंगी इस दुनिया में, मत कोई उत्पात करो। सपने कब अपने होते हैं, सपनों की मत बात करो।। अपनी बोली, अपनी भाषा, सबको लगती है प्यारी, उपवन को धनवान बनाती, भाँति-भाँति की फुलवारी, सबके अपने भिन्न वेश है, ऐसा भारतवर्ष देश है। पतझड़ की मारी बगिया में, और न अब हिमपात करो। सपने कब अपने होते हैं, सपनों की मत बात करो।। अन्न जहाँ का खाते हो, जलपान जहाँ पर करते हो, अपने काले कृत्यों से, क्यों उसे कलंकित करते हो, मानवता की प्राचीरों पर, अब न कुठाराघात करो। सपने कब अपने होते हैं, सपनों की मत बात करो।। |
बुधवार, 21 सितंबर 2022
गीत "बहती जल की धार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उत्तर से दक्षिण को, भू पर। बहती जल की धार निरन्तर।। -- संसर्गों में जो भी आता, तन-मन से पावन हो जाता, अवगुण हो जाते छूमन्तर। बहती जल की धार निरन्तर।। -- सुनकर कलकल-छलछल के सुर, आनन्दित हो जाता है उर, निर्मल हो जाता है अन्तर। बहती जल की धार निरन्तर।। -- कुदरत का है साज अनोखा, इसमें नही बनावट-धोखा, चलता जाता चक्र निरन्तर। बहती जल की धार निरन्तर।। -- |
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