मेरे भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर,
कर रही हूँ प्रभू से यही कामना।
लग जाये किसी की न तुमको नजर,
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
चन्द्रमा की कला की तरह तुम बढ़ो,
उन्नति के शिखर पर हमेशा चढ़ो,
कष्ट और क्लेश से हो नही सामना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
थालियाँ रोली चन्दन की सजती रहें,
सुख की शहनाइयाँ रोज बजती रहें,
पूर्ण हों भाइयों की सभी साधना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
रोशनी से भरे दीप जलते रहें,
नेह के सिन्धु नयनों में पलते रहें,
आज बहनों की हैं ये ही आराधना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
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सोमवार, 31 अक्टूबर 2016
गीत "भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गीत "भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरे भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर,
कर रही हूँ प्रभू से यही कामना।
लग जाये किसी की न तुमको नजर,
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
चन्द्रमा की कला की तरह तुम बढ़ो,
उन्नति के शिखर पर हमेशा चढ़ो,
कष्ट और क्लेश से हो नही सामना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
थालियाँ रोली चन्दन की सजती रहें,
सुख की शहनाइयाँ रोज बजती रहें,
पूर्ण हों भाइयों की सभी साधना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
रोशनी से भरे दीप जलते रहें,
नेह के सिन्धु नयनों में पलते रहें,
आज बहनों की हैं ये ही आराधना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
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गीत "भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरे भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर,
कर रही हूँ प्रभू से यही कामना।
लग जाये किसी की न तुमको नजर,
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
चन्द्रमा की कला की तरह तुम बढ़ो,
उन्नति के शिखर पर हमेशा चढ़ो,
कष्ट और क्लेश से हो नही सामना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
थालियाँ रोली चन्दन की सजती रहें,
सुख की शहनाइयाँ रोज बजती रहें,
पूर्ण हों भाइयों की सभी साधना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
रोशनी से भरे दीप जलते रहें,
नेह के सिन्धु नयनों में पलते रहें,
आज बहनों की हैं ये ही आराधना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
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गीत "भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरे भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर,
कर रही हूँ प्रभू से यही कामना।
लग जाये किसी की न तुमको नजर,
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
चन्द्रमा की कला की तरह तुम बढ़ो,
उन्नति के शिखर पर हमेशा चढ़ो,
कष्ट और क्लेश से हो नही सामना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
थालियाँ रोली चन्दन की सजती रहें,
सुख की शहनाइयाँ रोज बजती रहें,
पूर्ण हों भाइयों की सभी साधना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
रोशनी से भरे दीप जलते रहें,
नेह के सिन्धु नयनों में पलते रहें,
आज बहनों की हैं ये ही आराधना।
दूज के इस तिलक में यही भावना।।
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दोहे "गोवर्धन पूजा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अन्नकूट पूजा करो, गोवर्धन है आज।
गोरक्षा से सबल हो, पूरा देश समाज।१।
श्रीकृष्ण ने कर दिया, माँ का ऊँचा भाल।
सेवा करके गाय की, कहलाये गोपाल।२।
गौमाता से ही मिले, दूध-दही, नवनीत।
सबको होनी चाहिए, गौमाता से प्रीत।३।
गइया के घी-दूध से, बढ़ जाता है ज्ञान।
दुग्धपान करके बने, नौनिहाल बलवान।४।
कैमीकल का उर्वरक, कर देगा बरबाद।
फसलों में डालो सदा, गोबर की ही खाद।५।
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रविवार, 30 अक्टूबर 2016
दोहे "सबको दो उपहार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शनिवार, 29 अक्टूबर 2016
गीत "आ गयी दीपावली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दीप खुशियों के जलाओ, आ रही दीपावली।
रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।।
क्या करेगा तम वहाँ, होंगे अगर नन्हें दिये,
चाँद-तारों को करीने से, अगर रौशन किये,
हार जायेगी अमावस, छा रही दीपावली।
रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।।
नित्य घर में नेह के, दीपक जलाना चाहिए,
उत्सवों को हर्ष से, हमको मनाना चाहिए,
पथ हमें प्रकाश का, दिखला रही दीपावली।
रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।।
शायरों को शम्मा से, कवियों को दीपक से लगाव,
महकते मिष्ठान से, होता सभी को है लगाव,
गीत-ग़ज़लों का तराना, गा रही दीपावली।
रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।।
गजानन के साथ, लक्ष्मी-शारदा की वन्दना,
देवताओं के लिए अब, द्वार करना बन्द ना,
मन्त्र को उत्कर्ष के, सिखला रही दीपावली।
रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।। |
दोहे "धन्वन्तरि जयन्ती-नरक चतुर्दशी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
देती नरकचतुर्दशी, सबको यह
सन्देश।
साफ-सफाई को करो, सुधरेगा
परिवेश।।
--
दीपक यम के नाम का, जला
दीजिए आज।
पूरी दुनिया से अलग, हो
अपने अंदाज।।
--
जन्मे थे धनवन्तरी, करने
को कल्याण।
रहें निरोगी सब मनुज, जब
तक तन में प्राण।।
--
भेषज लाये धरा से, खोज-खोज
भगवान।
धन्वन्तरि संसार को, देते
जीवनदान।।
--
रोग किसी के भी नहीं, आये
कभी समीप।
सबके जीवन में जलें,
हँसी-खुशी के दीप।।
--
त्यौहारों की शृंखला, पावन
है संयोग।
इसीलिए दीपावली, मना रहे
सब लोग।।
--
कुटिया-महलों में जलें, जगमग-जगमग
दीप।
सरिताओं के रेत में, मोती
उगले सीप।।
|
शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016
दोहे "धनतेरस-सजे हुए बाज़ार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पर्वों की शृंखला में
आप सभी को
धनतेरस,
नर्क चतुर्दशी,
दीपावली,
गोवर्धनपूजा
और
भइयादूज की
हार्दिक शुभकामनाएँ!
♥डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'♥
धनतेरस के पर्व पर, सजे हुए बाज़ार।
घर में लाओ आज कुछ, नये-नये उपहार।।
झालर-दीपों से सजें, आज सभी के गेह।
मन के नभ से आज तो, बरसे मधुरिम नेह।।
रहे हमेशा देश में, उत्सव का माहौल।
मिष्ठानों का स्वाद ले, बोलो मीठे बोल।।
सरस्वती के साथ हों, लक्ष्मी और गणेश।
तब आएगी सम्पदा, सुधरेगा परिवेश।।
उल्लू बन जाना नहीं, पाकर द्रव्य अपार।
धन-दौलत के साथ हो, मेधा का उपहार।।
|
गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016
दोहे "ये माटी के दीप" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
झिलमिल-झिलमिल जल
रहे, ये माटी के दीप।
देवताओं के चित्र
के, रखना इन्हें समीप।।
--
दीपों की दीपावली,
देती है सन्देश।
घर-आँगन के साथ
में, रौशन हो परिवेश।।
--
पाकर बाती-नेह को,
लुटा रहा है नूर।
नन्हा दीपक कर
रहा, अन्धकार को दूर।।
--
लछमी और गणेश के, रहें
शारदा साथ।
चरणों में इनके
सदा, रोज झुकाओ माथ।।
--
कभी विदेशी माल
का, करना मत उपयोग।
सदा स्वदेशी का
करो, जीवन में उपभोग।।
--
मेरे भारतवासियों,
ऐसा करो चरित्र।
दौलत अपने देश की,
रखो देश में मित्र।।
|
मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016
दोहे "यदुवंशी तलवार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आपस में लड़ने लगी, यदुवंशी
तलवार।
अपने ही तटबन्ध की, लगी काटने
धार।।
--
सुलह सफाई के हुए, कुण्ठित
सब हथियार।
भाई-भतीजावाद का, बिखर गया
परिवार।।
--
सत्ता पाने के लिए, कुनबे
की है जंग।
देख रहा मुखिया यहाँ,
राजनीति के रंग।।
--
होगा कुनबेवाद का, जिस दल
में अधिकार।
उस दल का बेड़ा भला, होगा कैसे
पार।।
--
कैसे होगा फैसला, घर की है
ये रार।
नहीं पाटने से पटे, बढ़ती
हुई दरार।।
--
उड़ती हुई पतंग की, डोर गयी
है टूट।
जाने किसके भाग में, आयेगी
अब लूट।।
--
लेकर भगवा चल पड़ा, राम
नाम का साथ।
हाथी भी खुश हो रहा, आगे
बढ़ता हाथ।।
--
राम नाम के सामने, डटा हुआ
रहमान।
जनमत पाने की नहीं, राह यहाँ
आसान।।
|
दोहे "नहीं जेब में दाम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मनमोहक सबको लगें, झालर-बन्दनवार।
जगमग करती रौशनी, सजे हुए बाजार।।
--
मन सबका ललचा रहे, काजू औ’ बादाम।
लेकिन श्रमिक-किसान की, नहीं जेब में दाम।।
--
धनवानों के है लिए, दीपों का त्यौहार।
जुआ खेलते शान से, जीत रहे या हार।।
--
बाजारों में धान का, गिरा हुआ है भाव।
धरती के भगवान के, घर में बहुत अभाव।।
--
जो दुनिया को पालता, बदतर उसका हाल।
औने-पौने दाम में, उसका बिकता माल।।
--
चाहे अपने देश में, कोई हो सरदार।
नहीं किसानों का बना, अब तक पैरोकार।।
--
जितने जनसेवक हुए, निकले सब मक्कार।
करते हैं मत के लिए, भाषण लच्छेदार।।
--
उनकी है दीपावली, उनके सब त्योहार।
लेकिन जनता झेलती, महँगाई की मार।।
|
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