लिखकर सबको भेजिए, दुनिया में सन्देश।।
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जाकर कभी समूह में, करना मत घुसपैठ।
लिखना-पढ़ना कीजिए, अपने घर में बैठ।।
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अनजाने इस रोग से, घबड़ा रहा समाज।
कोरोना से त्रस्त है, पूरी दुनिया आज।।
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घोर आपदा काल में, धीरज रखना आप।
एकल होकर कीजिए, सारे क्रिया-कलाप।।
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सामजिक परिवेश में, आज आ गई मोच।
अपने-अपनों के लिए, रखना अपनी सोच।।
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सबके हित के हैं लिए, बन्दी का फरमान।
भजन-जागरण से बड़ी, प्यारी होती जान।।
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थोडे दिन के बाद में, बदलेंगे हालात।
कोरोना की देश में, हो जायेगी मात।।
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"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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मंगलवार, 31 मार्च 2020
दोहे "धीरज रखना आप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
संस्मरण "भूख" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सोमवार, 30 मार्च 2020
गीत "सन्नाटा है आज वतन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सन्नाटा है आज वतन में।।
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द्वार कामना से संचित है,
हृदय भावना से वंचित है,
प्यार वासना से रंजित है,
कैसे फूल खिलें उपवन में?
सन्नाटा है आज वतन में।।
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सूरज शीतलता बरसाता,
चन्दा अगन लगाता जाता,
पागल षटपद शोर मचाता,
धूमिल तारे नीलगगन में।
सन्नाटा है आज वतन में।।
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युग केवल अभिलाषा का है,
बिगड़ गया सुर भाषा का है,
जीवन नाम निराशा का है,
कोयल रोती है कानन में।
सन्नाटा है आज वतन में।।
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अंग और प्रत्यंग वही हैं,
पहले जैसे रंग नहीं हैं,
जीने के वो ढंग नहीं हैं,
काँटे उलझे हैं दामन में।
सन्नाटा है आज वतन में।।
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मौसम भी अनुरूप नहीं है,
चमकदार अब धूप नहीं है,
तेजस्वी अब “रूप” नहीं है,
पात झर गये मस्त पवन में।
सन्नाटा है आज वतन में।।
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रविवार, 29 मार्च 2020
विविध दोहावली "चरित्र पर बाइस दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मात शारदे को कभी, मत बिसराना मित्र।
मेधावी मेधा करे, उन्नत करे चरित्र।१।
कल तक जो बैरी रहे, आज बन गये मित्र।
अच्छे-अच्छों के यहाँ, बिकते रोज चरित्र।२।
भावनाओं के वेग में, बह मत जाना मित्र।
रखना हर हालात में, अपने साथ चरित्र।३।
अगर आचरण में रहे, उज्जवल चित्र-चरित्र।
प्रतिदिन तन के साथ में, मन को करो पवित्र।४।
नाजुक दौर निकल गया, बदल गये हैं मित्र।
हुआ खेल का अन्त तो, बदल गये हैं चित्र।५।
चरैवेति के मन्त्र को, भूल न जाना मित्र।
लेखक की ही लेखनी, जाहिर करे चरित्र।६।
नित्य नियम से कीजिए, मन को सदा पवित्र।
नहीं पूजना चित्र को, पूजो मात्र चरित्र।७।
अमल-धवल होता नहीं, सबका चित्त-चरित्र।
जाँच-परख के बाद ही, यहाँ बनाना मित्र।८।
नहीं रहा अब आचरण, लोग हुए अपवित्र।
पाश्चात्य परिवेश में, दूषित हुआ चरित्र।९।
दीन-हीन थोथे वचन, कभी न बोलो मित्र।
वाणी से होता प्रकट, अच्छा-बुरा चरित्र।१०।
अगर आचरण शुद्ध हो, उज्जवल रहे चरित्र।
प्रतिदिन तन के साथ में, मन भी रहे पवित्र।११।
सोच-समझकर खोलना, अपनी वाणी मित्र।
जिह्वा देती है बता, अच्छा-बुरा चरित्र।१२।
सबसे पहले जाँचिए, उसका चित्त-चरित्र।
यदि गुण हों अनुकूल तब, उसे बनाओ मित्र।१३।
सौ-सौ बार विचारिए, क्या होता है मित्र।
खूब जाँचिए-परखिए, पहले चित्त-चरित्र।१४।
बिगड़ गया वातावरण, बिगड़ा आज चरित्र।
ऐसे में तो योग ही, तन-मन करे पवित्र।१५।
दर्पण में आता अगर, हमको नज़र चरित्र।
कभी न फिर हम देखते, खुद का उसमें चित्र।१६।
दिल की कोटर में बसा, मन है बड़ा विचित्र।
मन को दर्पण लो बना, कर लो चित्त पवित्र।१७।
आधी घरवाली नहीं, होती साली मित्र।
रखना हरदम चाहिए, अपना साफ चरित्र।१८।
जल का करके आचमन, अन्तस करो पवित्र।
लेकिन पहले कीजिए, अपना साफ चरित्र।१९।
लगा रहे हैं सब यहाँ, अपने मन के चित्र।
अच्छे-अच्छों का हुआ, दूषित यहाँ चरित्र।२०।
व्यथा जगत की है यही, व्यथा-व्यथा है मित्र।
ऐसा ही अब हो गया, युग का चित्र-चरित्र।२१।
साम-दाम-भय-भेद का, दर्शन बड़ा विचित्र।
बहके हुए चरित्र की, पोल खोलते चित्र।२२।
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शनिवार, 28 मार्च 2020
गीत "मानवता से प्यार किया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सेवा का व्रत धार लिया है।
मानवता से प्यार किया है।।
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रंग बहुत थे ढंग बहुत थे,
कभी न उल्टा पथ अपनाया,
जिसको अपना मीत बनाया,
उसका पूरा साथ निभाया,
हमने सूई-धागा लेकर,
बैरी का भी वक्ष सिया है।
मानवता से प्यार किया है।।
--
झंझावातों के दलदल में,
कभी किसी का हाथ न छोड़ा, शरणागत को गले लगाया, मर्यादा का साथ न तोड़ा, अमृत रहे बाँटते जग को, हमने केवल गरल पिया है। मानवता से प्यार किया है।। -- अपनी झोली में से हम तो, सच्चे मोती बाँट रहे है, बैर-भाव की खाई को हम, प्रेम-प्रीत से पाट रहे हैं, सन्तो ने जो सिखलाया है, जग को वो उपहार दिया है। मानवता से प्यार किया है।।
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शुक्रवार, 27 मार्च 2020
दोहे "कोरोना के रोग से, जूझ रहा है देश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कोरोना के
रोग से, जूझ रहा है देश।
अगर
सुरक्षित आप हैं, बचा रहेगा देश।।
आवश्यकता
से अधिक. करना नहीं निवेश।
हम सबके
सहयोग से, सुधरेगा परिवेश।।
कमी नहीं
कुछ देश में, सुलभ सभी हैं चीज।
मगर नहीं
लाँघो अभी, निज घर की दहलीज।।
विपदा के इस
काल में, शासन है तैयार।
हर घर पर
सामान को, भेजेगी सरकार।।
साबुन से धो
लीजिए, हर घण्टे निज हाथ।
तुलसी और
गिलोय का, पीना प्रतिदिन क्वाथ।।
साथ-साथ
मिलकर नहीं, करना क्रिया कलाप।
कोरोना के
दैत्य को, हरा दीजिए आप।।
नकारात्मक
सोच से, नहीं चलेगा काम।
अफवाहों को
दीजिए, पूरा आज विराम।।
अपने भारत
में रहें, सारे लोग निरोग।
हर हालत
में कीजिए, शासन का सहयोग।।
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गुरुवार, 26 मार्च 2020
गीत "नियमों को अपनाओगे कब" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जग को राह दिखाओगे कब
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करना है उपकार वतन पर संयम रखना अपने मन पर कभी मैल मत रखना तन पर संकट दूर भगाओगे कब नियमों को अपनाओगे कब --
अभिनव कोई गीत बनाओ,
सारी दुनिया को समझाओ
स्नेह-सुधा की धार बहाओ
वसुधा को सरसाओगे कब
जग को राह दिखाओगे कब
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सुस्ती-आलस दूर भगा दो
देशप्रेम की अलख जगा दो
श्रम करने की ललक लगा दो
नवअंकुर उपजाओगे कब
जग को राह दिखाओगे कब
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देवताओं के परिवारों से
ऊबड़-खाबड़ गलियारों से
पर्वत के शीतल धारों से
नूतन गंगा लाओगे कब
जग को राह दिखाओगे कब
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सही दिशा दुनिया को देना
अपनी कलम न रुकने देना
भाल न अपना झुकने देना
सच्चे कवि कहलाओगे कब
जग को राह दिखाओगे तब
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बुधवार, 25 मार्च 2020
दोहे "समय बड़ा विकराल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जीवन संकट
में पड़ा, समय बड़ा विकराल।
घूम रहा है
जगत में, कोरोना बन काल।।
आवाजाही
बन्द है, सड़कें हैं सुनसान।
कोरोना का
हो गया, लोगों को अनुमान।।
हालत की
गम्भीरता, समझ गये हैं लोग।
जनता अब
करने लगी, शासन का सहयोग।।
घर में
बैठे कीजिए, पाठन-पठन विचार।
मोदी के
आह्वान पर, बन्द हुए बाजार।।
सामूहिक
सहयोग से, रोग जायगा हार।
भारत की इस
पहल को, मान गया संसार।।
धरने के अस्तित्व
का, अब थम गया उबाल।
आज बाग
शाहीन का, मिट ही गया बवाल।।
साबुन से
धो हाथ को, मुख पर रखो रुमाल।
हटा दीजिए
ताल से, अब सारे शैवाल।।
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