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बुधवार, 28 दिसंबर 2011
"आने वाला अब नया साल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मंगलवार, 27 दिसंबर 2011
"यीशू को प्रणाम करें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सोमवार, 26 दिसंबर 2011
"आठ दिनों तक नेट से दूरी रहेगी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
गुरुवार, 22 दिसंबर 2011
"चाँद और तारों की बातें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
चाँद और तारों की बातें, मन के उद्गारों की बातें, कितनी अच्छी लगती हैं! उत्सव-त्यौहारों की बातें, मोहक उपहारों की बातें, कितनी अच्छी लगती हैं! यौवन शृंगारों की बाते, उन्नत बाज़ारों की बातें, कितनी अच्छी लगती हैं! अपने अधिकारों की बातें, स्वप्निल संसारों की बातें, कितनी अच्छी लगती हैं! सुख के उजियारों की बातें, भोले बंजारों की बातें, कितनी अच्छी लगती हैं! चहके परिवारों की बातें, महके गलियारों की बातें, कितनी अच्छी लगती हैं! बढ़ते आधारों की बातें, भरते भण्डारों की बातें, कितनी अच्छी लगती हैं! |
बुधवार, 21 दिसंबर 2011
"अभिनन्दन-वन्दन करें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
गुलदस्ते में सजे हैं, सुन्दर-सुन्दर फूल। सुमनों सा जीवन जियें, बैर-भाव को भूल।१। शस्य-श्यामला धरा है, जीवन का आधार। आओ पौधों से करें, धरती का शृंगार।२। जनमानस पर कर रहे, कोटि-कोटि अहसान। सबका भरते पेट हैं, ये श्रमवीर किसान।३। मातृभूमि के वास्ते, देते जो बलिदान। रक्षा में संलग्न हैं, अपने वीर जवान।४। अभिनन्दन-वन्दन करें, आओ मन से आज। आज किसान-जवान से, जीवित सकल समाज।५। |
मंगलवार, 20 दिसंबर 2011
"परिवार हो गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
जिससे अब तक नफरत की थी, वो ही रिश्तेदार हो गया। नवयुग के इस नये दौर में, वो अपना परिवार हो गया।। परसों ही तो उसको हमने, जली-कटी सी बात सुनाई। उसकी सुता हमारे घर में, आज वधू बनकर है आई। पूरे घर को इस बिटिया से, सबसे ज्यादा प्यार हो गया। नवयुग के इस नये दौर में, वो अपना परिवार हो गया।। कुदरत के हैं खेल निराले, खुशियाँ आई बैठे-ठाले! जो किस्मत में लिखा हुआ है, उसको कोई कैसे टाले! चिंगारी अंगार बनी जब, सिन्दूरी सिंगार हो गया। नवयुग के इस नये दौर में, वो अपना परिवार हो गया।। |
सोमवार, 19 दिसंबर 2011
"आशा पर संसार टिका है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आशा पर ही प्यार टिका है।। आशाएँ अंकुर उपजातीं, आशाएँ विश्वास जगातीं, आशा पर परिवार टिका है। आशा पर ही प्यार टिका है।। आशाएँ श्रमदान कराती, पत्थर को भगवान बनाती, आशा पर उपहार टिका है। आशा पर ही प्यार टिका है।। आशा यमुना, आशा गंगा, आशाओं से चोला चंगा, आशा पर उद्धार टिका है। आशा पर ही प्यार टिका है।। आशाओं में बल ही बल है, इनसे जीवन में हलचल है. खान-पान आहार टिका है। आशा पर ही प्यार टिका है।। आशाएँ हैं, तो सपने है, सपनों में बसते अपने हैं, आशा पर व्यवहार टिका है। आशा पर ही प्यार टिका है।। आशाओं के रूप बहुत हैं, शीतल छाया धूप बहुत है, प्रीत, रीत, मनुहार टिका है। आशा पर ही प्यार टिका है।। आशाएँ जब उठ जायेंगी, खुशियाँ सारी लुट जायेंगी, उड़नखटोला द्वार टिका है। आशा पर ही प्यार टिका है।। |
रविवार, 18 दिसंबर 2011
"सीख रहा हूँ दुनियादारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सम्बन्धों के चक्रव्यूह में, सीख रहा हूँ दुनियादारी। जब पारंगत हो जाऊँगा, तब बन जाऊँगा व्यापारी।। खुदगर्जी के महासिऩ्धु में, कैसे सुथरा कहलाऊँगा? पीने का पानी सागर से, गागर में कैसे पाऊँगा? बिना परिश्रम, बिना कर्म के, कदम-कदम पर लड़ना होगा। बाधाओं को दूर हटाकर, पथ पर आगे बढ़ना होगा। जीवन का अस्तित्व बचाना, मेरे जीवन की लाचारी। जब पारंगत हो जाऊँगा, तब बन जाऊँगा व्यापारी।। माँ ने जन्म दिया है मुझको बापू ने चलना बतलाया। जन्मभूमि ने मेरे मन में, देशप्रेम का भाव जगाया। अपने पथदर्शक गुरुओं का, सदा रहूँगा मैं आभारी। जब पारंगत हो जाऊँगा, तब बन जाऊँगा व्यापारी।। |
शनिवार, 17 दिसंबर 2011
"उच्चारण भी थम जाता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रिश्तों-नातों को ठुकरा कर, पंछी इक दिन उड़ जाता है।। जब धड़कन रुकने लगती है, उच्चारण भी थम जाता है।। लाख लगाओ कितने पहरे, सब सम्बन्ध धरे रह जाते। जलप्लावन के साथ-साथ ही, सब अनुबन्ध यहाँ बह जाते। आवा-जाही के नियमों से, कोई बशर न बच पाता है। जब धड़कन रुकने लगती है, उच्चारण भी थम जाता है।। वक्त सदा बलवान रहा है, रह जाते हैं कोरे वादे। धूल-धूसरित हो जाते हैं, सब मंसूबे और इरादे। शव को सीढ़ी पर ले जाकर, बेटा चिता जला आता हैं। जब धड़कन रुकने लगती है, उच्चारण भी थम जाता है।। जीवन चला-चली का मेला, थोडे ही दिन का है खेला। कोई साथ न दे पाता है, जाना पड़ता फ़कत अकेला। चिड़ियाघर में आकर प्राणी, दुनिया का मन बहलाता है। जब धड़कन रुकने लगती है, उच्चारण भी थम जाता है।। |
शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011
"कुण्ठाओं ने डाला डेरा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
हम चन्दा की क्या बात कहें, सूरज को भी तम ने घेरा। आशाओं के गुलशन में अब, कुण्ठाओं ने डाला डेरा।। गंगा-यमुना, बोली-भाषा, सबकी बदली हैं परिभाषा, दूषित है वातावरण आज, लाचार हुआ सारा समाज, रब का बँटवारा कर कहते, वो है तेरा, ये है मेरा। आशाओं के गुलशन में अब, कुण्ठाओं ने डाला डेरा।। ममता में स्वार्थ समाया है, दुनिया में सब कुछ माया है, मन में कोरा छल-कपट भरा, भाई-चारे में प्यार मरा, मर्यादाओं के उपवन में, आवारा भँवरों का फेरा। आशाओं के गुलशन में अब, कुण्ठाओं ने डाला डेरा।। तितली-मधुमक्खी आती हैं, लेकिन हताश हो जाती हैं, अब गन्ध नहीं सुमनों में है, हरियाली नहीं वनों में है, गुरू ज्ञान किसे दें बतलाओ, है कोई नहीं यहाँ चेरा। आशाओं के गुलशन में अब, कुण्ठाओं ने डाला डेरा।। |
गुरुवार, 15 दिसंबर 2011
"नारी की व्यथा " (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
धरती माँ की
बेटी हूँ
बुधवार, 14 दिसंबर 2011
मंगलवार, 13 दिसंबर 2011
"जीवन के दाँव-पेंच" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जीवन के इस दाँव-पेंच में, मैंने सब कुछ हार दिया था। छला प्यार में उसने मुझको, जिससे मैंने प्यार किया था।। जब राहों पर कदम बढ़ाया, काँटों ने उलझाया मुझको। जब गुलशन के पास गया तो, फूलों ने ठुकराया मुझको। जिसको दिल की दौलत सौंपी, उसने ही प्रतिकार लिया था। छला प्यार में उसने मुझको, जिससे मैंने प्यार किया था।। संघर्षों के तूफानों ने, जब-जब नौका को भटकाया। तब-तब बहुत सावधानी से, मैंने था पतवार चलाया। डूब गया मैं तट पर आकर, गहरा सागर पार किया था। छला प्यार में उसने मुझको, जिससे मैंने प्यार किया था।। बनकर कृष्ण-कन्हैया कब से, खोज रहा हूँ मैं राधा को। अपनी पगडण्डी से कब से, हटा रहा हूँ मैं बाधा को। मोहक मुस्कानों ने लूटा, मैंने जब मनुहार किया था। छला प्यार में उसने मुझको, जिससे मैंने प्यार किया था।। |
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आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
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इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
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आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
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"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
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मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
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“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...