आदमी के प्यार को,
रोता रहा है आदमी।
आदमी के भार को, ढोता रहा है आदमी।। आदमी का विश्व में, बाजार गन्दा हो रहा। आदमी का आदमी के साथ, धन्धा हो रहा।। आदमी ही आदमी का, भूलता इतिहास है। आदमी को आदमीयत का नही आभास है।। आदमी पिटवा रहा है, आदमी लुटवा रहा। आदमी को आदमी ही, आज है लुटवा रहा।। आदमी बरसा रहा, बारूद की हैं गोलियाँ। बोलता है आदमी, शैतानियत की बोलियाँ।। आदमी ही आदमी का, को आज है खाने लगा। आदमी कितना घिनौना, कार्य अपनाने लगा।। आदमी था शेर भी और आदमी बिल्ली बना। आदमी अजमेर था और आदमी दिल्ली बना।। आदमी था ठोस, किन्तु बर्फ की सिल्ली बना। आदमी के सामने ही, आदमी खिल्ली बना।। आदमी ही चोर है और आदमी मुँह-जोर है । आदमी पर आदमी का, हाय! कितना जोर है।। आदमी आबाद था, अब आदमी बरबाद है। आदमी के देश में, अब आदमी नाशाद है।। आदमी की भीड़ में, खोया हुआ है आदमी। आदमी की नीड़ में, सोया हुआ है आदमी।। आदमी घायल हुआ है, आदमी की मार से। आदमी का अब जनाजा, जा रहा संसार से।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
गुरुवार, 30 जून 2016
कविता "आदमी का चमत्कार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुधवार, 29 जून 2016
ग़ज़ल "रोता है माहताब हमारी आँखों में" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ख्वाबों का तालाब हमारी आँखों में
अश्कों का सैलाब हमारी आँखों में
गुज़र गयी है उम्र फक़त तनहाई में
सूखा कमल-गुलाब हमारी आँखों में
चश्म हुईं बेनूर ढला दिन में सूरज
भरा हुआ तेजाब हमारी आँखों में
उठते कई सवाल हमारी आँखों में
मिलता नहीं जवाब हमारी आँखों में
“रूप” चाँदनी का कैसे अब निखरेगा
रोता है माहताब हमारी आँखों में
|
मंगलवार, 28 जून 2016
ग़ज़ल "मत तराजू में हमें तोला करो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
तुम कभी तो प्यार से बोला करो।
राज़ दिल के तो कभी खोला करो।।
हम तुम्हारे वास्ते घर आये हैं,
मत तराजू में हमें तोला करो।
ज़र नहीं है पास अपने तो ज़िगर है,
चासनी में ज़हर मत घोला करो।
डोर नाज़ुक है उड़ो मत फ़लक में,
पेण्डुलम की तरह मत डोला करो।
राख में सोई हैं कुछ चिंगारियाँ,
मत हवा देकर इन्हें शोला करो।
आँख से देखो-सराहो दूर से,
“रूप” को छूकर नहीं मैला करो। |
सोमवार, 27 जून 2016
बालकविता "दो बच्चे होते हैं अच्छे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मामी जी को साथ लिए।
इतने सुन्दर वस्त्र आपको,
किसने हैं उपहार किये।।
हमको ये आभास हो रहा,
शादी आज बनाओगे।
मामी जी के साथ, कहीं
उपवन में मौज मनाओगे।।
दो बच्चे होते हैं अच्छे,
रीत यही अपनाना तुम।
महँगाई की मार बहुत है,
मत परिवार बढ़ाना तुम।
चना-चबेना खाकर, अपनी
गुजर-बसर कर लेना तुम।
अपने दिल में प्यारे मामा,
धीरजता धर लेना तुम।।
छीन-झपट, चोरी-जारी से,
सदा बचाना अपने को।
माल पराया पा करके, मत
रामनाम को जपना तुम।।
कभी इलैक्शन मत लड़ना,
संसद में मारा-मारी है।
वहाँ तुम्हारे कितने भाई,
बैठे भारी-भारी हैं।।
हनूमान के वंशज हो तुम,
ध्यान तुम्हारा हम धरते।
सुखी रहो मामा-मामी तुम,
यही कामना हम करते।।
|
रविवार, 26 जून 2016
"विविध दोहावली-अपना भारत देश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बारिश और गुलाब का, सुन्दर है संयोग।
वर्षा के आनन्द को, लोग रहे हैं भोग।१।
--
कुरीतियों के जाल में, जकड़े लोग तमाम।
खोलो ज्ञानकपाट को, जिससे बनते काम।२।
--
हर घर में बैठे हुए, कितने नीम-हकीम।
जहर घोलते जगत में, बनकर मीठे नीम।३।
--
परिवर्तन ही ज़िन्दगी, आयेंगे बदलाव।
अनुभव के पश्चात ही, आता है ठहराव।४।
--
योगिराज के नाम का, सब करते गुणगान।
कलियुग में फिर आइए, श्री कृष्ण भगवान।५।
--
सहने को सन्ताप को, जनता है मजबूर।
महँगाई ने कर दिया, सबको सुख से दूर।६।
--
नुक्कड़ की हर गली में, पत्रकार की धूम।
उल्लू सीधा कर रहे, चरण-धूलि को चूम।७।
--
चल मनवा उस देश में, जहाँ नहीं हों काम।
चैन-अमन के साथ में, मन पाये विश्राम।८।
--
खास आदमी पूछता, आम आदमी कौन।
खास-खास-को पूछते, आम हो गया गौण।९।
--
खाम-खयाली में नहीं, रहना यहाँ ज़नाब।
काम बिना कोई यहाँ, बनता नहीं नवाब।१०।
--
मधु के लालच में कभी, मिल जाता आघात।
दुनिया में मनुहार से, बनती बिगड़ी बात।११।
--
भिन्न-भिन्न हैं मान्यता, मिन्न-भिन्न परिवेश।
गुलदस्ता सा लग रहा, अपना भारत देश।१२।
--
माँ सबको प्यारी लगे, ममता का पर्याय।
माँ के शुभ-आशीष से, सब सम्भव हो जाय।१३।
--
चाँद चमकती है तभी, जब यौवन ढल जाय।
पीले पत्तों में नहीं, हरियाली आ पाय।१४।
--
सहता है अपमान को, धरती का भगवान।
फिर भी अन्न उगा रहा, सबके लिए किसान।१५।
--
जिस घर में मिलता सदा, नारी को सम्मान।
वो घर मन्दिर सा लगे, मानो स्वर्ग समान।१६।
--
भोलीचिड़िया बाज को, समझ रहीं है मीत।
रक्षक ही भक्षक बनें, कैसी है ये रीत।१७।
--
चपला चमके व्योम में, बादल करते शोर।
रिमझिम पानी बरसता, मन में उठे हिलोर।१८।
--
नेताओं की बात पर, करना मत विश्वास।
वाह-वाही के वास्ते, चमचे सबके पास।१९।
--
जो चमचे फौलाद के, वो हैं धवल सफेद।
उनकी तो हर बात में, भरे हुए हैं भेद।२०।
--
अच्छी सूरत
देखकर, मत
होना अनुरक्त।
जग के मायाजाल से, मन को करो विरक्त।२१। |
शनिवार, 25 जून 2016
शुक्रवार, 24 जून 2016
ग़ज़ल "इलज़ाम के पत्थर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भले हों नाम के पत्थर
मगर हैं काम के पत्थर
समन्दर में भी तिरते हैं
अगर हों राम के पत्थर
बढ़े जब पाप धरती पर
गिरे शिवधाम के पत्थर
हुआ है आम बेचारा
चले हुक्काम के पत्थर
कभी जो मुफ्त मिलते थे
हुए अब दाम के पत्थर
बचेंगी बस्तियाँ कैसे
खिसकते डाम के पत्थर
हमेशा झेलता है “रूप”
क्यों इलज़ाम के पत्थर
|
गुरुवार, 23 जून 2016
ग़ज़ल "कल़मकार लिए बैठा हूँ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गम का अम्बार लिए बैठा हूँ
लुटा दरबार लिए बैठा हूँ
नाव अब पार लगेगी
टूटी पतवार लिए बैठा हूँ
जा चुकी है कभी की सरदारी
फिर भी दस्तार लिए बैठा हूँ
बेईमानों के बीच में रहकर
पाक किरदार लिए बैठा हूँ
इश्क के खेल का खिलाड़ी हूँ
जीत में हार लिए बैठा हूँ
देख हालत बुरी ज़माने की
दिल में अंगार लिए बैठा हूँ
रुपहले “रूप” के इदारों
में
मैं कल़मकार लिए बैठा हूँ
|
बुधवार, 22 जून 2016
गीत "हो गया मौसम सुहाना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आज नभ पर बादलों का है ठिकाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
कल तलक लू चल रही थी,
धूप से भू जल रही थी,
आज हैं रिमझिम फुहारें,
लौट आयी हैं बहारें,
बुन लिया है पंछियों ने आशियाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
हल किसानों ने उठाया,
खेत में उसको चलाया,
धान की रोपाई होगी,
अन्न की भरपाई होगी,
गा उठेगा देश फिर, सुख का तराना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
ताल के नम हैं किनारे,
मिट गयीं सूखी दरारें,
अब कुमुद खिलने लगेंगे,
भाग्य धरती के जगेंगे,
आ गया है दादुरों को गीत गाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
|
मंगलवार, 21 जून 2016
मंगलगान "कनिष्ठ पुत्र विनीत का जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आज तुम्हारे जन्मदिवस पर, महक रहा सारा उपवन।
खुशियों की बन्दनवारों से, चहक रहा है घर-आँगन।।
रिमझिम बदरा बरस रहे हैं, धरती की चूनर धानी,
इन्द्र देवता करने आये, चौमासे की अगवानी,
मलयानिल पर्वत से चलकर, आया मन्द-सुगन्ध पवन।
खुशियों की बन्दनवारों से, चहक रहा है घर-आँगन।।
वर्षगाँठ पर मम्मी-पापा, देगें कुछ उपहार तुम्हें,
स्वर्गलोक से दादा-दादी, देंगे पावन प्यार तुम्हें,
यही कामना करते हैं सब, फूले जीवन का गुलशन।
खुशियों की बन्दनवारों से, चहक रहा है घर-आँगन।।
प्राची और प्रांजल भी तो, फूले नहीं समाते हैं,
इस शुभबेला पर दोनों ही, खूब मिठाई खाते हैं,
दुआ यही करते सुखमय हो, चाचा-चाची का जीवन।
खुशियों की बन्दनवारों से, चहक रहा है घर-आँगन।।
भइया-भाभी के तुम ही तो, छोटे भाई दुलारे हो,
इस छोटी आँगनबाड़ी के, पुष्प सलोने प्यारे हो,
सरदी-गरमी, चौमासे में, स्वस्थ रहे कोमल तनमन।
खुशियों की बन्दनवारों से, चहक रहा है घर-आँगन।।
|
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...