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मंगलवार, 31 मई 2011
सोमवार, 30 मई 2011
"दोहे-दो गंजे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
गर्मी के कारण हुए, हाल बहुत बेहाल। बाल वाङ्मय लिख रहे, मुँडवा करके बाल।। सिर घुटवा गंजे हुए, दोनों ब्लॉगर साथ। रवि जी ने रक्खा हुआ, कन्धे पर है हाथ।। जब रवि की किरणें पड़ीं, चमक उठी है चाँद। टकले सिर पर मित्रवर, चुटिया को लो बाँध।। टकले सिर के साथ में, चमक रहा है भाल। कुछ दिन में आ जायँगे, फिर से सुन्दर बाल।। कम्प्यूटर के साथ में, हैं रावेन्द्र-मयंक। टिपियाते हैं सभी को, राजा हो या रंक।। |
"पंछी उड़ता नीलगगन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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कोई ख्याल नहीं है मन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। सफर चल रहा है अनजाना, नहीं लक्ष्य है नहीं ठिकाना, कब आयेगा समय सुहाना, कब सुख बरसेगा आँगन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। कब गाएगी कोकिल गाने, गूँजेंगे कब मधुर तराने, सब बुनते हैं ताने-बाने, कब सरसेगा सुमन चमन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। सूख रही है डाली-डाली, नज़र न आती अब हरियाली, सब कुछ लगता खाली-खाली, झंझावात बहुत जीवन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। कहाँ गया वो प्यार सलोना, काँटों से है बिछा बिछौना, मनुज हुआ क्यों इतना बौना, मातम पसरा आज वतन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। यौवन जैसा “रूप” कहाँ है, खुली हुई वो धूप कहाँ है, प्यास लगी है, कूप कहाँ है, खरपतवार उगी उपवन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। |
रविवार, 29 मई 2011
"किसने कहा रहो तुम सहमत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
रोज लिखे अफसाने हमने, मगर उठाई नहीं आपने, कभी इन्हें पढ़ने की ज़हमत! जो मन में आता कह जाते, हम हँसते-हँसते सह जाते, किसने कहा रहो तुम सहमत!! कोमल मन पर बोझ लादकर, उड़ न सकोगे नीलगगन पर, नहीं आपके बस की मेहनत! किसने कहा रहो तुम सहमत!! क्यों बैठे गुमसुम उपवन में, कलिका बनकर खिलो चमन में, नाहक ही होते हो आहत! किसने कहा रहो तुम सहमत!! आग दिलों में बनकर बसते, अंगारा से खुलकर हँसते, कुछ तो दिखला देते हिम्मत! किसने कहा रहो तुम सहमत!! कुमुद-कुमुदिनी खिले पंक में, शीतलता होती "मयंक" में, दीवानी होती है चाहत! किसने कहा रहो तुम सहमत!! |
शनिवार, 28 मई 2011
"ग़ज़ल-...बातें करें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
खिलखिलाते चमन में, परिवार की बातें करें। प्यार का मौसम है, आओ प्यार की बातें करें।। नेह की लेकर मथानी, हृदय का मन्थन करें, छोड़ कर छल-छद्म, कुछ उपकार की बातें करें। आस के अंकुर उगाओ, दीप खुशियों के जलें, प्रीत का संसार है, संसार की बातें करें। भावनाओं के नगर में, छेड़ दो वीणा के मधुर, घर सजायें स्वर्ग सा, मनुहार की बातें करें। निर्धनों को बाँटकर तालीम कहलाओ धनी, क्यों सबल को भेंट दे, उपहार की बातें करें। कदम आगे को बढ़ाओ, सामने मंजिल खड़ी, जीत के माहौल में, क्यों हार की बातें करें। “रूप” सूरज ने निखारा, ताप धरती का बढ़ा, पेड़ छाया के लगा, शृंगार की बातें करें।। |
शुक्रवार, 27 मई 2011
"बदनाम" का शेर और ग़ज़ल (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
गुरुवार, 26 मई 2011
"सितारे टूट गये हैं...." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
क्यों नैन हुए हैं मौन, आया इनमें ये कौन? कि आँसू रूठ गये हैं...! सितारे टूट गये हैं....!! थीं बहकी-बहकी गलियाँ, चहकी-चहकी थीं कलियाँ, भँवरे करते थे गुंजन, होठों का लेते चुम्बन, ले गया उड़ाकर निंदिया, बदरा बन छाया कौन, कि सपने छूट गये हैं....! सितारे टूट गये हैं....!! जब वो बाँहे फैलाते, हम खुद को रोक न पाते, बढ़ जाती थी तब धड़कन अंगों में होती फड़कन, खो गया हिया का चैन, कि छाले फूट गये हैं....! सितारे टूट गये हैं....!! रसभरी प्रेम की बतियाँ, हँसती-गाती वो रतियाँ, मदमस्त हवा के झोंखे, आने से किसने रोके, आशिक बनकर दिन-रैन, जवानी लूट गये हैं। सितारे टूट गये हैं....!! |
"मेरे लिए उपहार है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जड़जगत पर आपका माता बहुत उपकार है। आपके आशीष ही, मेरे लिए उपहार है।। आपके बल से कलम-स्याही, सभी की बोलती, कण्ठ में हो आप तो, रसना सुधा सा घोलती, गीत-छऩ्दों में समाया, आपका आधार है। आपके आशीष ही, मेरे लिए उपहार है।। छँट गया मन का तिमिर, माता तुम्हारे ज्ञान से, छेड़ दो वीणा मधुर, जग मस्त हो सुर-तान से, माँ तुम्हारी आरती में ही, मेरा संसार है। आपके आशीष ही, मेरे लिए उपहार है।। |
बुधवार, 25 मई 2011
"गीत-रेत के घरौंदे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सज रहे हैं ख्वाब, जैसे हों घरौंदे रेत में। बाढ़-बारिश और हवा पा, बदल जाते रेत में।। मोम के सुन्दर मुखौटे, पहन कर निकले सभी, बदल लेते रूप अपना, धूप जब निकली कभी, अब हुए थाली के बैंगन, थे कभी जो खेत में। बाढ़-बारिश और हवा पा, बदल जाते रेत में।। हो रही वादाख़िलाफी, रो रहे सम्बन्ध हैं, हाट का रुख़ देखकर ही, हो रहे अनुबन्ध हैं, नज़र में कुछ और है, कुछ और ही है पेट में। बाढ़-बारिश और हवा पा, बदल जाते रेत में।। जो स्वयं अज्ञान है, वो क्या परोसेगा हुनर, बेग़ैरतों की लाज को, ढक पाएगी कैसे चुनर, जिग़र में जो कुछ भरा है, वही देगा भेंट में। बाढ़-बारिश और हवा पा, बदल जाते रेत में।। |
मंगलवार, 24 मई 2011
"अच्छा हुआ! जो मैं नारि न हुआ!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सोमवार, 23 मई 2011
"काश् मैं नारि होता!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
एमी लोवेल की कविता -"टुकड़ा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
"टुकड़ा" (Fragment' a poem by Amy Lowell)अनुवादक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"कविता क्या है? |
♥ काव्यानुवाद ♥ कविता रंग-बिरंगे, मोहक पाषाणों सी होती है क्या? जिसे सँवारा गया मनोरम, रंग-रूप में नया-नया!! हर हालत में निज सुन्दरता से, सबके मन को भरना! ऐसा लगता है शीशे को, सिखा दिया हो श्रम करना!! इन्द्रधनुष ने सूर्यरश्मियों को जैसे अपनाया है! क्या होता है अर्थ, धर्म का? यह रहस्य बतलाया है!! |
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