ख्वाहिशें परवान करने को चले हैं
चाहतें कुर्बान करने को चले हैं
हैं बहुत ज़ालिम ज़माना क्या करें
लेखनी नीलाम करने को चले हैं
बढ़ गयी बेरोज़गारी मुल्क में
काम को नाक़ाम करने को चले हैं
नेक-नीयत से ग़ुजर होती नहीं
इसलिए कोहराम करने को चले हैं
“रूप” है इंसानियत का अब घिनौना
प्यार को बदनाम करने को चले हैं
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रविवार, 30 अगस्त 2015
ग़ज़लनुमा पेशकश "प्यार को बदनाम करने को चले हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दोहे "श्रीकृष्ण भगवान अब, लेंगे फिर अवतार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हरियाला सावन गया, मनवा हुआ उदास।
क्वार माह चौमास का, होता अन्तिम मास।।
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सुबह-सुबह होने लगा, सरदी का आभास।
धीरे-धीरे हो रहा, निर्मल अब आकाश।।
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देवभूमि में आयेंगे, जल्दी नन्दकिशोर।
पूरी दूनिया देखती, भारत की ही ओर।।
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श्रीकृष्ण भगवान अब, लेंगे फिर अवतार।
होगा भारत से शुरू, दुष्टों का संहार।।
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जब-जब बढ़ता धरा पर, अनाचार-अन्याय।
तब होता प्रारम्भ है, आशा का अध्याय।।
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पूरब से होता शुरू, नूतन जीवन सत्र।
दिनचर्या के भेजता, सूरज लिखकर पत्र।।
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दुनिया में सबसे बड़ा, भारत में जनतन्त्र।
सर्व धर्म समभाव के, जहाँ गूँजते मन्त्र।।
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शनिवार, 29 अगस्त 2015
दोहे "जरी-सूत या जूट के, धागे हैं अनमोल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
परम्परा मत समझना, राखी का त्यौहार।
रक्षाबन्धन में निहित, होता पावन प्यार।।
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राखी लेकर आ गयी, बहना बाबुल-द्वार।
भाई देते खुशी से, बहनों को उपहार।।
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रक्षाबन्धन पर्व का, दिन है सबसे खास।
जिनके बहनें हैं नहीं, वो हैं आज उदास।।
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ममता की इस डोर में, उमड़ा रहा है प्यार।
भावनाओं से बँधें हैं, सम्बन्धों के तार।।
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अपनी बहनों से कभी, मत होना नाराज।
भइया रक्षा-सूत्र की, रखना हरदम लाज।।
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धागे कच्चे हों भले, ममता है मजबूत।
लेकिन भाई का हृदय , कर देते अभिभूत।।
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जरी-सूत या जूट के, धागे हैं अनमोल।
गौरव के इतिहास से, सज्जित है भूगोल।।
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राखी के दिन देश में, उमड़ा प्यार-अपार।
रिश्ते-नातों की चहक, देख रहा संसार।।
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निश्छल पावन प्यार का, होता जहाँ निवेश।
न्यारा सारे जगत से, मेरा भारत देश।।
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गीत "भाई के ही कन्धों पर, होता रक्षा का भार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हरियाला सावन ले आया, नेह भरा उपहार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।
यही कामना करती मन में, गूँजे घर में शहनाई,
खुद चलकर बहना के द्वारे, आये उसका भाई,
कच्चे धागों में उमड़ा है भाई-बहन का प्यार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।
तिलक लगाती और खिलाती, उसको स्वयं मिठाई,
आज किसी के भइया की, ना सूनी रहे कलाई,
भाई के ही कन्धों पर, होता रक्षा का भार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।
पौध धान के जैसी बिटिया, बढ़ी कहीं पर-कहीं पली,
बाबुल के अँगने को तजकर, अन्जाने के संग चली,
रस्म-रिवाज़ों ने खोला है, नूतन घर का द्वार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।
रखती दोनों घर की लज्जा, सदा निभाती नाता,
राखी-भइयादूज, बहन-बेटी की याद दिलाता,
भइया मुझको भूल न जाना, विनती बारम्बार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।
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शुक्रवार, 28 अगस्त 2015
"आया राखी का त्यौहार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आया राखी का त्यौहार!!
हरियाला सावन ले आया, ये पावन उपहार।
अमर रहा है, अमर रहेगा, राखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!
जितनी ममता होती है, माता की मृदु लोरी में,
उससे भी ज्यादा ममता है, राखी की डोरी में,
भरा हुआ कच्चे धागों में, भाई-बहन का प्यार।
अमर रहा है, अमर रहेगा, राखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!
भाई को जा करके बाँधें, प्यारी-प्यारी राखी,
हर बहना की यह ही इच्छा राखी के दिन जागी,
उमड़ा है भगिनी के मन में श्रद्धा-प्रेम अपार!
अमर रहा है, अमर रहेगा, राखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!
खेल-कूदकर जिस अँगने में, बीता प्यारा बचपन,
कैसे याद भुलाएँ उसकी, जो मोहक था जीवन,
कभी रूठते और कभी करते थे, आपस में मनुहार।
अमर रहा है, अमर रहेगा, राखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!
गुज़रे पल की याद दिलाने, आई बहना तेरी,
रक्षा करना मेरे भइया, विपदाओं में मेरी,
दीर्घ आयु हो हर भाई की, ऐसा वर दे दो दातार।
अमर रहा है, अमर रहेगा, राखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!आज किसी भी भाई की, ना सूनी रहे कलाई, पहुँचा देना मेरी राखी, अरे डाकिए भाई, बहुत दुआएँ दूँगी तुझको, तेरा मानूँगी उपकार! अमर रहा है अमर रहेगा, राखी का त्यौहार!! आया राखी का त्यौहार!! |
गुरुवार, 27 अगस्त 2015
दोहे "रक्षाबन्धन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कितना अद्भुत है यहाँ, रिश्तों का संसार।
जीवन जीने के लिए, रिश्ते हैं आधार।१।
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केवल भारत देश में, रिश्तों का सम्मान।
रक्षाबन्धन पर्व की, अलग अनोखी शान।२।
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कच्चे धागों से बँधी, रक्षा की पतवार।
रोली-अक्षत-तिलक में, छिपा हुआ है प्यार।३।
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भाई की लम्बी उमर, ईश्वर करो प्रदान।
बहनें भाई के लिए, माँग रहीं वरदान।४।
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सदा बहन की मदद को, भइया हों तैयार।
रक्षा का यह सूत्र है, राखी का उपहार।५।
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चाहे युग बदलें भले, बदल जाय संसार।
अमर रहेगा हमेशा, यह पावन त्यौहार।६।
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राखी के ही तार में, छिपी हुई है प्रीत।
जब तक चन्दा-सूर हैं, अमर रहेगी रीत।७।
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राखी के दिन किसी का, सूना रहे न हाथ।
प्रेम-प्रीत की रीत का, छूटे कभी न साथ।८।
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रेशम-जरी-कपास के, रंग-बिरंगे तार।
ले करके बहना चली, अब बाबुल के द्वार।९।
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मंगलवार, 25 अगस्त 2015
ग़ज़लनुमा पेशकश "पढ़ना बहुत जरूरी है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
पढ़ना बहुत जरूरी है
लिखना तो मजबूरी है
वो ही खरे उतरते हैं
जिनकी निष्ठा पूरी है
नया ज़माना आया है
सत्संगों से दूरी है
जब हम मेहनत करते हैं
तब मिलती मजदूरी है
जीवन एक हक़ीकत़ है
सपना तो सिंदूरी है
होना होगा वो ही तो
रब की जो मंजूरी है
रिश्तों की अमराई में
रस्मों की दस्तूरी है
मछली जल में रहती है
फिर भी प्यास अधूरी है
“रूप” भले ही ढल जाये
पर क़ायम मग़रूरी है
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सोमवार, 24 अगस्त 2015
दोहे "सावन की महिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
सावन आने पर धरा, करती
है शृंगार।
हरा-भरा परिवेश है, सावन
का उपहार।१।
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चोटी-बिन्दी-मेंहदी, आपस
में बतियाय।
हर्ष और अनुराग में, सुहागिनें
बौराय।२।
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तीजों के त्यौहार पर, कर
सोलह सिंगार।
आज नारियाँ हर्ष से, गातीं
मेघ-मल्हार।३।
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आँगन में झूले पड़े, झूल
रहीं हैं नार।
घेवर-फेनी से सजा, हलवाई
बाजार।४।
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नागपञ्चमी पर लगी, देवालय में भीड़।
कानन में सब खोजते, नागदेव
के नीड़।५।
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सोमवार के दिन सभी, मन्दिर जाते लोग।
शिव-शंकर को प्यार से, लगा रहे हैं भोग।६।
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काँवड़ लेकर आ रहे, श्रद्धा से अनुरक्त।
हर-हर, बम-बम घोष को, करते सारे भक्त।७।
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गंगा जी के घाट पर, लम्बी लगी कतार।
लोग नहाने जा रहे, हर-हर के हरद्वार।८।
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आता सावन मास में, रक्षाबन्धन
पर्व।
जब करती बहनें तिलक, भाई
करता गर्व।९।
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बहनें करतीं कामना, भाई
हो खुशहाल।
भाई की लम्बी उमर, माँग
रहीं हर साल।१०।
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