(१) नेट के सम्बन्ध एक क्लिक में शुरू दूसरी में बन्द (२) टूटी पतवार बीच मझधार कैसे जाएँ पार (३) तिनकों का घर खुला दर बाज़ की नजर (४) जीवन संसार चलना लगातार जैसे नदिया की धार (५) सहता है धूप देता है छाया सभी को भाया |
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मंगलवार, 31 मई 2022
सीपिकाएँ "नेट के सम्बन्ध" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
सोमवार, 30 मई 2022
ग़ज़ल "सीखो चमन में जाकर, आपस में सुर मिलाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जीवन की हकीकत का, इतना सा है फसाना खुद ही जुटाना पड़ता, दुनिया में आबोदाना सुख के सभी हैं साथी, दुख का कोई न संगी रोते हैं जब अकेले, हँसता है कुल जमाना घर की तलाश में ही, दर-दर भटक रहे हैं खानाबदोश का तो, होता नहीं ठिकाना अपना नहीं बनाया, कोई भी आशियाना लेकिन लगा रहे हैं, वो रोज शामियाना मंजिल की चाह में ही, दर-दर भटक रहे हैं बेरंग जिन्दगी का, उलझा है ताना-बाना अशआर हैं अधूरे, ग़ज़लें नहीं मुकम्मल दुनिया समझ रही है, लहजा है शायराना हो हुनर पास में तो, भर लो तमाम झोली मालिक के दोजहाँ में, भरपूर है खजाना लड़ते नहीं कभी भी, बगिया में फूल-काँटे सीखो चमन में जाकर, आपस में सुर मिलाना दिल की नजर से देखो, मत “रूप”-रंग परखो रच कर नया तराना, महफिल में गुनगुनाना |
रविवार, 29 मई 2022
गीत "रिश्ते-नाते प्यार के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ढंग निराले होते जग में, मिले जुले परिवार के। देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।। -- चमन एक हो किन्तु वहाँ पर, रंग-विरंगे फूल खिलें, मधु से मिश्रित वाणी बोलें, इक दूजे से लोग मिलें, ग्रीष्म-शीत-बरसात सुनाये, नगमे सुखद बहार के। देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।। -- पंचम सुर में गाये कोयल, कलिका खुश होकर चहके, नाती-पोतों की खुशबू से, घर की फुलवारी महके, माटी के कण-कण में गूँजें, अभिनव राग सितार के। देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।। -- नग से भू तक, कलकल करती, सरिताएँ बहती जायें, शस्यश्यामला अपनी धरती, अन्न हमेशा उपजायें, मिल-जुलकर सब पर्व मनायें, थाल सजें उपहार के। देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।। -- गुरूकुल हों विद्या के आलय, बिके न ज्ञान दुकानों में, नहीं कैद हों बदन हमारे, भड़कीले परिधानों में, चाटुकार-मक्कार बनें ना, जनसेवक सरकार के। देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।। -- बरसें बादल-हरियाली हो, बुझे धरा की प्यास यहाँ, चरागाह में गैया-भैंसें, चरें पेटभर घास जहाँ, झूम-झूमकर सावन लाये, झोंके मस्त बयार के। देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।। -- |
शनिवार, 28 मई 2022
बालकविता "लीची के गुच्छे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
हरी, लाल और पीली-पीली! लीची होती बहुत रसीली!! गायब बाजारों से केले। सजे हुए लीची के ठेले।। आम और लीची का उदगम। मनभावन दोनों का संगम।। लीची के गुच्छे हैं सुन्दर। मीठा रस लीची के अन्दर।। गुच्छा बिटिया के मन भाया! उसने उसको झट कब्जाया!! लीची को पकड़ा, दिखलाया! भइया को उसने ललचाया!! भइया के भी मन में आया! सोचा इसको जाए खाया!! गरमी का मौसम आया है! लीची के गुच्छे लाया है!! दोनों ने गुच्छे लहराए! लीची के गुच्छे मन भाए!! |
शुक्रवार, 27 मई 2022
दोहे "टूटा कुनबेवाद से, जन-गण का विश्वास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बेटा-बेटी और माँ, करते नाटक खूब। काँगरेस की धरा पर, नहीं उगेगी दूब।। टूटा कुनबेवाद से, जन-गण का विश्वास। जनता को परिवार से, नहीं रही अब आस।। गाँधी जी के स्वप्न को, किया नेस्त-नाबूद। काँगरेस का अब नहीं, बाकी बचा वजूद।। देख रहे दिग्गज सभी, लेकिन बैठे मौन। अब बिल्ली के गले में, घण्टा बाँधे कौन।। हालत बिगड़ी है बहुत, काँगरेस की आज। मोदी जी के साथ में, अब चल पड़ा समाज।। चालबाजियाँ अब सभी, समझ गयी मखलूक। नरसिंहा के साथ में, कैसा किया सुलूक।। करणी का फल आज तो, भुगत रहे युवराज। हुई कोढ़ में खाज अब, जिसका नहीं इलाज।। काँगरेस का हो गया, भारत से अब अन्त। लोकतन्त्र के समर में, हार गये सामन्त।। |
गुरुवार, 26 मई 2022
दोहे "आम पिलपिले हो भले, देते हैं आनन्द" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- आम पिलपिले हो भले, देते हैं आनन्द। उन्हें चूसने में मिले, लोगों को मकरन्द।। -- निर्वाचन तक ही रहें, आम दिलों में खास।लेकिन उसके बाद में, आती पुनः खटास।। -- डाल-पाल के आम में, जब तक भरी मिठास। तब तक रहती आम से, नातेदारी खास।। -- आम-खास के खेल में, आम गया है हार। आम खास की कर रहा, सदियों से मनुहार।। -- खाते-खाते आम को, लोग बन गये खास। मगर आम की बात का, करते सब उपहास।। -- अमुआ अपने देश के, दुनिया में मशहूर। लेकिन आज गरीब की, हुए पहुँच से दूर।। -- खट्टे-मीठे आम में, भरा हुआ है माल। इसीलिए तो आम को, कहते लोग रसाल।। |
बुधवार, 25 मई 2022
ग़ज़ल "मुसीबत में गरीबों की, हिफ़ाजत कौन करता है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
खुदा की आजकल, सच्ची इबादत कौन करता है बिना मतलब ज़ईफों से, मुहब्बत कौन करता है शहादत दी जिन्होंने, देश को आज़ाद करने को, मगर उनकी मज़ारों पर, इनायत कौन करता है सियासत में फक़त है, वोट का रिश्ता रियाया से यहाँ मज़लूम लोगों की, हिमायत कौन करता है मिला ओहदा उज़ागर हो गयी, करतूत अब सारी वतन को चाटने में, अब रियायत कौन करता है ग़रज़ जब भी पड़ी तो, ले कटोरा भीख का आये मुसीबत में गरीबों की, हिफ़ाजत कौन करता है सजीले “रूप” की चाहत में, गुनगुन गा रहे भँवरे कमल के बिन सरोवर पर, कवायद कौन करता है |
मंगलवार, 24 मई 2022
गीत "पहली बारिश का आना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पहली
बारिश
हुई
धरा
पर, मौसम
कितना
हुआ
सुहाना। देख
घटाएँ
आसमान
पर, दादुर गाते हैं गाना।। -- फटी पपेली-हुआ उजाला, हुई
सभी
को
हैरानी, पहले आँधी चली जोर से, फिर
बरसा
जमकर
पानी, बाँट
रहा
सुख
जन-मानस
को, पहली
बारिश
का
आना। देख
घटाएँ
आसमान
पर, दादुर गाते हैं गाना।। -- सूख रहा जल
जलाशयों
का, झुलस रहे थे उपवन-वन, गरम
हवाएँ
चलती
दिन
भर, नहीं
काम
में
लगता
मन,
भूल गयीं थीं सब चिड़ियायें, शाखाओं पर इठलाना। देख
घटाएँ
आसमान
पर, दादुर गाते हैं गाना।। -- कल
तक
जीवन
कठिन
हुआ
था,
अनल हवा में
था पसरा, जलती छत पक्के मकान की, जलती प्यारी वसुन्धरा, विकल
चरिन्दे
और
परिन्दे, खोज
रहे
हैं
ठौर
ठिकाना। देख
घटाएँ
आसमान
पर, दादुर गाते हैं गाना।। -- खिले किसानों के चेहरे, अब
आस बँधी है नव्य फसल की, पौध धान की चले रोपने, हल ने खेतों में हलचल की, बया चल पड़ी
तिनके
लाने, बुनने
को
ताना-बाना। देख
घटाएँ
आसमान
पर, दादुर गाते हैं गाना।। -- बच्चे खेल रहे बारिश में, धमाचौकड़ी खूब मचाते, काग़ज़ की इक नाव बनाकर, गड्ढों में उसको
तैराते, धरती
को
मिल
जायेगा
अब, हरियाली
का
नजराना। देख
घटाएँ
आसमान
पर, दादुर गाते हैं गाना।। -- |
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