पथ पर आगे बढ़ते-बढ़ते, पाषाणों से प्यार हो गया
जीवन का दुख-दर्द हमारे, जीने का आधार हो गया
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पत्थर का सम्मान करो तो, देवदिव्य वो बन जायेगा
पर्वतमालाओं में उपजा, धरती का अवतार हो गया
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प्राण बिना तन होता सबका, केवल माटी का पुतला है
जीव आत्मा के आने से, श्वाँसों का संचार हो गया
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गुलशन में जब माली आया, फूल खिले-कलियाँ मुस्कायी
दिवस-मास मधुमास बन गया, उपवन का शृंगार हो गया
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सुख का सूरज उगा गगन में, चारों ओर उजाला पसरा
बादल ने अमृत बरसाया, मनभावन त्यौहार हो गया
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बगिया फिर से हैं बौरायी, कोयलिया ने राग सुनाया
आँखों ने देखा जो सपना, वो फिर से साकार हो गया
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कुदरत का है “रूप” निराला, कोई गोरा कोई काला
पारस की पतवार मिली तो, भवसागर से पार हो गया
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मंगलवार, 30 जून 2020
ग़ज़ल "जीने का आधार हो गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सोमवार, 29 जून 2020
ग़ज़ल "फूल हो गये अंगारों से" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पेट नहीं भरता नारों से
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सूरज-चन्दा में उजास है
काम नहीं चलता तारों से
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आम आदमी ऊब गया है
आज दोगले किरदारों से
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दरिया पार नहीं होता है
टूटी-फूटी पतवारों से
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कोरोना की बीमारी में
रौनक गायब बाजारों से
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ईँधन पर महँगाई क्यों है
लोग पूछते सरकारों से
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जनसेवक मनमानी करते
वंचित जनता अधिकारों से
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नहीं पिघलता दिल दुनिया का
मजदूरों की मनुहारों से
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क्या होती है आग पेट की
कोई पूछे लाचारों से
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हरियाली अभिशाप बन गयी
फूल हो गये अंगारों से
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बदल गया क्यों 'रूप' वतन
का
पूछ रहे सब सरदारों से
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रविवार, 28 जून 2020
"मेरे दोहा संग्रह नागफनी के फूल की भूमिका" (जय सिंह आशावत)
शनिवार, 27 जून 2020
गीत "चिट्ठी-पत्री का युग बीता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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चिट्ठी-पत्री का युग बीता,
आया है अब नया जमाना।
मुट्ठी में सिमटी है दुनिया,
छूट गया पत्रालय जाना।।
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रंग-ढंग नवयुग में बदले,
चाल-ढाल भी बदल गयी है।
मंजिल पहले जैसी ही है,
मगर डगर तो बदल गयी है।
जिसको देखो वही यहाँ पर,
मोबाइल का हुआ दिवाना।
मुट्ठी में सिमटी है दुनिया,
छूट गया पत्रालय जाना।।
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भावनाओं से काम न चलता,
कामनाओं का अन्त नहीं है।
सपनों में मधुमास उगा है,
धन के बिना बसन्त नहीं है।
बिना कर्म के नहीं किसी को,
मिलता है कोई नजराना।
मुट्ठी में सिमटी है दुनिया,
छूट गया पत्रालय जाना।।
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भरे पड़े हैं ज्ञानी-ध्यानी,
अभिमानी का मान नहीं है।
गली-गली में बिकती शिक्षा,
लेकिन मिलता ज्ञान नहीं है।
भरी दलाली में दौलत है,
उगता है पैसा मनमाना।
मुट्ठी में सिमटी है दुनिया,
छूट गया पत्रालय जाना।।
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मठ मन्दिर-मस्जिद के मसले,
महज कमाने का साधन है।
ईश्वर-अल्ला गौण हो गये
बना दिखावा आराधन है।
पंचायत में न्याय न होता,
निर्बल का कुछ नहीं ठिकाना।
मुट्ठी में सिमटी है दुनिया,
छूट गया पत्रालय जाना।।
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शुक्रवार, 26 जून 2020
बालकविता "रंग-बिरंगी तितली आई" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
तितली आई! तितली आई!!
रंग-बिरंगी, तितली आई।।
कितने सुन्दर पंख तुम्हारे।
आँखों को लगते हैं प्यारे।।
फूलों पर खुश हो मँडलाती।
अपनी धुन में हो इठलाती।।
जब आती बरसात सुहानी।
पुरवा चलती है मस्तानी।।
तब तुम अपनी चाल दिखाती।
लहरा कर उड़ती बलखाती।।
पर जल्दी ही थक जाती हो।
दीवारों पर सुस्ताती हो।।
बच्चों के मन को भाती हो।
इसीलिए पकड़ी जाती हो।।
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गुरुवार, 25 जून 2020
गीत "नभ पर बादल छाये हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सागर में से भर कर निर्मल जल को लाये हैं।
झूम-झूम कर नाचो-गाओ, बादल आये हैं।।
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गरमी ने लोगों के तन-मन को झुलसाया है,
बहुत दिनों के बाद मेघ ने दरस दिखाया है,
जग की प्यास बुझाने को ये छागल लाये हैं।
झूम-झूम कर नाचो-गाओ, बादल आये हैं।।
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नाच रहे पेड़ों के पत्ते, पुरवैया के झोंको से,
शीतल पवन दे रही दस्तक, खिड़की और झरोखों से,
खेत-बाग के व्याकुल-मन हर्षित हो मुस्काये हैं।
झूम-झूम कर नाचो-गाओ, बादल आये हैं।।
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धरती की भर गयी दरारें, वर्षा के आने से,
खिले किसानों के चेहरे, नभ पर बादल छाने से,
अब हरियाली छा जायेगी, ये आस लगाये हैं।
झूम-झूम कर नाचो-गाओ, बादल आये हैं।।
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