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सोमवार, 30 सितंबर 2024
जन्मदिवस का गीत "साथ तुम्हारा भाता है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 29 सितंबर 2024
गीत "आकाश अब तक रो रहा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आषाढ़ से आकाश अब तक रो रहा है। बादलों को इस बरस क्या हो रहा है? आज पानी बन गया जंजाल है, भूख से पंछी हुए बेहाल हैं, रश्मियों को सूर्य अपनी खो रहा है। बादलों को इस बरस क्या हो रहा है? कब तलक नौका चलाएँ मेह में, भर गया पानी गली और गेह में, इन्द्र जल-कल खोल बेसुध सो रहा है। बादलों को इस बरस क्या हो रहा है? बिन चुगे दाना गगन में उड़ चले, घोंसलों की ओर पंछी मुड़ चले, दिन-दुपहरी दिवस तम को ढो रहा है। बादलों को इस बरस क्या हो रहा है? धान खेतों में लरजकर पक गया है, घन गरजकर और बरसकर थक गया है, किन्तु क्यों नगराज छागल ढो रहा है? बादलों को इस बरस क्या हो रहा है? पुण्य सलिला में नजर आने लगे हैवान हैं देखकर अतिवृष्टि को सब लोग अब हैरान हैं उग रही वैसी फसल जैसी धरा में बो रहा है। बादलों को इस बरस क्या हो रहा है? |
शुक्रवार, 27 सितंबर 2024
दोहे "मेरी ममतामयी माता जी का श्राद्ध" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- दशमी तिथि के दिन गयी , मेरी माँ परलोक। उनके जाने से भरा, मेरे मन में शोक।। -- पैंसठ वर्षों तक रहा, सिर
पर माँ का हाथ। जब से माँ सुरपुर
गयी, मैं हो गया अनाथ।। -- श्रद्धा से मैं
श्राद्ध को, करता हूँ निष्पन्न। होते माँ के नाम से, सभी कार्य सम्पन्न।। -- लेकर भोजन थाल को, जला सुगन्धित धूप। कभी नहीं हूँ भूलता, माता जी का रूप।। -- सच्चे मन से कर रहा, माता का गुण-गान। माता ही सन्तान का, रखती हर-पल ध्यान।। -- सारे सपनों को करें, माता जी साकार। कर्मों से ही तो बने, जीवन का आधार।। -- घर भर में धन-धान्य
का, कभी न रहा अकाल। माता के आशीष ने, मुझको
किया निहाल।। -- |
गुरुवार, 26 सितंबर 2024
गीत "हुआ निर्मल गगन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन। छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।। -- उष्ण मौसम का गिरा कुछ आज पारा, हो गयी सामान्य अब नदियों की धारा, नीर से, आओ करें हम आचमन। -- रात लम्बी हो गयी अब हो गये छोटे दिवस, सूर्य की गर्मी घटी, मिटने लगी तन की उमस, सुख हमें बाँटती, मन्द-शीतल पवन। -- अर्चना-पूजा की चहके दीप लेकर थालियाँ, धान के बिरुओं ने पहनी हैं सुहानी बालियाँ, अन्न की खुशबू से, महका है चमन। -- तितलियाँ उड़ने लगीं बदले हुए परिवेश में, भर गयीं फिर से उमंगे आज अपने देश में, शीत का होने लगा अब आगमन। -- |
बुधवार, 25 सितंबर 2024
गीत "पर्व नया-नित आता है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- त्यौहारों की धूम मची है, पर्व नया-नित आता है। परम्पराओं-मान्यताओं की, हमको याद दिलाता है।। -- उत्सव हैं उल्लास जगाते, सूने मन के उपवन में, खिल जाते हैं सुमन बसन्ती, उर के उजड़े मधुवन में, जीवन जीने की अभिलाषा, को फिर से पनपाता है। परम्पराओं-मान्यताओं की, हमको याद दिलाता है।। -- भावनाओं की फुलवारी में ममता नेह जगाती है रिश्तों-नातों की दुनिया, साकार-सजग हो जाती है, बहना के हाथों से भाई, रक्षासूत्र बँधाता है। परम्पराओं-मान्यताओं की, हमको याद दिलाता है।। -- क्रिसमस, ईद-दिवाली हो, या बोधगया बोधित्सव हो, महावीर स्वामी, गांधी के, जन्मदिवस का उत्सव हो, एक रहो और नेक रहो का शुभसन्देश सुनाता है। परम्पराओं-मान्यताओं की, हमको याद दिलाता है।। -- |
मंगलवार, 24 सितंबर 2024
गीत "छीनी है हिन्दी की बिन्दी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- गौरय्या का नीड़, चील-कौओं ने हथियाया है हलो-हाय का पाठ हमारे बच्चों को सिखलाया है -- जाल बिछाया अपना छीनी है, हिन्दी की बिन्दी भी अपने घर में हुई परायी, अपनी भाषा हिन्दी भी खोटे सिक्के से लोगों के मन को बहलाया है -- हिन्दीभाषा से हमने, भारत स्वाधीन कराया था हिन्दी में भाषण करके, सत्ता का आसन पाया था लेकिन गद्दी पाते ही उस हिन्दी को बिसराया है -- चीन और जापान आज भाषा के बल पर आगे हैं किन्तु हमारे खेवनहारे नहीं नींद से जागे हैं अन्न देश का खाकर हमने, राग विदेशी गाया है -- विश्वपटल पर कैसे होगी, अब पहचान हमारी वाणी क्यों हो गयी विदेशी, ऐसी क्या है लाचारी पुरखों के गौरव-गुमान पर भी संकट गहराया है -- हुक्मरान हिन्दी के दिन को, हिन्दी-डे बतलायें जब उन गूँगे-बहरों को अपनी, कैसे व्यथा सुनायें अब हलवा-पूड़ी व्यञ्जन छोड़े, पिज्जा-बर्गर खाया है -- |
सोमवार, 23 सितंबर 2024
गीत "मखमली ख्वाब हैं खोखले मत करो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- दूरिया कम करो फासले मत करो। -- |
रविवार, 22 सितंबर 2024
दोहागीत "हिन्दी है लाचार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- हिन्दी भाषा का हुआ, सिर पर भूत सवार। चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।। -- सिर्फ दिखावे के लिए, मची हुई है होड़। हिन्दी-डे पर कर रहे, खर्चा कई करोड़।। मन से तो करते नहीं, हिन्दी को स्वीकार। चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।१। -- गाँधी जी के भक्त ही, काट रहे हैं पेड़। टोपी-कुर्ते की सिली, बखिया रहे उधेड़।। हिन्दी की शालाओं का, खिसक रहा आधार। चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।२। -- हिन्दी के शिक्षक हुए, समारोह से दूर। अंग्रेजी के शब्द हैं, भाषण में भरपूर।। संरक्षण कैसे मिले, भक्षक पालनहार। चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।३। -- झूठे हैं दावे सभी, झूठी सारी प्रीत। लीक पीटने के लिए, निभा रहे हैं रीत।। अंग्रेजी के सामने, हिन्दी है लाचार। चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।४। -- आम आदमी के लिए, ज़ारी हैं फरमान। नेता सभी विदेश में, पढ़ा रहे सन्तान।। जनसेवक बिन खौफ के, करते भ्रष्टाचार। चौदह दिन के ही लिए, हिन्दी से है प्यार।५। -- |
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