मैं नये साल का सूरज हूँ,
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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015
गीत "नये साल का सूरज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मैं नये साल का सूरज हूँ,
बुधवार, 30 दिसंबर 2015
"नये वर्ष का अभिनन्दन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नये वर्ष का अभिनन्दन! जीवन बगिया चहके-महके, बनकर कानन का चन्दन!
नये वर्ष का अभिनन्दन!
|
भू-नभ में फहराए पताका,
गर्वित गाथाएँ चर्चित हों। दूर सभी हों भव-भय-बाधा,
खिलता सुमन सदा हर्षित हों।
राष्ट्रयज्ञ में अर्पित होकर, करना माता का वन्दन! नये वर्ष का अभिनन्दन! |
मानवता के लिए प्यार हो,
अमल-धवल जल की धारा हो। धरती का धानी सिंगार हो, मीत हमारा जग सारा हो। स्वाभिमान से गर्वित होकर, फूलें-फलें हमारे नन्दन! नये वर्ष का अभिनन्दन! |
मंगलवार, 29 दिसंबर 2015
दोहे "होगा नूतन वर्ष में, जीवन में उल्लास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मास दिसम्बर
जा रहा, लाने नूतन साल।
आशा है
नववर्ष में, सुधरेंगे कुछ हाल।।
--
मोदी जा कर
पूछते, दुश्मन के हालात।
बन जाये
नववर्ष में, शायद बिगड़ी बात।।
--
अगर पास हो
हौसला, बढ़ जाता विश्वास।
जो पूरी
होती नहीं, वो कहलाती आस।।
--
जब मन का थम
जायगा, चक्रवात-तूफान।
तब जीवन में
आयगा, चलकर सुखद विहान।।
--
आदि काल से
बाँटता, भारत सबको ज्ञान।
आशाओं पर है
टिका, दुनिया का विज्ञान।।
--
शीतल-शीतल
भोर है, शीतल हैं दिन-रात।
झेल रहें है
लोग सब, सरदी का उत्पात।।
--
होगा नूतन वर्ष में, जीवन में उल्लास।
वर्तमान हो जायगा, कुछ दिन में इतिहास।।
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सोमवार, 28 दिसंबर 2015
गीत "सरदी से जग ठिठुर रहा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 27 दिसंबर 2015
दोहागीत "अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बेटी से आबाद हैं, सबके घर-परिवार।
अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार।।
दुनिया में दम तोड़ता, मानवता का वेद।
बेटा-बेटी में बहुत, जननी करती भेद।।
बेटा-बेटी के लिए, हों समता के भाव।
मिल-जुलकर मझधार से, पार लगाओ नाव।।
माता-पुत्री-बहन का, कभी न मिलता प्यार।
अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार।।
पुरुषप्रधान समाज में, नारी का अपकर्ष।
अबला नारी का भला, कैसे हो उत्कर्ष।।
कृष्णपक्ष की अष्टमी, और कार्तिक मास।
जिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।।
ऐसे रीति-रिवाज को, बार-बार धिक्कार।
अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार।।
जिस घर में बेटी रहे, समझो वे हरिधाम।
दोनों कुल का बेटियाँ, करतीं ऊँचा नाम।।
कुलदीपक की खान को, देते क्यों हो दंश।
अगर न होंगी बेटियाँ, नहीं चलेगा वंश।।
बेटों जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।
अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार।।
लुटे नहीं अब देश में, माँ-बहनों की लाज।
बेटी को शिक्षित करो, उन्नत करो समाज।।
एक पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व।
व्रत-पूजन के साथ में, करो स्वयं पर गर्व।।
सेवा करने में कभी, सुता न माने हार।
अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार।।
माता बनकर बेटियाँ, देतीं जग को ज्ञान।
शिक्षित माता हों अगर, शिक्षित हों सन्तान।।
संविधान में कीजिए, अब ऐसे बदलाव।
माँ-बहनों के साथ मैं, बुरा न हो बर्ताव।।
क्यों पुत्रों की चाह में, रहे पुत्रियाँ मार।
अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार।।
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शनिवार, 26 दिसंबर 2015
"नये साल के कदम, स्वागतम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पड़ने वाले नये साल के हैं कदम!
स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! कोई खुशहाल है. कोई बेहाल है, अब तो मेहमान कुछ दिन का ये साल है, ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! रौशनी देगा तब अंशुमाली धवल, ज़र्द चेहरों पे छायेगी लाली नवल, मुस्कुरायेंगे गुलशन में सारे सुमन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! धन से मुट्ठी रहेंगी न खाली कभी, अब न फीकी रहेंगी दिवाली कभी. मस्तियाँ साथ लायेगा चंचल पवन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! |
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015
दोहे "कौन सुने फरियाद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कीर्ति भुलाकर कर
दिया, अलग-थलग आजाद।
दल-दल के इस खेल
में, कौन सुने फरियाद।।
--
सिर्फ नाम का
निलम्बन, मंशा है कुछ और।
सभी सयाने कह रहे,
फँसा गले में कौर।।
--
कहीं निशाना था
मगर, लगा किसी की ओर।
उस पर गिरती गाज
है, जो होता कमजोर।।
--
पूछ रहा निर्दोष
यह, मेरा कहाँ कुसूर।
घोटालों की जाँच
का, होता है दस्तूर।।
--
लोकतन्त्र में क्यों
चले, तुगलक सा फरमान।
जाँच कराकर कीजिए,
सबकी बन्द जुबान।।
--
जिसने जीता ही
नहीं, पिछला आम चुनाव।
उसको वित्त विभाग
की, करी हवाले नाव।।
--
भरे हुए हैं योग्यतम,
संसद में कुछ लाल।
मुखिया की इस नीति
पर, उठते आज सवाल।।
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गुरुवार, 24 दिसंबर 2015
ग़ज़ल "बैठकर के धूप में सुस्ताइए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आ गई हैं सर्दियाँ मस्ताइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
पर्वतों पर नगमगी चादर बिछी.
बर्फबारी देखने को जाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
रोज दादा जी जलाते हैं अलाव,
गर्म पानी से हमेशा न्हाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
रात लम्बी, दिन हुए छोटे बहुत,
अब रजाई तानकर सो जाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
खूब खाओ सब हजम हो जाएगा,
शकरकन्दी भूनकर के खाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
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बुधवार, 23 दिसंबर 2015
दोहे "ठिठुरा सकल समाज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
धूप नहीं नभ में खिली, अंग ठिठुरता जाय।
सर्दी में दे ऊर्जा, गर्म-गर्म इक चाय।१।
आग सेंकने का चढ़ा, देखो कैसा चाव।
सर्दी में अच्छा लगे, जलता हुआ अलाव।२।
ठिठुरन से जमने लगा, सारे तन का खून।
शीतल ऋतु में आग से, मिलता बहुत सुकून।३।
बच्चे-बूढ़े आग को, सेंक रहे हैं आज।
भीषण शीत-प्रकोप से, ठिठुरा सकल समाज।४।
पहरा देते रातभर, कभी न मानें हार।
आग सेंकने आ गये, अब ये चौकीदार।५।
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मंगलवार, 22 दिसंबर 2015
"सब कुछ वही पुराना सा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सब कुछ वही पुराना सा है!
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
कभी चाँदनी-कभी अँधेरा,
लगा रहे सब अपना फेरा,
जग झंझावातों का डेरा,
असुरों ने मन्दिर को घेरा,
देवालय में भीतर जाकर,
कैसे अपना भजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
वो ही राग-वही है गाना,
लाऊँ कहाँ से नया तराना,
पथ तो है जाना-पहचाना,
लेकिन है खुदगर्ज़ ज़माना,
घी-सामग्री-समिधा के बिन,
कैसे नियमित यजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
बना छलावा पूजन-वन्दन
मात्र दिखावा है अभिनन्दन
चारों ओर मचा है क्रन्दन,
बिखर रहे सामाजिक बन्धन,
परिजन ही करते अपमानित,
कैसे उनको सुजन करूँ मैं?
गुलशन में पादप लड़ते हैं,
कमल सरोवर में सड़ते हैं,
कदम नहीं आगे बढ़ते हैं,
पावों में कण्टक गड़ते है,
पतझड़ की मारी बगिया में,
कैसे मन को सुमन करूँ मैं?
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