दोहा और रोला और कुण्डलिया
दोहा
दोहा, मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में जगण (।ऽ।) नहीं होना चाहिए। सम चरणों के अन्त में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है अर्थात अन्त में लघु होता है।
उदाहरण-
मन में जब तक आपके, होगा शब्द-अभाव।
दोहे में तब तक नहीं, होंगे पुलकित भाव।१।
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गति-यति, सुर-लय-ताल सब, हैं दोहे के अंग।
कविता रचने के लिए, इनको रखना संग।२।
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दोहा वाचन में अगर, आता हो व्यवधान।
कम-ज्यादा है मात्रा, गिन लेना श्रीमान।३।
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लघु में लगता है समय, एक-गुना श्रीमान।
अगर दो-गुना लग रहा, गुरू उसे लो जान।४।
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दोहे में तो गणों का, होता बहुत महत्व।
गण ही तो इस छन्द के, हैं आवश्यक तत्व।५।
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तेरह ग्यारह से बना, दोहा छन्द प्रसिद्ध।
विषम चरण के अन्त में, होता जगण निषिद्ध।६।
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कठिन नहीं है दोस्तों, दोहे का विन्यास।
इसको रचने के लिए, करो सतत् अभ्यास।७।
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रोला
रोला एक छन्द है। यह मात्रिक सम छन्द है। इसमें कुल 24 मात्राएँ होती हैं, अर्थात् विषम चरणों में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों में 13-13 मात्राएँ। ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है। अन्त में 'गुरू' होने आवश्यक हैं।
उदाहरण-
नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
२२११ ११२१=११ / १११ ११ ११ २११२ = १३
सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
२१२१ ११ १११=११ / २१२ २२११२ = १३
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारा-मंडल हैं।
११२ २१ १२१=११ / २१ २२ २११२ = १३
बंदीजन खगवृन्द, शेष-फन सिंहासन है।
२२११ ११२१ =११ / २१११ २२११२ = १३
मैथिलीशरण गुप्त
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कुण्डलिया
कुण्डलिया मात्रिक छंद है। एक दोहा तथा दो रोला मिला कर कुण्डलिया बनती है। दोहे का अंतिम चरण ही प्रथम रोले का प्रथम चरण होता है तथा जिस शब्द से कुण्डलिया का आरम्भ होता है, उसी शब्द से कुण्डलिया समाप्त भी होती है।
उदाहरण -
(1)
बेटे-बेटी में करो, समता का व्यवहार।
बेटी ही संसार की, होती सिरजनहार।।
होती सिरजनहार, स्रजन को सदा सँवारा।
जिसने ममता को उर में जीवन भर धारा।।
कह 'मयंक' दामन में कँटक रही समेटे।
बेटी माता बनकर जनती बेटी-बेटे।।
(2)
हरे-भरे हों पेड़ सब, छाया दें घनघोर।
उपवन में हँसते सुमन, सबको करें विभोर।।
सबको करें विभोर, प्रदूषण हर लेते हैं।
कंकड़-पत्थर खाकर, मीठे फल देते हैं।।
कह 'मयंक' आचरण, विचार साफ-सुथरे हों।
उपवन के सारे, पादप नित हरे-भरे हों।।
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गुरुवार, 29 जनवरी 2015
"दोहा, रोला और कुण्डलिया की परिभाषाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बेहद उपयोगी जानकारी वो भी काव्य के माध्यम से ।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद ।
बेहद उपयोगी जानकारी वो भी काव्य के माध्यम से ।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद ।
बहुत सुंदर और उपयोगी जानकारी.
जवाब देंहटाएंसाकार प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय इस ब्लॉग पर दी गयी जाकारी अत्यंत लाभकारी है। इस हेतु आपका हार्दिक आभार। ऐसे ज्ञान दीप हों तो ज्ञान में उजाला कैसे न होगा। थैंक्स
जवाब देंहटाएंRola chhand ka 10 udahran
जवाब देंहटाएंआप अतुलनीय प्रशंसा के धारक हैं
जवाब देंहटाएंउदाहरण का स्पष्टीकरण लिखे
जवाब देंहटाएंKondaliyo ka koi Chota udharan do
जवाब देंहटाएंचौपाई का उदाहरण
जवाब देंहटाएंUttam
जवाब देंहटाएंRight
जवाब देंहटाएंRight
जवाब देंहटाएंRight
जवाब देंहटाएंWaaah
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंNice 👌
जवाब देंहटाएंTq भाई दिल से
जवाब देंहटाएंNice sir.
जवाब देंहटाएंअनुकरणीय है
जवाब देंहटाएंकुंडलियाँ के उदहारण में पद का प्रारंभ बेटे-बेटी में करो से हुई है और अंत बेटी बेटे से हुई है क्या ऐसे लिखा जा सकता है क्या
जवाब देंहटाएंक्योंकि एक जगह बेटे बेटी है और एक जगह
बेटी बेटे।
कृपया मार्गदर्शन करें।
Nice
जवाब देंहटाएंTo good yaar thank you giving this beautiful line's
जवाब देंहटाएंThis is not easy as purpose for learning but better for comparing other.🧐🧐🧐🧐🧐🧐🧐🧐🧐🧐🧐
जवाब देंहटाएं👌👌👌👌👌👌👋
जवाब देंहटाएंMost useful content sir best ,
जवाब देंहटाएंThank you 💗
सुंदर सृजन गागर में सागर हो जैसे, अभिनंदन मान्यवर ।
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