लोग
समझते हैं यही, दशकन्धर था दुष्ट।
लेकिन
कलि के काल में, दुष्ट हो रहे पुष्ट।।
--
रावण
युग में था नहीं, इतना पापाचार।
वर्तमान
में है नहीं, लोगों में आचार।।
--
सत्य
आचरण को दिया, लोगों ने अब छोड़।
केवल
पुतले दहन की, लगी हुई है होड़।।
--
पुतले
सदियों से सभी, जला रहे हर साल।
मन का रावण आज भी, लोग रहे हैं पाल।।
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अच्छाई
के सामने, रही बुराई जीत।
रीत-रीत
ही रह गयी, अब तो केवल रीत।।
--
एक
दूसरे की यहाँ, कभी न खीँचो टाँग।
चीन-पाक
से युद्ध हो, यही समय की माँग।।
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महँगाई
की राह में, बिछे हुए हैं शूल।
भोली
जनता के लिए, समय नहीं अनुकूल।।
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बैरी
अपना पाक है, लंका अपना मीत।
अब
तो पाकिस्तान की, मिट्टी करो पलीत।।
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विजयादशमी
का तभी, सपना हो साकार।
नक्शे
पर से जब मिटे, बैरी का आकार।।
--
जो
समाज को दे दिशा, वो ही है साहित्य।
दोहों
में मेरे नहीं, होता है लालित्य।।
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शनिवार, 30 सितंबर 2017
दोहे "दुष्ट हो रहे पुष्ट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 29 सितंबर 2017
जन्मदिवस का गीत "तीस सितम्बर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दोहागीत "होगा क्या उद्धार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
विजय
सत्य की हो तभी, झूठ जाय जब हार।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।।
नकली
तीर-कमान पर, लोग कर रहे गर्व।
सिमटा
पुतला दहन तक, विजयादशमी पर्व।।
चाल-चलन
का रूप तो, बहुत हुआ विकराल।
अपने
बिल में साँप अब, चलते टेढ़ी चाल।।
रामचन्द्र
के देश में, मन का रावण मार।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।१।
मक्कारों
की आ गयी, आज देश में बाढ़।
इसीलिए
सम्बन्ध भी, बनते नहीं प्रगाढ़।।
कदम-कदम
पर चल रहा, धोखा और फरेब।
बन
बैठे हैं आज तो, बेटे औरंगजेब।।
छल-फरेब
की बह रही, आज देश में धार।।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।२।
कूटनीति
में आ गया, चलकर आज प्रपंच।
अपनी
रोटी सेंकते, दुनिया के सरपंच।।
नभ
में जब बिन पंख ही, उड़ने लगे विमान।
महिमा
को तब तन्त्र की, कैसे करूँ बखान।।
भ्रष्ट
आचरण से नहीं, होगी जय-जयकार।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।३।
रोज-रोज
ही तेल का, चढ़ता है बाजार।
महँगाई
ने कर दिया, जन-जीवन लाचार।।
वर्तमान
सरकार में, जनता है नाशाद।
अब
पिछली सरकार को, लोग कर रहे याद।।
सच्चाई
का अब यहाँ, रहा नहीं व्यापार।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।४।
भाषण
में ही मिल गया, सबको मोहनभोग।
लालच
में ही हो गये, भगवाधारी लोग।।
शोणित
अब शीतल हुआ, आता नहीं उबाल।
खास-खास
धनवान हैं, आम हुए कंगाल।।
खाकर
चैन-सुकून भी, लेते नहीं डकार।
कुछ
पुतलों के दहन से, होगा क्या उद्धार।५।
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गुरुवार, 28 सितंबर 2017
दोहे "माता सबके साथ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जन्म हिमालय पर लिया, नमन आपको मात।
शैलसुता के नाम से, आप हुईं विख्यात।।
कठिन तपस्या से मिला, ब्रह्मचारिणी नाम।
तप के बल से पा लिया, शिवशंकर का धाम।।
चन्द्र और घंटा रहे, जिनके हरदम पास।
घंटाध्वनि से हो रहा, दिव्यशक्ति आभास।।
जगजननी माता बनी, जग की सिरजनहार।
कूष्मांडा ने रचा, सारा ही संसार।।
मूरख भी ज्ञानी बने, कृपा करें जब मात।
स्कन्दमाता जी धरो, मेरे सिर पर हाथ।।
योग-साधना से मिटे, क्षोभ-लोभ औ’ काम।
कात्यायिनी मात का, बैजनाथ है धाम।।
कालरात्री का करो, सच्चे मन से जाप।
दुर्गाजी निज भक्त का, हर लेती हैं ताप।।
सद्यशक्ति का पुंज हैं, देती हैं परित्राण।
महागौरि श्वेताम्बरा, करती हैं कल्याण।।
देती सारी सिद्धियाँ, सिद्धिदात्रि मात।
नवमरूप में रम रहीं, माता सबके साथ।।
मर्यादा की जीत है, मक्कारी की हार।
विजयादशमी विजय का, है पावन त्यौहार।।
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बुधवार, 27 सितंबर 2017
दोहे "जग में माँ का नाम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
देते शिक्षा जगत
को, माता के नव रूप।
सबको रहना चाहिए, माता
के अनुरूप।।
माता के उपकार का,
कैसे करूँ बखान।
प्रतिदिन होना चाहिए, माता का सम्मान।।
ममता का पर्याय है, जग में माँ का नाम। माँ की पूजा से मिलें, हमको चारों धाम।। सच्चे मन से माँ सदा, देती है आशीष। चरण-युगल में मातु के, रोज नवाना शीश।। माता ने जीवन दिया, दुनिया दी दिखलाय। माता के ऋण से कभी, मुक्ति नही मिल पाय।।
दुर्गा पूजा की मची, जगह-जगह पर धूम।
पहन मुखौटे राम के, लोग रहे हैं घूम।।
सदा राम के काम को, करना लोगों याद।
सच्चाई की राह में, करना नहीं विवाद।।
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