आ रहा अवसान जीवन का, नही अवकाश अब।
चन्द साँसों पर नहीं मुझको रहा विश्वास अब।।
ढल रही है धूप कुछ-कुछ धुँधलका छाने लगा,
उम्र का परिधान अपना रंग दिखलाने लगा.
जिन्दगी की साँझ का होने लगा आभास अब।
चन्द साँसों पर नहीं मुझको रहा विश्वास अब।।
दो घड़ी के बाद फिर से रात भी आ जायेगी,
इस धरा पर कालिमा की पर्त सी छा जायेगी,
नींद के आगोश में खो जाएगा परिहास सब।
चन्द साँसों पर नहीं मुझको रहा विश्वास अब।।
नीड़ में सबके बिछा विश्राम देने को बिछौना,
फिर दबे कदमों से चलकर आयेगा सपना सलोना,
भोर की पहली किरण से आयेगा उल्लास अब।
चन्द साँसों पर नहीं मुझको रहा विश्वास अब।।
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रविवार, 21 नवंबर 2010
"नही अवकाश अब" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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प्रेरणादायी रचना !
जवाब देंहटाएंआज इतनी निराशा क्यूँ?
जवाब देंहटाएंवैसे पोस्ट बेहद उम्दा है मगर आप तो कभी ऐसी पोस्ट नही लिखते।
कल के चर्चामंच पर आपकी पोस्ट होगी।
जब समय की साँझ ढलने सी लगे,
जवाब देंहटाएंजीवनी की हर व्यथा सहमी लगे।
परम आदरणीय परम प्रिय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
क्या बात है , स्वस्थ-सानन्द तो हैं न ?
तस्वीर देख कर और आपकी रचना पढ़ कर बहुत चिंता होने लगी है । मन की स्थिति जाने कैसी ही हो गई है ।
आप शीघ्रातिशीघ्र स्वस्थ-सहज हो जाएं, ईश्वर से यही प्रार्थना है ।
मैं जानता हूं आप मन के भावों को जाग्रत - उद्वेलित कर देने वाली रचनाओं का सृजन करने में पारंगत हैं , सिद्धहस्त हैं ।
आपकी इस रचना ने हमें चिंतित और उदास करने में कोई कसर नहीं छोड़ी , … गीत ने हृदय पर अपना पूरा प्रभाव अंकित किया है ।
तदर्थ हार्दिक बधाई !
अब जीवन के उल्लास से परिपूर्ण एक नई रचना शीघ्र अति शीघ्र पढ़ने के लिए पोस्ट डालें ।
शुभाकांक्षी
- राजेन्द्र स्वर्णकार
kya khoob chitr kee editing kee aapne shastri ji.. aur kavita bhi bakhoob usee ke anuroop...... par bahut nirasha uttpan kar rahi hai.. aur aik bhay..sehat sahi ho shubhkaamnayen..
जवाब देंहटाएंआ रहा अवसान जीवन का, नही अवकाश अब।
जवाब देंहटाएंचन्द साँसों पर नहीं मुझको रहा विश्वास अब।।
क्या बात है तबियत तो ठीक है ना निराशा का सहारा लेकर क्या कह रहे है ?
क्या बात है शास्त्री जी.. हमें भी बताइये.. इन बोलों से थोड़ा चिन्तित हैं...
जवाब देंहटाएंशास्री जी!
जवाब देंहटाएंनमस्कार !!
मुझे भी वंदना जी कि तरह यह रचना निराशावादी ही लगी परंरू इसमें निराशावाद नहीं है क्योकि
नीड़ में सबके बिछा विश्राम देने को बिछौना,फिर दबे कदमों से चलकर आयेगा सपना सलोना,
भोर की पहली किरण से आयेगा उल्लास अब।
चन्द साँसों पर नहीं मुझको रहा विश्वास अब।
ये पन्तिया एक आशा, एक विश्वास, एक भरोसा दिलाती है तो इस नश्वर शारीर के न रहने पर भी रुकेगी नहीं. आशा यह विश्वास इस रचना को निराशा के दलदल से उबार लेता है. और यह बात, यह प्रव्रीत्ति भारतीय संस्कृति के अनुरूप है. भारतीय संस्कृति में भी प्रायः लोग निराशावाद को देखते हैं क्योकि वह इस संसार को क्षणभंगुर बताकर दुःख कि बात करता है. यह पक्ष सही भी है परन्तु अगले ही क्षण वह इस दुःख से निवृत्ति का मार्ग भी बताता है, दुःख को विजित कर परम सुख और शांति कि चर्चा काटा है. यहाँ तक कि मृत्यु को भी विजित कर अमरत्व कि खोज करता है. म्रियोर्मा अमृतंगमय का संकल्प करता, उसे प्राप्त भी करता है. अंतिम वह अवस्थ में वह आश्वादी है. कुछ इसी प्रकार कि छवि मुझे दीख रही है.........शास्त्री जी अस्वस्थता में भी अपनी पतवार सुय्ग्य हाथो में सौपने को तैयार है,,,अभि तो वही नेत्रित्व करेंगे अभि पर्याप्त ऊर्जा है, दृढ संकल्प और हम लोगों कि दुआ भी. निराश होने कि आवश्यकता नहीं है ...........वे अभि बहुर दिन तक साथ रहेंगे ..........
शास्त्री जी ,
जवाब देंहटाएंआपके स्वास्थ्य के लिए शुभकामनायें ...
नीड़ में सबके बिछा विश्राम देने को बिछौना,
फिर दबे कदमों से चलकर आयेगा सपना सलोना,
भोर की पहली किरण से आयेगा उल्लास अब।
चन्द साँसों पर नहीं मुझको रहा विश्वास अब।
यह पंक्तियाँ जीवन को सही रूप में जीने को प्रेरित करती हैं ...ऐसा लग रहा है की यह भी एक उत्सव की ओर इशारा कर रही हैं ...आपकी जीवंतता को नमन ....
आप शीघ्र स्वास्थ- लाभ करें यही प्रभु से प्रार्थना है
भोर की पहली किरण से आयेगा उल्लास अब।
जवाब देंहटाएंचन्द साँसों पर नहीं मुझको रहा विश्वास अब।।
उल्लास अतिशीघ्र लौट आये!!!
सांसों पर विश्वास बना रहे!!!
सुन्दर रचना!
Pranam
जवाब देंहटाएंमयंक जी, प्रेरक गीत।
जवाब देंहटाएंबधाई।
---------
ग्राम, पौंड, औंस का झमेला। <
विश्व की दो तिहाई जनता मांसाहार को अभिशप्त है।
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जवाब देंहटाएंनींद के आगोश में खो जाएगा परिहास सब।
चन्द साँसों पर नहीं मुझको रहा विश्वास अब...
Live your life fully . Do not bother about the time left. Nice poetry.
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निराशा भरे पलों में भी उल्लास के आलोकवृत्त से घिरे जीवन का सुंदर सपना, बुझते आशा के दीप को जलाकर, नव जीवन का संचार करता है. प्रेरणादायक रचना के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.