मतलबी संसार में गुम हो गया किरदार है हर जगह पर हो रहा ईमान का व्यापार है कंटकों ने ओढ़ ली, चूनर सुमन की चमन में हाथ मत आगे बढ़ाना, बेध देगा ख़ार है क्या खिलाएँ और खाएँ, है मिठासों में जहर, ज़िन्दगी को मुँह चिढ़ाते, नाम के त्यौहार हैं डाल पर बैठा परिन्दा, सोच में बैठा हुआ खेत से दानों का, सारा मिट गया भण्डार है अब नहीं बाकी बचा, कुछ भी फ़िजाओं में हुनर शालीनता के भेष में, अश्लीलता दमदार है दिल की कोटर में, छिपा बैठा मलिन-मन मनचले भँवरे को केवल “रूप” से ही प्यार है |
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सोमवार, 31 अक्टूबर 2011
"गुम हो गया किरदार है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
रविवार, 30 अक्टूबर 2011
"गीत-आशा शैली" (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मितवा मुस्काए देखो बन्दन वार सुधि की तितली आई है मन के द्वार झाड़-पोंछ फेंक आई जीवन की कुण्ठा घर की हर एक दिशा आज लूँ सँवार बरखा की रिमझिम है बून्दों का शोर आया मधुमासों पर मादक निखार वृक्षों पर चहकी है मैना मतवाली जंगल में मोरों के नृत्य की झंकार आज प्रीत आँचल उड़ाती हमारा उनके सपने आये नयनों के द्वार श्रीमती आशा शैली "हिमाचली" |
शनिवार, 29 अक्टूबर 2011
"पचरंगी फूल खिलाओगे" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मित्रों! आज एक पुरानी रचना को आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ! प्रियतम जब तुम आओगे तो, संग बहारें लाओगे। स्नेहिल रस बरसाओगे और रंग फुहारें लाओगे।। तुमको पाकर मन के उपवन, बाग-बाग हो जायेंगे, वीराने गुलशन में फिर से, कली-सुमन मुस्कायेंगे, जीवनरूपी बगिया में तुम, ढंग निराले लाओगे। स्नेहिल रस बरसाओगे और रंग फुहारें लाओगे।। अमराई में कोयल फिर से, कुहुँक-कुहुँक कर गायेगी, मुर्झाई अमियों में फिर से, मस्त जवानी छायेगी, अमलतास के पेड़ों पर, पचरंगी फूल खिलाओगे। स्नेहिल रस बरसाओगे और रंग फुहारें लाओगे।। आशा है आकर तुम मेरे, कानों में रस घोलोगे, सदियों का तुम मौन तोड़कर, मीठे स्वर में बोलोगे, अपनी साँसो के सम्बल से, मुझको तुम सहलाओगे। स्नेहिल रस बरसाओगे और रंग फुहारें लाओगे।। |
शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011
"भाईदूज के अवसर पर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011
"पर्व नया-नित आता है" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
त्यौहारों की धूम मची है, पर्व नया-नित आता है। परम्पराओं-मान्यताओं की, हमको याद दिलाता है।। उत्सव हैं उल्लास जगाते, सूने मन के उपवन में, खिल जाते हैं सुमन बसन्ती, उर के उजड़े मधुवन में, जीवन जीने की अभिलाषा, को फिर से पनपाता है। परम्पराओं-मान्यताओं की, हमको याद दिलाता है।। भावनाओं की फुलवारी में ममता, नेह जगाती है रिश्तों-नातों की दुनिया, साकार-सजग हो जाती है, बहना के हाथों से भाई, रक्षासूत्र बँधाता है। परम्पराओं-मान्यताओं की, हमको याद दिलाता है।। क्रिसमस, ईद-दिवाली हो, या बोधगया बोधित्सव हो, महावीर स्वामी, गांधी के, जन्मदिवस का उत्सव हो, एक रहो और नेक रहो का शुभसन्देश सुनाता है। परम्पराओं-मान्यताओं की, हमको याद दिलाता है।। |
बुधवार, 26 अक्टूबर 2011
"दीपावली, गोवर्धनपूजा और भइयादूज की शुभकामनाएँ!" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
आलोकित हो वतन हमारा। हो सारे जग में उजियारा।। कंचन जैसा तन चमका हो, उल्लासों से मन दमका हो, खुशियों से महके चौबारा। हो सारे जग में उजियारा।। आओ अल्पना आज सजाएँ, माता से धन का वर पाएँ, आओ दूर करें अँधियारा। हो सारे जग में उजियारा।। घर-घर बँधी हुई हो गैया, तब आयेगी सोन चिरैया, सुख का सरसेगा फव्वारा। होगा तब जग में उजियारा।। आलोकित हो वतन हमारा। हो सारे जग में उजियारा।। ♥♥♥ पर्वों की शृंखला में आप सभी को धनतेरस, नर्क चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भइयादूज की हार्दिक शुभकामनाएँ! ♥ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”♥ |
मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011
लक्ष्मी जी के साथ में, रहते देव गणेश। अगर साथ हों शारदे, सुधर जाए परिवेश।।
मुझसे सब यह कह रहे, कुछ रुक जाओ मित्र। प्रतिदिन लाते कहाँ से, शब्दों के ये चित्र।। क्या उत्तर दूँ आपको, वाणी मेरी मौन। स्वयं नहीं मैं जानता, रचवा देता कौन?। वीणा वाली का सदा, मिला जिसे हो साथ। उसके कर की डोर है, माता जी के हाथ।। भावनाएँ देतीं वही, लिखवा जातीं छन्द। टंकण में संलग्न हूँ, मैं मानव मतिमन्द।। लक्ष्मी जी के साथ में, रहते देव गणेश। अगर साथ हों शारदे, सुधर जाए परिवेश।। धन-लक्ष्मी के साथ में, प्रज्ञा है अनिवार्य। उससे ही होते सफल, सभी हमारे कार्य।। दीपों का यह पर्व है, चारों ओर उजास। उर में दीप जलाय कर, करो धवल प्रकाश।। |
"परिणाम" (दीपावली का उपहार)-श्रीमती अमर भारती
जालजगत् के भवसागर में डूबते-उतराते हुए पहेली का 100वाँ पड़ाव भी आया! दीपावली के प्रकाश पर्व पर साहित्य शारदा मंच, खटीमा (उत्तराखण्ड) के सौजन्य से मैं डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" और श्रीमती अमर भारती उपहार स्वरूप निम्न सम्मानपत्र प्रमाण पत्र के रूप में भेट कर रहे हैं! सबसे पहले इसके बाद तथा सभी प्रतिभागियों को को हार्दिक शुभकामनाएँ! -0-0-0- उपरोक्त प्रमाणपत्र आपकी सम्पत्ति है। कृपया इन्हें स्वीकार करें! -0-0-0- प्रकाश पर्व दीपावली की शुभकामनाओं सहित- - श्रीमती अमर भारती एवं - डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" दिनांक-25 अक्टूबर, 2011 |
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