हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
कल तलक लू चल रही थी,
धूप से भू जल रही थी,
आज हैं रिमझिम फुहारें,
लौट आयी हैं बहारें,
बुन लिया है पंछियों ने आशियाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
हल किसानों ने उठाया,
खेत में उसको चलाया,
धान की रोपाई होगी,
अन्न की भरपाई होगी,
गा उठेगा देश फिर, सुख का तराना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
ताल के नम हैं किनारे,
मिट गयीं सूखी दरारें,
अब कुमुद खिलने लगेंगे,
भाग्य धरती के जगेंगे,
आ गया है दादुरों को गीत गाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
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शुक्रवार, 30 जून 2017
गीत "नभ पर बादलों का है ठिकाना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 29 जून 2017
गीत "आ गये बादल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।
सुहानी चल रही पुरवा, सभी को भा गये बादल।
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।
किसानों के मुखौटो पर, खुशी चमका गये बादल।
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।
पहाड़ों से उतर कर, मेह को बरसा गये बादल।
हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।।
मंगलवार, 27 जून 2017
दोहे "नभ में अब घनश्याम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बादल छाये गगन में, बीती काली रात।
सुख बरसाने के लिए, आयेगी बरसात।।
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उमड़-घुमड़ कर आ रहे, नभ में अब घनश्याम।
बढ़ जायेगा खेत में, मजदूरों का काम।।
--
हवा सुहानी बह रही, बादल करते शोर।
चपला चमकी गगन में, वन में नाचें मोर।।
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पौध धान की हो गयी, अब बिल्कुल तैयार।
फिर से वीरान चमन, होगा अब गुलजार।।
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आसमान से बरसती, बारिश अब घनघोर।
रोपाई करने चले, कृषक खेत की ओर।।
--
बारिश से गदगद हुए, काफल-सेब-अनार।
मिट जायेंगी धरा की, अब तो सभी दरार।।
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मेघों ने अब कर दिया, पावस का आगाज।
पवन बसन्ती चल रहा, झूम रहा वनराज।।
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सोमवार, 26 जून 2017
दोहे "होगी ईद मुफीद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आदर हो हर पन्थ
का, पढ़ो कुरान-मजीद।
खुशियाँ लेकर आ
गयी, मौमिन के घर ईद।।
--
सच्चे मन से
कीजिए, पूजा और अजान।
घर-घर नेमत ईद की,
लाते हैं रमजान।।
--
जब तक साँस शरीर
में, तब तक है उम्मीद।
दुआ करो अल्लाह से,
होगी ईद मुफीद।।
--
जिनके घर में हो
गया, बेटा आज शहीद।
सोचो उन माँ-बाप
की, कैसे होगी ईद।।
--
नेक-नीति के साथ
में, रोज मनाओ ईद।
मानव मानव ही रहे,
रब की है ताकीद।।
--
बाजारों में रोज
ही, करते रहो खरीद।
भाईचारे का सबक,
सिखलाती है ईद।।
--
ईश्वर का पैगाम है, सबके लिए मुफीद।
लाते हैं उल्लास
को, होली-क्रिसमस-ईद।।
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रविवार, 25 जून 2017
दोहे "कहो मुबारक ईद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
चाँद दूज का देखकर, जागी है उम्मीद।
गले मिलें सब प्यार से, कहें मुबारक ईद।।
--
मौमिन को सन्देश ये, देते हैं रमजान।
नेकी और खुलूस का, मौला का फरमान।।
--
जर्रे-जर्रे में बसा, राम और रहमान।
सिखलाते इंसानियत, पूजा और अजान।।
--
मर्म बताते धर्म का, गीता और कुरान।
सारे प्राणी धरा के, ईश्वर की सन्तान।।
--
खुद जिसके आदेश पर, चलता सकल जहान।
बन्धन में रहता नहीं, खुदा और भगवान।।
--
सारी पोथी धर्म की, करती हैं ताक़ीद।
जिसके मन में प्यार है, उसके सभी मुरीद।।
--
दुनिया के बाजार में, सौदा खरा खरीद।
लाते हैं उल्लास को, होली-क्रिसमस-ईद।।
--
मज़हब चाहे कोई हो, करना सबका मान।
भाईचारे से बने, अपना देश महान।।
--
चाहे कुछ भी नाम दो, देश-काल अनुरूप।
मक़सद केवल एक है, अलग-अलग हैं “रूप”।।
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शनिवार, 24 जून 2017
बालकविता "बारिश आई अपने द्वारे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रिमझिम-रिमझिम पड़ीं फुहारे।
बारिश आई अपने द्वारे।।
तन-मन में थी भरी हताशा,
धरती का था आँचल प्यासा,
झुलस रहे थे पौधे प्यारे।
बारिश आई अपने द्वारे।।
आँधी आई, बिजली कड़की,
जोर-जोर से छाती धड़की,
अँधियारे ने पाँव पसारे।
बारिश आई अपने द्वारे।।
जल की मोटी बूँदें आयी,
शीतलता ने अलख जगाई,
खुशी मनाते बालक सारे।
बारिश आई अपने द्वारे।।
अब मौसम हो गया सुहाना,
आम रसीले जमकर खाना,
पर्वत से बह निकले धारे।
बारिश आई अपने द्वारे।।
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शुक्रवार, 23 जून 2017
कविता "चौमासा बारिश से होता" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
सावन सूखा बीत न जाये।
नभ की गागर रीत न जाये।।
कृषक-श्रमिक भी थे चिन्ताकुल।
धान बिना बारिश थे व्याकुल।।
रूठ न जाये कहीं विधाता।
डर था सबको यही सताता।।
लेकिन बादल है घिर आया।
घटाटोप अंधियारा छाया।।
अम्बुआझार चली पुरवायी।
शायद बारिस की रुत आयी।।
बिजली कड़की, बादल गरजा।
सूरज का दिल भी है लरजा।।
मोटी-मोटी बुन्दियाँ आयी।
लोगों के मन को अति भायी।।
पहली बारिश को पा करके।
नहा रहे बालक जी भरके।।
चौमासा बारिश से होता।
खेतीहर फसलों को बोता।।
वर्षा प्रतिदिन जल बरसाना।
बारिश मत धोखा दे जाना।।
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बुधवार, 21 जून 2017
कविता "छोटे पुत्र विनीत का जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मंगलवार, 20 जून 2017
दोहागीत "बहुत जरूरी योग" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
तन-मन को निर्मल करे, योग भगाए रोग।१।
--
दुनियाभर में बन गया, योग-दिवस इतिहास।
योगासन सब कीजिए, अवसर है यह खास।।
मानुष जन्म मिला हमें, करने को शुभकाम।
पापकर्म करके इसे, मत करना बदनाम।।
थोड़े से ही योग से, काया रहे निरोग।।
तन-मन को निर्मल करे, योग भगाए रोग।२।
--
सारे जग को दे दिया, हमने अब सन्देश।
हो जाता है योग से, निर्मल सब परिवेश।।
सरदी-गरमी हो भले, चाहे हो बरसात।
करना योग प्रचार को, देश-नगर देहात।।
भोगवाद के समय में, बहुत जरूरी योग।
तन-मन को निर्मल करे, योग भगाए रोग।३।
--
योग हमारा कर्म है, योग हमारा धर्म।
प्राणिमात्र कल्याण का, छिपा योग में मर्म।
गूँजा पूरे विश्व में, ऋषियों का पैगाम।
मन की मुक्त उड़ान पर, देता योग लगाम।।
सहययोग करना सदा, मत करना हठयोग।
तन-मन को निर्मल करे, योग भगाए रोग।४।
--
चहक जायेगा सुमन जब, महकेगा उद्यान।
वेदों ने हमको दिया, मन्त्रों में विज्ञान।।
जगतनियन्ता ईश ने, हमको दिया विधान।
जीवन जीने के लिए, राह चुनों आसान।।
दुनियादारी का करो, संयम से उपभोग।
तन-मन को निर्मल करे, योग भगाए रोग।५।
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सोमवार, 19 जून 2017
दोहे "अपनायेंगे योग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
योग-ध्यान का दे दिया, अब जग को सन्देश।
विश्वगुरू कहलायगा, फिर से भारत देश।।
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खुश होकर अपना लिया, सबने अपना योग।
भारत के पीछे चले, दुनियाभर के लोग।।
--
पातंजलि की राह पर, चलने लगा हुजूम।
रामदेव के योग की, दुनियाभर में धूम।।
--
ऋषि-मुनियों के योग से, होंगे सभी निरोग।
भोगवाद को छोड़कर, अपनायेंगे योग।।
--
भारत ने ही दिया था, अपना योग सुझाव।
राष्ट्रसंघ में हो गया, पारित यह प्रस्ताव।।
--
अल्प-अवधि में सभी ने, मान लिया अनुरोध।
नहीं किसी भी देश ने, इसका किया विरोध।।
--
पिछले दशकों में नहीं, जागी थी सरकार।
वर्तमान सरकार ने, किया सपन साकार।।
--
जैसे-जैसे आ रहा, योग-दिवस नज़दीक।
कट्टरपन्थी छोड़ कर, लोग हुए निर्भीक।।
--
योग-दिवस का बन गया, आज सुखद-संयोग।
सबको करना चाहिए, नित्य-नियम से योग।।
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रविवार, 18 जून 2017
दोहे "पितृ-दिवस-पिता सबल आधार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
वन्दन शत्-शत् बार।
बिना आपके है नहीं,
जीवन का आधार।।
--
बचपन मेरा खो गया,
हुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर अब मुझे,
करने हैं सब काज।।
--
जब तक मेरे शीश पर,
रहा आपका हाथ।
लेकिन अब आशीष का,
छूट गया है साथ।।
--
तारतम्य टूटा हुआ, उलझ गये हैं तार।
कौन मुझे अब करेगा, पिता सरीखा प्यार।।
--
माँ ममता का रूप है, पिता सबल आधार।
मात-पिता सन्तान को, करते प्यार अपार।।
--
सूना सब संसार है, सूना घर का द्वार।
बिना पिता जी आपके, फीके सब त्यौहार।।
--
तात मुझे बल दीजिए, उठा सकूँ मैं भार।
एक-नेक बनकर रहे, मेरा ये परिवार।।
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