-- आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास। कैसे जीवन में उगे, हास और परिहास।। -- बन्धन आवागमन का, नियम बना है खास। अमर हुआ कोई नहीं, बता रहा इतिहास।। -- निर्बल का मत कीजिए, कभी कहीं उपहास। आँधी में तूफान में, जीवित रहती घास।। -- तुलसी-सूर-कबीर की, मीठ-मीठी तान। निर्गुण-सगुण उपासना, भूल गया इंसान।। -- ग्वाले मक्खन खा रहे, मोहन की ले ओट। सत्ता के तालाब में, मगर रहे हैं लोट।। -- मुखपोथी पर अधिकतर, बातें हैं अश्लील। भोली चिड़ियों को यहाँ, लील रही हैं चील।। -- मुखपोथी के सामने, बड़े-बड़े लाचार। मतलब के सब लोग हैं, मतलब का सब प्यार।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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बुधवार, 31 जुलाई 2024
दोहे "लील रही हैं चील" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मंगलवार, 30 जुलाई 2024
दोहे "चलने का है काम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- बादल कहलाते वही, जो करते बरसात। कहते हैं गाड़ी उसे, जो चलती दिन-रात।1। -- गाड़ी का संसार में, चलने का है काम। रुकना-थकना है नहीं, इस जीवन का नाम।2। -- मिलती है सौभाग्य से, जीवन की सौगात। खेल खतम होता तभी, जब हो जाती मात।3। -- जब तक प्राण शरीर में, सभी
मनाते खैर। धड़कन जब थम जाय तो, सब
बन जाते गैर।4। -- सबसे सुन्दर जगत में, साड़ी का परिधान। चोटी-बिन्दी आज भी, महिला की पहचान।4। -- जीवन के संग्राम में, होना
नहीं निराश। मंजिल पाने के लिए, करना
राह तलाश।5। -- कालचक्र को देखकर, होना
मत भयभीत। जो आया वो जायगा, जग की है यह रीत।6। -- विधि के अटल विधान पर, चलते
नहीं उपाय। पंचतत्व की देह तो, माटी
में मिल जाय।7। -- रहने काबिल जीव के, जब
तक रहे शरीर। तब तक जीवन-नाव की,
खुली रहे जंजीर।8। -- किसकी कितनी उमर है, नहीं
किसी को ज्ञान। चित्रगुप्त के गणित से, सब
ही हैं अनजान।9। -- कहीं शोक की धुन बजे, कहीं
मांगलिक गीत। पड़ती सबको झेलनी, गरमी-बारिश-शीत।10। -- |
सोमवार, 29 जुलाई 2024
दोहे "...आशीष का, छूट गया है साथ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आज ही के दिन पिछले वर्ष आप विदा हुए थे.. पूज्य पिता जी आपको शत्-शत् नमन...!! पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार। बिना आपके हो गया, जीवन मुझ पर भार।। -- एक साल बीता नहीं, माँ भी गयी सिधार। बिना आपके हो रहा, दुखी बहुत परिवार।। -- बचपन मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज। सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।। -- जब तक मेरे शीश पर, रहा आपका हाथ। लेकिन अब आशीष का, छूट गया है साथ।। -- प्रभु मुझको बल दीजिए, उठा सकूँ मैं भार। एक-नेक बनकर रहे, मेरा ये परिवार।। -- |
रविवार, 28 जुलाई 2024
गीत "पूजा और वन्दना का अज्ञानी को ज्ञान नहीं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- दुर्गम पथरीला पथ है, जिसमें कोई सोपान नहीं। मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।। -- रहते हैं आराध्य देव, उत्तुंग शैल के शिखरों में, कैसे दर्शन करूँ आपके, शक्ति नहीं है पैरों में, चरणामृत मिल जाए मुझे, ऐसा मेरा शुभदान नहीं। मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।। -- तुम हो जग के कर्ता-हर्ता, शिव-शम्भू कल्याण करो, उरमन्दिर में पार्वती के साथ, देव तुम चरण धरो, पूजा और वन्दना का, मुझ अज्ञानी को ज्ञान नहीं। मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।। -- भोले-भण्डारी के दर से, कोई नहीं खाली जाता, जो धरता है ध्यान आपका, वो इच्छित फल को पाता, जिससे उपमा हो शिव की, ऐसा कोई उपमान नहीं। मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।। -- |
शनिवार, 27 जुलाई 2024
वन्दना "जय-जय जय वरदानी माता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जय-जय जय कल्याणी माता। जय-जय जय वरदानी माता।। मन है माता मेरा चंचल, माँग रहा हूँ अविचल सम्बल, दे दो ज्ञान भवानी माता। जय-जय जय वरदानी माता।। माँ वीणा की तान सुना दो, शब्दों का आधार बना दो, दया करो विज्ञानी माता। जय-जय जय वरदानी माता।। गुलशन बन जाये वृन्दावन, रहे हमेशा खिलता उपवन, दिवस-रैन मैं तुमको ध्याता। जय-जय जय वरदानी माता।। निराकार-साकार आप हो, भक्तिभाव वन्दना जाप हो, सुत से है माता का नाता। जय-जय जय वरदानी माता।। |
शुक्रवार, 26 जुलाई 2024
ग़ज़ल "यौवन उबार लेना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- फूलों को रहने देना, काँटे बुहार लेना। जीवन के रास्तों को, ढंग से निखार लेना। -- सावन की घन-घटाएँ, बरसे बिना न रहतीं, बारिश की मार से तुम, मन को न हार देना। -- इठला रहे हैं अब तो, नाले-नदी-गधेरे, गर हो सके तो इनसे, मस्ती उधार लेना। -- धरती में लहलहाते, बिरुए तुम्हें बुलाते, करके निराई इनका, आँचल सँवार देना। -- अब झूम-झूम भँवरे, गुंजार कर रहे हैं, तुम सादगी से अपने, लम्हें गुज़ार देना। -- चढ़ती हुई नदी का, तो रूप मस्त होता, तुम ज़लज़लों से अपना, यौवन उबार लेना। -- |
गुरुवार, 25 जुलाई 2024
दोहे "करगिल विजय दिवस-हमें दिलाता याद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जिन वीरों ने युद्ध में, प्राण दिये थे वार। शत-शत नमन उन्हें करे, भारत बारम्बार।। -- सैन्य कैम्प ने द्रास के, रचा अजब इतिहास। करगिल विजय दिवस बना, दुनियाभर में खास।। -- रक्षा अपने देश की, करते वीर जवान। सेना पर अपनी हमें, होता है अभिमान।। -- बैरी की हर चाल को, करते जो नाकाम। सैनिक सीमा पर सहें, बारिश-सरदी-घाम।। -- सैन्य ठिकाने जब हुए, दुश्मन के बरबाद। करगिल की निन्यानबे, हमें दिलाता याद। -- अपना ही लद्दाख है, अपना ही कशमीर। कभी न देंगे पाक को, हम अपनी जागीर।। -- किसी घोषणा पत्र पर, अमल न करता पाक। रहे शुरू से पाक के, मकसद हैं नापाक।। -- अब भी चलता जा रहा, पाकिस्तान कुचाल। धमकाता है शेर को, सीमा पर शृंगाल।। -- |
बुधवार, 24 जुलाई 2024
दोहे "बनता है आधार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोगों मेरी बात पर, कर लेना कुछ गौर। ठण्डा करके खाइए, भोजन का हर कौर।। -- अफरा-तफरी में नहीं, होते पूरे काम। मनोयोग से कीजिए, अपने काम तमाम।। -- कर्मों से ही भाग्य का, बनता है आधार। कर्तव्यों के बिन नहीं, मिलते हैं अधिकार।। -- देकर पानी-खाद को, फसल करो तैयार। तब विचार से लाभ क्या, जब हो उपसंहार।। -- बैरी की उसको नहीं, अब कोई दरकार। जिसके घर को लूटते, उसके ही सरदार।। -- |
मंगलवार, 23 जुलाई 2024
दोहे "मन में है अतिरेक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- सावन आया झूम के, पड़ती
हैं बौछार। बमभोले की गूँजती, सड़कों
पर जयकार।1। -- चौमासे में आ रहा, भक्तों को आनन्द। काँवड़ के चलते हुए, राजमार्ग सब बन्द।2। -- शिव का गंगा-नीर से, करने
को अभिषेक। बढ़ा हुआ उत्साह का, मन में
है अतिरेक।3। -- पथ पर पैदल चल पड़े, बहनों के
अब वीर। हर-हर के हरद्वार से, लाने
गंगा नीर।4। -- बारिश का मौसम हमें, देता है
सन्देश। अपने प्यारे वतन का, साफ करो
परिवेश।5। -- जो पीता है जहर को, उसका
होता मान। महादेव शिव बन गये, करके विष
का पान।6। -- नर-नारी सब मानते, मन से
जिन्हें सुरेश। विध्न विनाशक के पिता, जय हो
देव महेश।7। - सच्चे मन से जो करे, शिव-शंकर
का ध्यान। शंकर जी देते उसे, खुश होकर
वरदान।8। -- |
सोमवार, 22 जुलाई 2024
दोहे "छिपा रहे पहचान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- छिपी हुई थी अब तलक, जिनकी
भी पहचान। उन सबका सरकार ने, लिया आज
संज्ञान।1। -- योगी
धामी ने किया, बहुत बड़ा ये काम। मालिक को दूकान पर, लिखना
होगा नाम।2। -- हिन्दू देवों से अगर, इतना
ही है प्यार। फिर तो हिन्दू धर्म को, कर
लो अंगीकार।3। -- बमभोले का है यही, उन सबको
आदेश। अपने कारोबार में, रखो वही परिवेश।4। -- करो तामसी भोज का, अपना
धन्धा बन्द। खान-पान में शुद्धता, लाती है आनन्द।5। -- पथ पर पैदल चल पड़े, काँवड़
लाने वीर। हर-हर के हरद्वार में, बहता
पावन नीर।6। -- करना है हर एक को, सब
धर्मों का मान। मुस्लिम होकर किसलिए, छिपा
रहे पहचान।7। -- सच्चे मन से कीजिए, शिव-शंकर
का ध्यान। भोले-शंकर आपको, दे देंगे
वरदान।8। |
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