जन्मदिवस
पर तुम्हें बधाई।।
पहले
भी थी सहज सरल सी,
अब
भी स्नेहिल, शान्त-तरल सी,
तुम
आँगन में खुशियाँ लाई।
जन्मदिवस
पर तुम्हें बधाई।।
मन
है सुन्दर, प्यारी सूरत,
तुम
तो ममता की हो मूरत,
वाणी
में बजती शहनाई।
जन्मदिवस
पर तुम्हें बधाई।।
तुम
लम्बा सा जीवन पाओ,
स्वस्थ
रहो और साथ निभाओ,
सुखद
पवन को तुम ही लाई।
जन्मदिवस
पर तुम्हें बधाई।।
तुमसे
ही तो ये घर, घर है,
तुमसे
ही आबाद नगर है,
मन
में तुमने जगह बनाई।
जन्मदिवस
पर तुम्हें बधाई।।
|
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रविवार, 30 सितंबर 2012
"जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शनिवार, 29 सितंबर 2012
"पुकारती है भारती" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हैं पूजनीय कोटि पद, धरा उन्हें निहारती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।
चरण-कमल वो धन्य हैं,
समाज को जो दें दिशा,
वे चाँद-तारे धन्य हैं,
हरें जो कालिमा निशा,
प्रसून ये महान हैं, प्रकृति है सँवारती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।
जो चल रहें हैं,
रात-दिन,
वो चेतना के दूत है,
समाज जिनसे है टिका,
वे राष्ट्र के सपूत है,
विकास के ये दीप हैं, मही इन्हें दुलारती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।
जो राम का चरित लिखें,
वो राम के अनन्य हैं,
जो जानकी को शरण दें,
वो वाल्मीकि धन्य हैं,
ये वन्दनीय हैं सदा, उतारो इनकी आरती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।
|
शुक्रवार, 28 सितंबर 2012
"प्रीत पोशाक नयी लायी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मित्रों!
आज पेश कर रहा हूँ
अपनी शायरी के शुरूआती दिनों की
एक बहुत पुरानी ग़ज़ल!
हमने सूरत ही ऐसी पायी है।
उनको ऐसी अदा ही भाई है।।
दिल किसी काम में नही लगता,
याद जब से तुम्हारी आयी है।
घाव रिसने लगें हैं सीने के,
पीर चेहरे पे उभर आयी है।
साँस आती है,
धडकनें
गुम है,
क्यों मेरी जान पे बन आयी है।
गीत-संगीत बेसुरा सा है,
मन में बंशी की धुन समायी है।
मेरी सज-धज हैं,
बेनतीजा
सब,
प्रीत पोशाक नयी लायी है।
होठ हैं बन्द,
लब्ज
गायब हैं,
राज की बात है,
छिपायी
है।
चाहे कितनी बचा नजर मुझसे,
इश्क की गन्ध छुप न पायी है।
“रूप” से पेट तो नहीं भरता,
ऐसी हमने ख़ुराक खायी है।
|
गुरुवार, 27 सितंबर 2012
♥ गणेशोत्सव पर विशेष ♥ (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
♥ गणेशोत्सव पर विशेष ♥
मित्रों! इन दिनों गणेशकोत्सव की धूम है!
इस अवसर पर
मेरी जीवन संगिनी
श्रीमती अमर भारती के स्वर में!
मेरी लिखी हुई यह गणेश वन्दना सुनिए
और आप भी साथ-साथ गाइए!
विघ्न विनाशक-सिद्धि विनायक।
कृपा करो हे गणपति नायक!!
सबसे पहले तुमको ध्याता,
चरणयुगल में शीश नवाता,
आदि देव जय-जय गणनायक।
कृपा करो हे गणपति नायक!!
पार्वती-शिव के तुम नन्दन,
करते सभी तुम्हारा वन्दन,
सबको देते फल शुभदायक!
कृपा करो हे गणपति नायक!!
लेकर धूप-दीप और चन्दन,
सारा जग करता अभिनन्दन,
मैं अबोध अनुचर अनुगायक!
कृपा करो हे गणपति नायक!!
मूषक-मोदक तुमको प्यारे,
विपदाओं को टारनहारे,
निर्बल के तुम सदा सहायक!
कृपा करो हे गणपति नायक!!
|
बुधवार, 26 सितंबर 2012
"हमको वो परिधान चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जो नंगापन ढके हमारा हमको वो परिधान चाहिए।
साध्य
और साधन में हमको समरसता संधान चाहिए।।
अपनी
मेहनत से ही हमने, अपना वतन सँवारा है,
जो
कुछ इसमें रचा-बसा, उस पर अधिकार हमारा है,
सुलभ
वस्तुएँ हो जाएँ सब, नहीं हमें अनुदान चाहिए।
साध्य
और साधन में हमको समरसता संधान चाहिए।।
प्रजातन्त्र
में राजतन्त्र की गन्ध घिनौनी आती है,
धनबल
और बाहुबल से, सत्ता हथियाई जाती है,
निर्धन
को भी न्याय सुलभ हो,ऐसा सख़्तविधान चाहिए।
साध्य
और साधन में हमको समरसता संधान चाहिए।।
उपवन
के पौधे आपस में, लड़ते और झगड़ते क्यों?
जो
कोमल और सरल सुमन हैं उनमें काँटे गड़ते क्यों?
मतभेदों
को कौन बढ़ाता, इसका अनुसंधान चाहिए।
साध्य
और साधन में हमको समरसता संधान चाहिए।।
इस
सोने की चिड़िया के, सारे ही गहने छीन लिए,
हीरा-पन्ना,
माणिक-मोती, कौओ ने सब बीन लिए,
हिल-मिलकर
सब रहें जहाँ पर हमको वो उद्यान चाहिए।
साध्य
और साधन में हमको समरसता संधान चाहिए।।
|
मंगलवार, 25 सितंबर 2012
"नेता सचमुच महान हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)
बेटी है,
बँगला है,
खेती है,
सभी जगह
घोटाले
हैं,
कपड़े
उजले हैं,
दिल काले
हैं,
उनके
भइया हैं,
इनके
साले हैं,
जाल में
फँस रहे,
कबूतर
भोले-भाले हैं,
गुण से
विहीन हैं
अवगुण की
खान हैं
जेबों
में रहते,
इनके
भगवान हैं
इनकी
दुनिया का
नया
विज्ञान है
दिन में
इन्सान हैं
रात को
शैतान हैं
न कोई
धर्म है
न ही
ईमान है
मुफ्त
में करते
नही
अहसान हैं
हर रात
को बदलते
नये
मेहमान है
मेरे देश
के नेता
सचमुच
महान हैं!
|
सोमवार, 24 सितंबर 2012
"जनता का धीरज डोल रहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अब
तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
पहले
भूल करी तो भारत सदियों तक परतन्त्र रहा,
खण्ड-खण्ड
हो गया देश, लेकिन बिगड़ा जनतन्त्र रहा,
पुनः
गुलामी का ख़तरा भारत के सिर पर डोल रहा।
अब
तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
जिसने
बैठाया आसन पर, वो ही धूल चटा देगी,
जुल्मी-शासक
का धरती से, नाम-निशान मिटा देगी,
छल
की लिए तराजू क्यों जनता का धीरज तोल रहा।
अब
तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
खेल
रहा है खेल घिनौना, जन-गण के मत को पाकर,
हित
स्वदेश का बिसराया है, सत्ता के मद में आकर,
ईस्ट
इण्डिया के दरवाजे फिर से घर में खोल रहा।
अब
तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
आजादी
का अर्थ भूलकर, स्वछन्दता
मन को भाई.
अपनाकर
अंग्रेजी, अपनी हिन्दी भाषा बिसराई,
जटा
खोलकर शंकर क्यों गंगा में विष को घोल रहा।
अब
तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
देशी रग में खून विदेशी, पाया "रूप" सलोना है.
इनकी नज़रों में स्वदेश का, आम नागरिक बौना है,
रंगे स्यार को देख, लहू सारी जनता का खौल रहा।
अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
|
रविवार, 23 सितंबर 2012
"माली अब गद्दार हो गये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पगड़ी पर जो दाग लगाते, बे-गैरत सरदार हो गये।।
असरदार हो गये किनारे, फिरते दर-दर, मारे-मारे,
खुद्दारी की माला जपते, माली अब गद्दार हो गये।।
मन्त्री-सन्त्री और विधायक, खुलेआम कानून तोड़ते,
दूध-दही की रखवाली में, बिल्ले पहरेदार हो गये।
नैतिक और अनैतिकता से, आय-आय कैसे भी आये,
घोटालों में लिप्त धुरन्धर, सत्ता के हकदार हो गये।
अपने होठों को सी लेना, जनता की ये लाचारी है,
रोटी-रोजी के बदले में, भाषण लच्छेदार हो गये।
कहीं कीच में कमल खिला है, कहीं हाथ को राज मिला है,
मौन हो गये कर्म यहाँ पर, मुखरित अब अधिकार हो गये।
|
शनिवार, 22 सितंबर 2012
"थोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लाल और काले रंग वाली,
मेरी पतंग बड़ी मतवाली।
मैं जब विद्यालय से आता,
खाना खा झट छत पर जाता।
पतंग उड़ाना मुझको भाता,
बड़े चाव से पेंच लड़ाता।
पापा-मम्मी मुझे रोकते,
बात-बात पर मुझे टोकते।
लेकिन मैं था नही मानता,
इसका नही परिणाम जानता।
वही हुआ था, जिसका डर था,
अब मैं काँप रहा थर-थर था।
लेकिन मैं था ऐसा हीरो,
सब विषयों लाया जीरो।
अब नही खेलूँगा यह खेल,
कभी नही हूँगा मैं फेल।
आसमान में उड़ने वाली,
जो करती थी सैर निराली।
मैंने उसे फाड़ डाला है,
छत पर लगा दिया ताला है।
मित्रों! मेरी बात मान लो,
अपने मन में आज ठान लो।
पुस्तक लेकर ज्ञान बढ़ाओ।
थोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ।।
|
शुक्रवार, 21 सितंबर 2012
"धरती को खुशहाल बनाओ" बालकविता (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बारिश
का हो गया सफाया।
आसमान
में कुहरा छाया।।
जब
खेतों में गया घूमने।
छटा
देख मन लगा झूमने।।
लदे
हुए बिरुओं पर गहने।
झूमर
से धानों ने पहने।।
कुछ
शाखाओं पर हरियाली।
कुछ
सोने जैसे रंग वाली।।
सोंधी-सोंधी
महक सुहाती।
मन
में खुशियाँ बहुत जगाती।।
तितली
उड़ती पंख हिलाती।
अपना
सुन्दर रूप दिखाती।।
फसलों
के कुछ बैरी टिड्डे।
हरियाली
में छिपकर बैठे।।
देख
रहे थे टुकर-टुकरकर।
पौधे
खाते कुतर-कुतरकर।।
इनके
भी तो कुछ दुश्मन हैं।
जो
इनका खा जाते तन हैं।।
जब
सूरज नभ में छा जाता।
कौओं
का दल इन्हें मिटाता।।
फसल
उगाना जिम्मेदारी।
करो
खेत की पहरेदारी।।
पौध
लगाओ, अन्न
उगाओ।
धरती
को खुशहाल बनाओ।।
|
गुरुवार, 20 सितंबर 2012
"सीमा का रखवाला हूँ" बालकविता (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')
मैं हिमगिरि हूँ सच्चा प्रहरी,
रक्षा करने वाला हूँ।
शीश-मुकुट हिमवान अचल हूँ,
सीमा का रखवाला हूँ।।
मैं अभेद्य दुर्ग का उन्नत
बलशाली
परकोटा हूँ।
मैं हूँ वज्र समान हिमालय,
कोई न छोटा-मोटा हूँ।।
माँ की आन-बान की खातिर,
सजग हमेशा खड़ा हुआ हूँ,
दुश्मन को ललकार रहा हूँ,
मुस्तैदी से अड़ा हुआ हूँ,
प्राणों से प्यारी माता के लिए,
वीर बलिदान हो गये।
संगीनों पर माथा रखके,
सरहद पर कुर्बान हो गये।।
मैं सागर हूँ देव-भूमि को,
दिन और रात सवाँर रहा हूँ।
मैं गंगा के पावन जल से,
माँ के चरण पखार रहा हूँ।।
|
बुधवार, 19 सितंबर 2012
"नारी से घर में बसन्त है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नारी की महिमा अनन्त है। नारी से घर में बसन्त है।। किलकारी की गूँज सुनाती, परिवारों को यही बसाती। नारी नर की खान रही है, जन-जन का अरमान रही है। नारी की महिमा अनन्त है। नारी से घर में बसन्त है।। माता बनकर सेवा करती, मुस्कानों से घर को भरती। खाना सबके लिए बनाती, सबको खिला अन्त में खाती। नारी की महिमा अनन्त है। नारी से घर में बसन्त है।। नारि नर की सिरजनहार, नाम नारि (न+अरि) है शत्रु हजार, कौन सुनेगा करुण पुकार? डाकू से सब पहरेदार। नारी की महिमा अनन्त है। नारी से घर में बसन्त है।। नारि देती जीवन दान, शक्ति लो इसकी पहचान। मातृशक्ति का मान करो, नारि का सम्मान करो। नारी की महिमा अनन्त है। नारी से घर में बसन्त है।। |
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