चार चरण दो पंक्तियाँ, लगता ललित-ललाम। इसीलिए इस छन्द ने, पाया दोहा नाम।१। लुप्त हो गया काव्य का, नभ में सूरज आज। बिना छन्द रचना करें, ज्यादातर कविराज।२। बिन मर्यादा यश मिले, छन्दों का क्या काम। पद्य बताकर गद्य को, करते हैं बदनाम।३। चार दिनों की ज़िन्दग़ी, काहे का अभिमान। धरा यहीं रह जायेगा, धन के साथ गुमान।४। प्यार जगत में छेड़ता, मन वीणा के तार। कुदरत ने हमको दिया, ये अमोल उपहार।५। प्यार नहीं है वासना, ये तो है अनुबन्ध। प्यार शब्द से जुड़ा है, तन-मन का सम्बन्ध।६। चटके दर्पण की कभी, मिटती नहीं दरार। सिर्फ दिखावे के लिए, ढोंगी करता प्यार।७। ढाई आखर प्यार का, देता है सन्ताप। हार-जीत के खेल में, बढ़ जाता है ताप।९। मुखिया की चलती नहीं, सबके भिन्न विचार। ऐसा घर कैसे चले, जिसमें सब सरदार।१०। |
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शुक्रवार, 30 नवंबर 2012
“चुने हुए फुटकर दोहे” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
गुरुवार, 29 नवंबर 2012
"गंगास्नान मेला, झनकइया-खटीमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुधवार, 28 नवंबर 2012
"कार्तिक पूर्णिमा-गंगा स्नान" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मंगलवार, 27 नवंबर 2012
"सुदामा भटक रहा है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
तन्त्र ये खटक रहा है।
सुदामा भटक रहा है।।
कंस हो गये कृष्ण आज,
मक्कारी से चल रहा काज,
भक्षक बन बैठे यहाँ बाज,
महिलाओं की लुट रही लाज,
तन्त्र ये खटक रहा है।
सुदामा भटक रहा है।।
जहाँ कमाई हो हराम की
लूट वहाँ है राम नाम की,
महफिल सजती सिर्फ जाम की
बोली लगती जहाँ चाम की,
तन्त्र ये खटक रहा है।
सुदामा भटक रहा है।।
जहरीली बह रही गन्ध है,
जनता की आवाज मन्द है,
कारा में सच्चाई बन्द है,
गीतों में अब नहीं छन्द है,
तन्त्र ये खटक रहा है।
सुदामा भटक रहा है।।
|
सोमवार, 26 नवंबर 2012
"दोहा सप्तक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कुछ अपनाते योग को, कुछ अपनाते भोग।१।
कदम-कदम पर घेरतीं, उलझन हमें अनेक।
किन्तु कभी मत
छोड़ना, अपना
बुद्धिविवेक।२।
झुलसा देती ग्रीष्म
में, गोरा-गोरा
रूप।
किन्तु सुहानी सी
लगे, शीतकाल
में धूप।३।
गाँधीटोपी ओढ़ना, सीख गये जब लोग।
अपने हित के वास्ते, करते हैं उपयोग।४।
साम-दाम-भय-भेद का, दर्शन बड़ा विचित्र।
बहके हुए चरित्र की, पोल खोलते चित्र।५।
माटी में लथपथ मिले, नन्हें-नन्हें फूल।
ममता की जलधार से, माँ ही धोती धूल।६।
कंकरीट की पौध को, लगा रहे हैं लोग।
शस्यश्यामला भूमि
में, फैला
कैसा रोग।७।
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रविवार, 25 नवंबर 2012
"नानकमत्ता साहिब का दिवाली मेला” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
शुक्रवार, 23 नवंबर 2012
"नमन शैतान करते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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