ब्लॉगर मित्रों!
बहुत दिनों से मैं एक नया ब्लाग बनाने का विचार बना रहा था। परन्तु आलस कर जाता था। फिर ऐसा संयोग बना कि मेरे कुछ शुभचिन्तकों ने अपनी टिप्पणियों से मुझे प्रेरणा दी कि इस काम को जल्दी अंजाम दे दो। अतः उन्हीं की कृपा से एक नया ब्लॉग शब्दों का दंगल बना पाया हूँ।
आशा है कि उच्चारण की भाँति इसे भी अपना प्यार देंगे।
यह शब्दों का दंगल है। इसे आप लड़ाई का अखाड़ा न समझें। यदि विद्वानों में बहस हो भी जाती हैं तो मेरा तो मानना हैं कि-
‘‘ज्ञानी से ज्ञानी लड़े, तो ज्ञान सवाया होय।
मूरख से मूरख लडे, तो तुरत लड़ाई होय।।’’
आप सब अपने-अपने क्षेत्र के महारथी हैं, विद्वान हैं। मैं दंगल का मास्टर नही हूँ, सिर्फ इसका एक अदना सा सेवक हूँ। मैं इस लड़ाई में कभी आपसे जीत नही पाऊँगा। क्योंकि सेवक कभी जीतता नही है।
चलते-चलते इतना अवश्य निवेदन करना चाहता हूँ कि यदि शब्दों की लड़ाई से आपके ज्ञान में बढ़ोतरी होती है तो आप पीछे कदापि न हटें। लेकिन यदि ये मतभेद मनभेद बन जायें। इसलिए अपनी भावनाओं नियन्त्रण अवश्य कर लें। स्वस्थ लेखन करें । शिष्ट शब्दों का प्रयोग करें।
मैं अपने दोनों ब्लॉगो का प्रयोग काव्य और गद्य को अलग-अलग लिखने में करना चाहता हूँ। शब्दों का दंगल भविष्य में भाई अजित वडनेकर जी के ‘शब्दों के सफर’ का अनुगामी बन कर कुछ साहित्य सेवा करना चाहता है।आपके शुभाशीष का अभिलाषी हूँ।
अन्त में श्रीमती वन्दना गुप्ता जी का (जो मेरी प्रत्येक पोस्ट को बड़े उत्साह व प्यार के साथ टिपियाती हैं) आभार व्यक्त करना चाहता हूँ।
छोटी बहिन जैसी रचना सिंह जी के साथ हुए तल्ख वार्तालाप के लिए खेद प्रकट करता हूँ। आशा है कि वो मुझे बड़ा भाई समझ कर क्षमा कर देंगी।
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त छोटे भाई समान रावेंद्रकुमार रवि जी से विनय पूर्वक आग्रह-अनुग्रह करता हूँ कि मनरूपी सागर में आये ज्वार को भाटा में परिवर्तित करने की कृपा करें।
भाई समीर लाल जी, ताऊ रामपुरिया, कम्प्यूटरविद् आशीष् खण्डेलवाल, अजित वडनेकर, अविनाश वाचस्पति जैसे वरिष्ठ ब्लागर्स को नमन करता हूँ।
अन्तर्-जाल पर ब्लॉगिंग में आज मुझे 100 दिन ही तो हुए हैं।
इस अवधि में केवल 195 पोस्ट ही उच्चारण को दे पाया हूँ।
मैं तो सभी ब्लौगिंग के महारथियों में अभी बहुत कनिष्ठ हूँ।
विनयावनत- आपका सद्भावी।