आज “चैतन्य का कोना” ब्लॉग पर अचानक ही डॉ. मोनिका शर्मा की इस पोस्ट पर भी नजर पड़ी। ब्लॉगिंग से जुड़े सभी लोग रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी की बाल कवितायेँ पढ़ ही चुके हैं । मुझे भी उनकी बाल कवितायेँ बहुत पसंद हैं । आज चैतन्य की हिन्दी की टेक्सटबुक (अंकुर हिन्दी पाठमाला) खोली तो इन दिनों स्कूल में पढ़ाई जा रही बाल कविता “कंप्यूटर” रूपचंद्र शास्त्री जी की ही थी । बहुत अच्छा लगा.... सुखद आश्चर्य हुआ कि मैं उन्हें पहले से जानती हूँ जब से ब्लॉगिंग की दुनिया से जुड़ी हूँ, उनकी बालसुलभ रचनाएँ पढ़ती आ रही हूँ "कम्प्यूटर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) मन को करता है मतवाला। कम्प्यूटर है बहुत निराला।। यह इसका अनिवार्य भाग है। कम्प्यूटर का यह दिमाग है।। चलते इससे हैं प्रोग्राम। सी.पी.यू.है इसका नाम।। गतिविधियाँ सब दिखलाता है। यह मॉनीटर कहलाता है।। सुन्दर रंग हैं न्यारे-न्यारे। आँखों को लगते हैं प्यारे।। इसमें कुंजी बहुत समाई । टाइप इनसे करना भाई।। सोच-सोच कर बटन दबाना। हिन्दी-इंग्लिश लिखते जाना।। यह चूहा है सिर्फ नाम का। माउस होता बहुत काम का।। यह कमाण्ड का ऑडीटर है। इसके वश में कम्प्यूटर है।। कविता लेख लिखो जी भर के। तुरन्त छाप लो इस प्रिण्टर से।। नवयुग का कहलाता ट्यूटर। बहुत काम का है कम्प्यूटर।। |
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मंगलवार, 7 जनवरी 2025
"अंकुर हिन्दी पाठमाला में बिना मेरी अनुमति के मेरी बाल कविता"
सोमवार, 6 जनवरी 2025
गीत "भगवान कल्कि अब आयेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- लो
वर्ष पुराना बीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- फिरकों
में क्यों इन्सान बँटा, क्यों
अकस्मात् अटपटा घटा। क्यों
आज विधर्मी मतवाला, झूठे
दावों के साथ डटा। क्यों
अपने घर की चौखट पर, मानवता
का घर रीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- जो
कुटिया थी मंगलकारी, वीरानी क्यों उपवन-क्यारी। भाषण
में उग्रवाद पसरा, नस-नस
में उभरी मक्कारी। उन्मादी
कट्टरपन्थी क्यों, इस वसुन्धरा से मीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- भगवान
कल्कि अब आयेंगे, फिर
से मानव सुख पायेंगे। उपवन
सुमनों से महकेगा, भँवरे
गुन-गुन गायेंगे। आशायें
दिलाशा देती हैं, अब
रुदनभरा संगीत गया। अब
रचो सुखनवर गीत नया।। -- नया
सूर्य अब चमकेगा, सारा
अँधियारा हर लेगा। जब
सुख के बादल बरसेंगे, तब
“रूप” देश का
दमकेगा। धावकमन
बाजी जीत गया। अब रचो सुखनवर गीत नया।। -- |
बुधवार, 1 जनवरी 2025
"आप सबको मुबारक नया वर्ष हो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- देशभक्ति के ज़ज़्बे का उत्कर्ष हो सारी दुनिया में पसरा हुआ हर्ष हो। धानी धरती हमेशा रहे उर्वरा, आप सबको मुबारक नया वर्ष हो।। -- देखो फिर से आ गया, नया-नवेला साल। आशाएँ मन में जगीं, सुधरेंगे अब हाल।। -- एक निमिष में हो गया, गया साल इतिहास। होगा नूतन साल में, जीवन में उल्लास।। -- हों सबसे नववर्ष में, अब अच्छे सम्बन्ध। जिससे हो जाये भला, करें वही अनुबन्ध।। -- अपना भारत देश तो, माँगे सबकी खैर। किसी देश से भी कभी, नहीं चाहता बैर।। चैन-अमन होते सदा, जीवन के पर्याय। आतंकी आयें नहीं, ऐसे करो उपाय।। -- |
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