-- गैस सिलेण्डर कितना प्यारा। मम्मी की आँखों का तारा।। -- रेगूलेटर अच्छा लाना। सही ढंग से इसे लगाना।। -- गैस सिलेण्डर है वरदान। यह रसोई-घर की है शान।। -- दूघ पकाओ, चाय बनाओ। मनचाहे पकवान बनाओ।। -- बिजली अगर नही है घर में। यह प्रकाश देता पल भर में।। -- बाथरूम में इसे लगाओ। गर्म-गर्म पानी से न्हाओ।। -- बीत गया है वक्त पुराना। अब आया है नया जमाना।। -- जंगल से लकड़ी मत लाना। बड़ा सहज है गैस जलाना।। -- सदा सुरक्षा को अपनाना। इसे कार में नही लगाना।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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गुरुवार, 28 नवंबर 2024
बालकविता "गैस सिलेण्डर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 24 नवंबर 2024
बालकविता "घर भर की तुम राजदुलारी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से घर भर की तुम राजदुलारी -- प्यारी-प्यारी गुड़िया जैसी, बिटिया तुम हो कितनी प्यारी। मोहक है मुस्कान तुम्हारी, घर भर की तुम राजदुलारी।। -- नये-नये परिधान पहनकर, सबको बहुत लुभाती हो। अपने मन का गाना सुनकर, ठुमके खूब लगाती हो।। -- निष्ठा तुम प्राची जैसी ही, चंचल-नटखट बच्ची हो। मन में मैल नहीं रखती हो, देवी जैसी सच्ची हो।। -- दिनभर के कामों से थककर, जब घर वापिस आता हूँ। तुमसे बातें करके सारे, कष्ट भूल मैं जाता हूँ।। -- मेरे घर-आगँन की तुम तो, नन्हीं कलिका हो सुरभित। हँसते-गाते देख तुम्हें, मन सबका हो जाता हर्षित।। -- |
शनिवार, 23 नवंबर 2024
बालकविता "खरगोश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से "खरगोश" -- रूई जैसा कोमल-कोमल, लगता कितना प्यारा है। बड़े-बड़े कानों वाला, सुन्दर खरगोश हमारा है।। -- बहुत प्यार से मैं इसको, गोदी में बैठाता हूँ। बागीचे की हरी घास, मैं इसको रोज खिलाता हूँ।। -- मस्ती में भरकर यह लम्बी-लम्बी दौड़ लगाता है। उछल-कूद करता-करता, जब थोड़ा सा थक जाता है।। -- तब यह उपवन की झाड़ी में, छिप कर कुछ सुस्ताता है। ताज़ादम हो करके ही, मेरे आँगन में आता है।। -- नित्य-नियम से सुबह-सवेरे, यह घूमने जाता है। जल्दी उठने की यह प्राणी, सीख हमें दे जाता है।। -- |
शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
बालकविता "मैं भी जागा, तुम भी जागो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 21 नवंबर 2024
बालकविता "बिन वेतन का सजग सिपाही" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
यह है अपना चिंकू प्यारा। पूरे घर का राजदुलारा।। मन का अच्छा तन का काला। घर भर का सच्चा रखवाला।। हरदम रहता है चौकन्ना। बड़े प्यार से खाता गन्ना।। खुश हो करके नित्य नहाता। अंडा-मांस नहीं ये खाता।। लगता है भोला-भण्डारी। पर दुश्मन चोरों का भारी।। कभी न करता लापरवाही। बिन वेतन का सजग सिपाही।। |
बुधवार, 20 नवंबर 2024
बालगीत "प्रकाश का पुंज हमारा सूरज" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मंगलवार, 19 नवंबर 2024
बालकविता "तीखी-मिर्च कभी मत खाओ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- तीखी-तीखी और चर्परी। हरी मिर्च थाली में पसरी।। -- तोते इसे प्यार से खाते। मिर्च देखकर खुश हो जाते।। -- सब्ज़ी का यह स्वाद बढ़ाती। किन्तु पेट में जलन मचाती।। -- जो ज्यादा मिर्ची खाते हैं। सुबह-सुबह वो पछताते हैं।। -- दूध-दही बल देने वाले। रोग लगाते, मिर्च-मसाले।। -- शाक-दाल को घर में लाना। थोड़ी मिर्ची डाल पकाना।। -- तीखी-मिर्च कभी मत खाओ। सदा सुखी जीवन अपनाओ।। -- |
सोमवार, 18 नवंबर 2024
बालकविता "आयी रेल-आयी रेल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 17 नवंबर 2024
दोहे "मुखपोथी के सामने, मर्यादा लाचार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
फेसबुक (मुखपोथी) “रूप”-शब्द-का हो रहा, यहाँ सुखद संयोग। मुख-पोथी पर आ गये, सभी तरह के लोग।। -- निर्भय हो विचरण करें, तीतर और बटेर। एक घाट पर पी रहे, पानी, बकरी-शेर।। -- आभासी संसार है, आभासी सम्बन्ध। मिलने-जुलने के लिए, हो जाते अनुबन्ध।। -- विद्वानों की पंक्ति में, आ बैठे अल्पज्ञ। पंचायत में ज्ञान की, गौण हुए मर्मज्ञ।। -- मुखपोथी के सामने, मर्यादा लाचार। मतलब के रिश्ते यहाँ, मतलब का सब प्यार।। -- आगे-पीछे नाम के, “कवि” जिनका उपनाम। ऐसे लोगों से हुआ, काव्य आज बदनाम।। -- बिन भाषा बिन भाव के, कविवर लिखते आज। मुखपोथी में हो गया, अब ये आम रिवाज।। -- छद्म नाम से आ गये, मुखपोथी पर लोग। नर नारी के नाम से, सुख का करते भोग।। -- पोथीबुक पर अधिकतर, बातें हैं अश्लील। भोली चिड़िया को यहाँ, झपट रही है चील।। -- बिना प्रमाणक के यहाँ, व्यक्ति न आने पाय। मुखपोथी को चाहिए, करने ठोस उपाय।। -- |
शुक्रवार, 15 नवंबर 2024
दोहे "कार्तिक पूर्णिमा, गुरु नानक जी का जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- आयी कातिक पूर्णिमा, चहके गंगा घाट। सरिताओं के रेत में, मेला लगा विराट।। -- एक साल में एक दिन, आता है त्यौहार। बहते निर्मल-नीर में, डुबकी लेना मार।। -- गंगा तट पर आज तो, उमड़ी भारी भीड़। लगे अनेकों हैं यहाँ, छोटे-छोटे नीड़।। -- खिचड़ी गंगा घाट पर, लोग पकाते आज। जितने भी आये यहाँ, सबका अलग मिजाज।। -- गुरू पूर्णिमा पर्व पर, खुद को करो पवित्र। सरिताओं के घाट पर, आज नहाओ मित्र।। -- गुरु नानक का जन्मदिन, देता है सन्देश। जीवन में धारण करो, सन्तों के उपदेश।। -- बुला रहा है आपको, हर-हर का हरद्वार। मैली मत करना कभी, गंगा जी की धार।। -- गंगा जी के नाम से, भारत की पहचान। करती तीनों लोक में, गंगा मोक्ष प्रदान।। -- |
गुरुवार, 14 नवंबर 2024
दोहे "बैकुण्ठ चतुर्दशी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- चतुर्दशी बैकुण्ठ की, है पावन त्यौहार। कलकल-छलछल बह रही, गंगाजी का धार।1। -- नदियों में स्नान को, आये हैं नर-नार। गंगाजी के घाट पर, उमड़ी भीड़ अपार।2। -- गढ़गंगा-हरद्वार में, मेला लगा विशाल। खिचड़ी खाकर लोग सब, सजा रहे चौपाल।3। -- जल में डुबकी मार कर, मना रहे आनन्द। भजन-कीर्तन कर रहे, स्वामी ओमानन्द।4। -- हरे सिँघाड़े बिक रहे, ठेले पर मिष्ठान। गंगा-मेला देखकर, खुश हो रहे किसान।5। -- लोगों को होने लगा, सरदी का आभास। पर्वों का पर्याय है, स्वयं कार्तिक मास।6। -- कम्बल और रजाइयाँ, दिखा रहे हैं रूप। रोज सुबह अब सेंकते, लोग गुनगुनी धूप।7। -- |
मंगलवार, 12 नवंबर 2024
दोहे "इगास-देव उत्थान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
-- आया पर्व इगास का, कर लो देव उठान। श्रद्धा से पूजन करो, और करो कुछ दान।। -- दिन है देवोत्थान का, व्रत-पूजन का खास। भोग लगा कर ईश को, तब खोलो उपवास।। -- होते देवउठान से, शुरू सभी शुभ काम। दुनिया में सबसे बड़ा, नारायण का नाम।। -- मंजिल की हो चाह तो, मिल जाती है राह। आज रचाओ हर्ष से, तुलसी जी का ब्याह।। -- पूरी निष्ठा से करो, शादी और विवाह। बढ़ जाता शुभ कर्म से, जीवन में उत्साह।। -- चलकर आये द्वार पर, नारायण देवेश।। आयी है एकादशी, लेकर शुभ सन्देश।। -- खेतों में अब ईख ने, खूब सँवारा रूप। खाने को मिल जायगा, नवमिष्ठान अनूप।। -- पावन-निर्मल हो गया, गंगा जी का नीर। सुबह-शाम बहने लगा, शीतल-सुखद समीर।। -- |
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आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
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"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
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