कब
से बैठा
प्यासा चातुर, गगरी
से जल छलकाओ तो।।
मधुवन में महक समाई है,
कलियों
में यौवन सा छाया,
मस्ती
में दीवाना होकर,
भँवरा
उपवन में मँडराया,
मन
झूम रहा होकर व्याकुल, तुम
पंखुरिया फैलाओ तो।
कब
से बैठा
प्यासा चातुर, गगरी
से जल छलकाओ तो।।
मधुमक्खी भीने-भीने सुर में,
सुन्दर
राग सुनाती है,
सुन्दर
पंखों वाली तितली भी,
आस
लगाए आती है,
सूरज
की किरणें कहती है, खुलकर कलियों मुस्काओ तो।
कब
से बैठा
प्यासा चातुर, गगरी
से जल छलकाओ तो।।
चाहे मत दो मधु का कणभर,
पर
आमन्त्रण तो दे दो,
पहचानापन
विस्मृत करके,
तुम मौन-निमन्त्रण तो दे दो,
काली
घनघोर घटाओं में, तुम बिजली
बन कर आओ तो।
कब
से बैठा
प्यासा चातुर, गगरी
से जल छलकाओ तो।।
|
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शनिवार, 15 सितंबर 2018
गीत "तुम मौन-निमन्त्रण तो दे दो" डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुंदर। सादर प्रणाम।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (17-09-2018) को "मौन-निमन्त्रण तो दे दो" (चर्चा अंक-3097) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
गीत की रीत चातुर की प्रीत ज़वाब नहीं शास्त्रीजी के गीतों का :
जवाब देंहटाएंमन झूम रहा होकर व्याकुल, तुम पंखुरिया फैलाओ तो।
कब से बैठा प्यासा चातुर, गगरी से जल छलकाओ तो।।
veerubhai1947.blogspot.com
vigyanchakshu.blogspot.com
veeruji005.blogspot.com